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समय का चक्र : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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  समय का चक्र :  डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" हर लफ्ज़ पर मतलब,  और हर मतलब का लफ्ज़, यही तलाशता रहा जिंदगी की किताब में, और आज जिंदगी की आखिरी किताब के पन्ने पर सुकून तलाशता है। चलता रहा,  स्वार्थ में जिंदगी भर और आज एक सुकून का कदम तलाशता है। सत्यता को पर्दे में रखकर ज़िन्दगी भर झूठ की परतें बुनता रहा, और आज जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर सत्यता तलाशता है। खुद को खुदा मान छलता रहा जिंदगी भर, आज अपनी बारी में,  खुदा को तलाशता है। कसम खाता रहा,  ज़िन्दगी भर अपनी उम्र की, ज़िन्दगी के अन्तिम क्षण में हरेक चित्र निहारता है। अपने चरित्र को जिंदगी भर इंद्रधनुष बनाकर चित्र को संवारता रहा‌। आज अपने ही चित्र में अपने चरित्र की परछाइयां निहारता है।

जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की।

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जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की। जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की। ऐसे लोग ही बात करेंगे, विश्वकर्मा उत्थान की।। अपने को विश्वकर्मा कहते, लाज जिन्हें है आती। ऐसे लोग तो कुल घातक है, सचमुच है संघाती।। क्यों पीतो हो भैया मेरे, घूंट सदा अपमान की। जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की।। दम है तो, अपनी कौम का, टायटिल खूब लगाओ। अपनी जाति की गरिमा को, निश दिन खूब बढ़ाओ।। क्यों बेकार की आशा रखते, दूजे जाति के मान की। जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की।। अपनो से जब मिलो, सदा ही एका को बतलाओ। अपने कुल के लोगों से, आत्मीय प्यार निभाओ ।। बदले में तब आशा करना, खुद अपने सम्मान की। जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की।। ताकत मित्रों, लुका छिपी से, दिन प्रतिदिन है घटती। मिश्र उपाध्याय पाठक लिखने से, स्वयं श्री, न बढ़ती।। छोड़ो प्रियवर, सब ढकोसला, दूजे वर्ण, खानदान की। जाति छुपाए घूम रहे हो, गुप्त रखे पहचान की। बढ़ई और लुहारों में, हमको, जिसने  भी बांटा ।। उनको तो बस अपने कुल में आग लगाने आता। ऐसे विद्रोही को त्यागें, जो बनते, मुल्तान की।। जाति छुपाए घूम र

पितृ पीर को समझ न पाया

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पितृ पीर को समझ न पाया  आज पिता को तर्पण करते याद आ रही कर्मों की जब तक जीवित रहे भूलकर पानी भी है नहीं पिलाया।। रहा पड़ा परदेश कमाता बच्चों बीच उन्हें बिसराया, अन्तिम समय पुकारे हमको पर हमने न मुंह दिखलाया। लोग बताते मृत्यु पूर्व तक नीर नयन से रहा निकल, लाल देखने को मन उनका कितना होगा रहा विकल। मैं माया की चकाचौंध में पितृ पीर को समझ न पाया ।। जब तक..... जब तक रहते मात पिता न कोई मूल्य समझ पाता, जाने पर हर कोई उनके धुनता सिर मन पछताता। याद आती हैं सारी बातें कैसे पाला है उनको, खुद के सारे खर्च बंद कर विद्यालय डाला उनको। मां अँचार से रोटी खाती बिन घी कभी न उसे खिलाया।। जब....... आने पर बुखार सिरहाने बैठ बिताती रातें मां, पापा लाते दौड़ दवाई सारा काम छोड़कर जा। जिसकी जिद हम बच्चे करते निश्चित सायं आ जाती, बिना सामने बैठ खिलाये मम्मी कहीं नहीं जाती । कहते पापा तुम सब ही धन है कुर्बां तुम पर माया।। जब......... यह कविता उन सब की खातिर जो पितु मात सताते हैं, उनकी अनदेखी करके घर दिल को रोज दुखाते हैं। जब तक सिर पर इनका छाता दुख आने से डरता है, धिक् धिक् रहते बेटों के जब घर पितु म

गौरवमय अतीत भारत का

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गौरवमय अतीत भारत का  गौरवमय  अतीत   देश   भारत  का ,  सभ्यता  ,    संस्कृति    रही   महान।  स्वर्ग     समान     सुंदर     राष्ट्र   का,   अधिकांश     देश    करते   गुणगान ।  देवों, संतों, ऋषि, मुनियों  की  धरती, धरती यह राधा, सावित्री , सीता  की ।  कर्मभूमि   छत्रपति   राजाओं    की  ,  पुरुषोत्तम राम, श्रीकृष्ण के गीता की ।  उत्तर  में  प्रहरी  पर्वतराज  हिमालय  ,  दक्षिण  में   सुशोभित  कन्याकुमारी  ।  पूर्व   में  हरा  - भरा , सुंदर  आसाम  ,  पश्चिम राजस्थान का मरुस्थल भारी ।  एक तरफ़ हिमालय  के  पर्वत प्रदेश  ,  दूसरी ओर  गंगा  यमुना  का  मैदान ।  खाद्यान्न   उगलती   यहाँ  की  धरती  ,  वसुंधरा     तो    रत्नों    की    खान  ।  भाषा  ,   प्रांत   ,   धर्म     में     बँटा  ,  पर भारत की अपनी विशेष पहचान ।  अनेकता  में    भी   एकता   दिखती  ,  अपना    अतीत  सच    में     महान  ।  रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय  मुंबई / महाराष्ट्र  समाचार व विज्ञापन के लिए संपर्क करें। WhatsApp No. 9935694130

सोहर ( कृष्ण जन्म )

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 सोहर ( कृष्ण जन्म ) यशोदा नंद देवकी के लाल का खेलावंय। प्रभु की लीला कोउ न जानै जन जन का बतलावंय।। उदर माह नौ जेका पालीं,जेल व्यथा बिच सजग सभांलीं। वहि नवजात शिशू जीवन हित उमगी जमुन पठावंय।।यशोदा..... धन्य भाग कालिंदी जल की,नंद यशोदा प्रीति अटल की। उछल लहर चरनन का चूमैं पुनि पुनि माथ लगावंय।।यशोदा........ सकल पहरुआ नींद में सोये,कोऊ न जाना कान्हा रोये। मुक्त हुए वसुदेव सूप ले शिशु सिर गोकुल पठावंय।।यशोदा........... प्रात बधइया नंद घर बाजी,द्वार गोप बालाएं नाची। मगन देवकी जेल प्रभू से ,प्रभु की खैर मनावंय।।यशोदा............... सुबह यशोदा कन्या रोदन,सुनि जागे प्रहरी कर्मी जन। यह संदेश कंस घर द्रुतगति पहरेदार पठावंय।। यशोदा......... - डाॅ0 रामसमुझ मिश्र अकेला