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नूतन वर्ष (कविता)

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नूतन वर्ष (कविता) नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन प्रखर तेज,फैले जग अपना,सुवासित जस चंदन। मिटे गिले शिकवे सब सारे। कोई रहे न बिना सहारे। तन की पीड़ा मन से हारे। जीवन के उपवन बसंत में,प्रेम सृजन का बंधन। नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन।। आपस की कटुता मिट जाए। हृदय प्रेम बंधुत्व जग जाए। मिटे अनीति अनाचार सब, भ्रष्टाचार का क्रंदन। नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन। नैतिकता का पाठ पढ़ावे। अंतःकरण पवित्र बनावें। मन में नव उमंग को लेकर, हो ऊर्जा का संवर्द्धन। नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन।। भाव सभी के होवें निर्मल। शांति प्रदायक हो नभ थल। मन के भाव रहे सब अविचल, दूर हो अवगुंठन। नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन।। प्रेमभाव बढ़े नित प्रतिपल। मन वाणी कर्म सद हरपल। सबके जीवन ख़ुशियाँ फैले, शक्ति शान्ति का बंधन। नूतन वर्ष तेरा अभिनंदन।। रचनाकार : डाक्टर डी आर विश्वकर्मा                 सुंदरपुर   वाराणसी

हम तुम्हारे हुए

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हम तुम्हारे हुए तुम हमारे हुए,  कितने प्यारे हुए।  इक मुलाक़ात में,  हम तुम्हारे हुए।।  इश्क़ आगाज़ है,  चांदनी रात है,  जगमगाता ये तारों की बारात है। हौले-हौले मोहब्बत की शुरुआत है,  आशिकाना सनम तेरा अंदाज़ है।  दोनों इक दूजे के अब सहारे हुए। इक मुलाक़ात में, हम तुम्हारे हुए।।  तेरा-मेरा सनम तार जबसे जुड़ा,  सारी दुनिया का है होश तबसे उड़ा।  मिल गई क़ामयाबी हमें चाँद की,  राह मुश्किल था बेशक़ फ़तह है बड़ा।  ख़्वाब बरसों के पूरे वो सारे हुए।  इक मुलाक़ात में,  हम तुम्हारे हुए।।  रचनाकार-  शेख रहमत अली "बस्तवी" बस्ती (उ, प्र,)