जगद्गुरु भगवान विश्वकर्मा पर लिखित एवम् उनके द्वारा प्रणीत ग्रंथों की समृद्ध एवम् विशाल साहित्य श्रृंखला : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

 जगद्गुरु भगवान विश्वकर्मा पर लिखित एवम् उनके द्वारा प्रणीत ग्रंथों की समृद्ध एवम् विशाल साहित्य श्रृंखला : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

आत्मीय बंधुओं ! हममें से बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि सृष्टि निर्माता आदि देव,परम पुरुष,भगवान विश्वपति जिन्हें
पूरी दुनिया विश्व देव के नाम से पुकारती है पर वैदिक काल से लेकर अब तक कई ग्रंथ लिखे गए हैं,परन्तु कुछ लोगों के कुत्सित प्रयास से उनका नाम उच्चारण करने में भी आज कुछ वर्गों को शर्म आती है।आप सभी इस बात से शायद वाक़िफ न हो कि हमारे इतिहास को ठीक ढंग से नहीं प्रस्तुत किया गया है।
मित्रों ! यह विश्वकर्मा संस्कृति का ही योगदान है जो विश्व में अनेकानेक सभ्यताओं का निर्माण हुआ।इस वंश ने कृषि उपकरणों की खोज कर कृषि कार्यों को गतिमान बनाया जिससे गृहस्थ जीवन की शुरुआत हुई।
विश्वकर्मा संस्कृति ने ही विभिन्न प्रकार के सृजन के कार्य ,मठ मंदिरों प्रासादों का निर्माण किया।पूजा की वेदियों को तैयार किया यज्ञ कराने की विधियों को बताया।यज्ञ भी वैदिक काल में शिल्पचार्य ही कराता था और पूरी दुनिया को सुख के तमाम साधनों को उपलब्ध कराकर आज दुनिया को रहने लायक़ बनाया हैं।परन्तु विडम्बना यह है कि हमे लोहार बढ़ई एवम् न जाने कैसी कैसी उपजातियों में विभक्त कर निम्न वर्ग में डाल दिया गया। जबकि यह वंशज तमाम ऐताहसिक लड़ाइयों में आयुधों का निर्माण कर राजाओं को विजय श्री दिलाता रहा है। स्वंतंत्रता संग्राम की १८५७ की लड़ाई भी हमारे कुल के द्वारा बनाये गये हथियारों से ही लड़ा गया।लेकिन यांत्रिक गुणों की संपन्नता के कारण हम धीरे धीरे अपने गौरवमयी अस्तित्व को भुलाते गये और तथाकथित लोग अपने को हमसे ज़्यादा बुद्धिमान समझ,हमको निम्न स्तर का घोषित कर दिये।जब आप शास्त्रों का अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि भगवान विश्वकर्मा ही सृष्टि सृजक हैं।वही सभी देवताओं में श्रेष्ठ देवता माने जाते रहे हैं।भगवान राम को धनुष विद्या सुधनवा ऋषि ने ही सिखायी थी,जो विश्वकर्मा वंशीय थे।लंका विजय भी नल नील द्वारा समुद्र पर पुल बनाने से ही संभव हो पाया जो विश्वकर्मा पुत्र थे।विश्वकर्मा कुल जन्मजात अभियंता ही होता है।
जगत गुरु विश्वकर्मा के प्रथम प्रामाणिक ग्रन्थ अथर्ववेद(शिल्प वेद) के अतिरिक्त ऋग वेद में ११ ऋचाएँ लिखी गई हैं,जो प्रमाणित करता है कि भगवान विश्वकर्मा ही आदि देव,सृष्टि निर्माता,परम पुरुष है,जिनकी आराधना सभी देवी देवता करते रहे हैं। देवताओं के सारे यतन और अस्त्र शस्त्र भी भगवान विश्वकर्मा ने ही निर्मित किया है,जिससे सभी देव उनकी शरण को ग्रहण किए।वैदिक साहित्य एवम् शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के अनेकानेक संस्मरण एवम् कथाएँ वर्णित हैं।सायण ऋषि,बराह मिहिर,समरांगण सूत्र धार में राजा भोज ने अपने ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा के माहात्म्य को दर्शाया है।महर्षि अभय कात्यायन द्वारा लिखित विश्वकर्मा प्रकाश में शिल्प शास्त्र के नियमों को मूल रूप में प्रस्तुत किया है।भवदेवाचार्य द्वारा रचित “अपराजिता पृच्छा”में भी भगवान विश्वकर्मा द्वारा दिये गये उपदेशों का वर्णन है।वैदिक साहित्य में भगवान विश्वकर्मा पर तमाम जानकारियों के वावजूद इतिहास कारों ने हमारी कम्युनिटी के महानतम योगदान को जानभूझ कर भूला दिया और हमारी दशा और दिशा को केवल शिल्प के देवता तक उद्धृत किया जो सरासर बेइंसाफ़ी है।
