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जय माता दी, जय माता दी

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जय माता दी, जय माता दी आदि शक्ति मां के पूजन का अवसर है नवरात्रि का पवित्र पावन सुअवसर है मां के नौ रुपों का पूजन वंदन होता है। सबके मन में मां के प्रति श्रद्धा दिखती है प्रथम दिवस को कलश स्थापना के साथ मां शैलपुत्री के पूजन से नवरात्रि शुरू होता है । द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी का वंदन अर्चन होता है, तृतीय दिवस मां चंद्रघंटा घर घर में पूजी जाती हैं चतुर्थ दिवस मां कुष्मांडा की आराधना होती है  पंचम दिवस मां स्कंदमाता को हम सभी मनाते हैं षष्टम दिवस मां कात्यायनी की आराधना करते हैं सप्तम दिवस मां कालरात्रि को हम सभी पूजते हैं अष्टम दिवस मां महागौरी को हम शीष झुकाते हैं नवम दिवस मां सिद्धिदात्री को चुनरी आदि चढ़ाते हैं। नौ दिन हम सब भक्त मां को तरह तरह से मनाते हैं दुःख दर्द मिटे, हो कल्याण हमारा यही विनय हम करते हैं। जगत जननी से विश्व कल्याण की कामना याचना। हम मां के सारे भक्त यही प्रार्थना, आदिशक्ति से करते हैं। श्रद्धा भाव से हम सब घर घर में दरबार सजाते हैं। धूप दीप सिंदूर नारियल पुष्प आदि मां को भेंट चढ़ाते हैं। साजोसज्जा संग मंदिरों में शंख घंटा घड़ियाल बजाते हैं पूजन ह

हठ करता भक्त

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हठ करता भक्त  तेरी ही प्यास इस जगत मे है प्रभु  मिलन की आस इस नैनन में  जैसे जल बिन मछली तड़पे वैसे ही तेरे दर्शन को आत्मा तरसत है प्रभु ।।  कब तक मेरी बिगड़ी बनाओगे  कभी तो अपने पास बुलाओ प्रभु कब तक इस मोह माया के रस्सी से बंधे रहूँ। कभी तो दर्श दे जाओ प्रभु ।। स्वप्न मे खूब निहारती हूँ आपको  कभी हकीकत मे तो सामने आओ प्रभु ।। मन उदास,  अब नही इस तन मे जान,निर्मोही इस जगत से मैं  तेरे चरणों की धूरि माथे लगाऊँ प्रभु ।। दिया सब कुछ तुने,अब सब तुझे  लौटाऊँ प्रभू मैं तेरे पास आना चाहूँ प्रभु ।। हाथ जोड़कर  करूँ प्रार्थना सुन ले विनती मेरी, धीरे-धीरे इस शरीर से निकल रही है अब जान मोरी ।। रह-रहकर तरसी है ये अँखिया खूब, अबकी बार दर्श ना दियो तो भेज दियो पाताल मोहि ।। ना स्वर्ग, ना नरक की इच्छा मोहे ना सुख, दुख की आस, तेरी भक्ति मे काटूँ बची जीवन सारी यही एक अरदास ।। - श्रीमती निर्मला सिन्हा (स्वतंत्र लेखिका) ग्राम जामरी डोंगरगढ छत्तीसगढ से एक सोशल वर्कर

देवी माँ

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देवी माँ  ये आंखों ने इशारे करना छोड़ दिया। मां तुम्हारी भक्ति से अपने को जोड़ लिया। दोस्ती कर ली मां तुम्हारे चेहरे से दोस्तो में अब वक्त बर्बाद नहीं करती। चाय की आदि थी पीज़ा मेरी जान थी लत लगी मंदिर की घर में चैन न पाई थी छोड़ सारी गली माँ की शरण पाई थी। आंखे जब खुली मेरी मां तुम्हारे द्वार आई थी। - प्रतिभा जैन टीकमगढ़, मध्य प्रदेश

आइये पढ़ते हैं सरिता सिंह द्वारा लिखी भक्ति रचना- नमन कर ले ...

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आइये पढ़ते हैं सरिता सिंह द्वारा लिखी भक्ति रचना-  नमन कर ले ... माला जपती उम्र गई।  गया न मन का फेरा। कर्म करें जो बदले जीवन। डाले ना कहीं पर डेरा। दुखसुख तो जीवन के काज। जो कर्म करे मनु  पाए राज। रात गई अब हुआ सवेरा। सब प्रभु का क्या तेरा मेरा। मत कर मानव तू अभिमान। रमजा भक्ति  ले कुछ ज्ञान। अंदर का तू द्वंद मिटा ले। हृदय की कांति चमका ले। गुरु कुम्हार है शिष्य घड़ा । नमन उसे कर जो है बड़ा । -सरिता सिंह गोरखपुर