शाकाहारी ही क्यों बनना?
शाकाहारी ही क्यों बनना? (कविता) शाकाहारी क्यों बनना, आओ तुम्हें बताएं। शाकाहार अति उत्तम, खाएं और खिलाएं।। दूध दही फल हरी सब्जियाँ, भोजन में अपनायें, शाकाहारी मांस हेतु जीवों का क्रय, विक्रय पाप कहाता। मांस पकाकर देने वाला, भी दोषी कहलाता।। मृत जीवों की रूहें कैसे? हमको स्वस्थ्य बनाये, शाकाहारी जीव जंतु के मांस हेतु , जब बध करते हैं। तड़प तड़प कर कैसे? वे प्राण अंत करते हैं।। जीवों की हत्या कर, भक्षण कैसे जन को भाए, शाकाहारी मन में उथल पुथल की वृत्ती, मांसाहारी पाता। ग़ुस्सा और चिड़चिड़ापन क्रमश, वह उपजाता।। संबेदना दिनों दिन घटती धैर्य नहीं टिक पाये, शाकाहारी पृथ्वी पर बलशाली तो, हाथी ही होता है। सृजनशील हो करके वे लट्ठे को ढोता है।। रचनात्मक सृजनात्मक वृत्ति, शाकाहार जगाये, शाकाहारी मानव मांसभक्षी तब था, जब भू पर अन्न नहीं था। भू पर खेती नहीं थी, मित्रों केवल वन ही वन था।। वैज्ञानिक खोजों ने अब तो, विविध अन्न उपजाये, शाकाहारी मारे हुए जीवों की काया, शव ही तो कहलाये। मृत जीवों को खाने वाला, शवहारी कहलाये।। उनतीश प्रतिशत ज्यादा रोग, मांसाहार बढ़ाये,