चंचल मन
चंचल मन (कविता) हिय के दिव्य प्रकाश से ज्योतित, रहता है सबका यह मन। कभी वायु सम तेज गति से , गतिमान होता है मन। मन बंधन का कारण बनता, मुक्ति प्रदाता भी है, मन। सुख और दुख के भाव जगाता, प्रेम घृणा उपजाता मन। तोड़े फोड़े जोड़े मोड़े, जैसी परिस्थिति में हो मन। विषय विकार कभी मन उपजे, अस्थिर करता है मन। कभी सृजन के भाव जगाता, कभी घुटन अवगुंठित मन। इच्छा चाह कामना बहुविधि, प्रति क्षण सृजित करे यह मन। मन को यदि बश में कर लेवें, सदा प्रफुल्लित होवे तन।। रचनाकार: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा सुन्दरपुर वाराणसी