भगवान विश्वकर्मा द्वारा रचित” छिड़ानव” नामक ग्रन्थ में मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा की बखूबी जानकारी दी है।जब अयोध्या में अधूरी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी तब इसी ग्रन्थ का हवाला देते हुए शंकराचार्य श्री अविमुक्तेश्वरान्द जी ने कहा था कि भगवान विश्वकर्मा ने अपने लिखित उक्त ग्रन्थ में यह लिखा है कि यदि किसी अधूरे मंदिर जिसमें गुम्बद का निर्माण न हुआ हो में किसी देवता की प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी तो वहाँ सुर नहीं बल्कि असुरों का बास होता हैं।
मानसार शिल्प शास्त्र में कला व शिल्प के साथ साथ हस्त शिल्प के तमाम अध्याय हैं जो विश्वकर्मा वंशियों के योगदान को प्रदर्शित करता है।
मत्स्य पुराण,गर्ग संहिता(बलभद्र खण्ड १३/५२) यजुर्वेद,वाराह पुराण,ब्रह्म पुराण,भविष्य पुराण,स्कन्द पुराण(नागर खण्ड) महाभारत शांतिपर्व में अनेकानेक शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा पर विपुल साहित्य उपलब्ध हैं।मगर भगवान विश्वकर्मा जी पर तत्समय साहित्य लेखन में कोताही की गई है और उनके माहात्म्य को जान बूझ कर कमतर करने का प्रयास हुआ है।
आज आधुनिक युग में भगवान विश्वकर्मा जी पर समृद्ध और विपुल साहित्य उपलब्ध है।जिनका विवरण निम्नांकित है।
१ विश्वकर्मा संहिता         १८ छिड़ाणव (स्वयंभगवानद्वारा)
२ विश्वकर्मियम              १९ अपराजिता पृच्छा
३ विश्वकर्मीय शिल्प।      २० सायण कृत ऋग वेद टीका
४ महाविश्वकर्मीय शिल्प   २१ कश्यप शिल्प
५ विश्वकर्मा सिद्धांत।       २२ मानसार शिल्प शास्त्र
६ विश्वकर्मा तन्त्र।           २३ वास्तु कर्म प्रकाशम
७ विश्वकर्मा रहस्य।         २४ स्कन्द पुराण,नागर खंड
८ विश्वकर्मा अवतार प्रकाश
९  विश्वकर्मा विद्या           २५ वाराह पुराण
१० विश्वकर्मा प्रकाश।      २६ मत्स्य पुराण
११ विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र  २७ ब्रह्म पुराण
१२ विश्वकर्मा मत
१३ विश्व बोध
१४  अथतत्व
१५ प्रसाद केशरी
१६ प्रसाद कीर्तन
१७ विश्वकर्मा पुराण
प्रबुद्ध जनों से सादर अनुरोध है कि विश्वकर्मा मंदिरों में उक्त ग्रन्थों/साहित्यों को संधारित करने की परम आवश्यकता है, या समाज के मानिंद लोग अपना अपना योगदान कर विश्वकर्मा शोध पुस्तकालय का भी ज़िलेवार निर्माण कर विश्वकर्मा ग्रन्थ/ शास्त्र एवम् साहित्य को संरक्षित किया जा सकता है,जिससे हम अपने संस्कृति और साहित्य को अक्षुण्ण कर सके, क्योंकि अब कुछ लोगों की सोच यह है कि विश्वकर्मा भगवान पर उपलब्ध साहित्य को ही न प्रिण्ट किया जाय। उदाहरण के  लिए स्कन्द पुराण तो छपता है परन्तु जिसमें भगवान विश्वकर्मा के चरित्र का वर्णन है उस नागर खण्ड को नहीं छापा जाता।

मुख्य मार्ग दर्शक
अखिल भारतीय विश्वकर्मा ट्रस्ट,वाराणसी

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनभद्र के परिषदीय विद्यालयों में राज्य परियोजना कार्यालय लखनऊ की टीम ने की गुणवत्ता को जांच

विशिष्ट स्टेडियम तियरा के प्रांगण में विकसित भारत संकल्प यात्रा सकुशल संपन्न

कक्षा एक के शत प्रतिशत (100% निपुण) बच्चों को किया गया सम्मानित