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राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान् बुद्ध तक का सफ़र

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राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान् बुद्ध तक का सफ़र एक बड़े आलीशान महल के राजकुमार सिद्धार्थ जो बचपन में बहुत ही विनम्र व दयालु प्रवृत्ति के थे, आप यूं कह सकते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के ही साक्षात् रूप थे। क्योंकि, उनकी शालीनता एकदम शांत शीतल नीर की भांति प्रतीत होती थी एवं भगवान श्रीराम की तरह आदर्शवादी थे। बचपन में उन्होंने एक तड़पते व घायल हंस को शरणागत दी एवं उस घायल हंस के सेवा-सुश्रुषा में कोई कटौती नहीं छोड़ी। इनकी सेवा-सुश्रुषा से फलीभूत होकर उस हंस को एक नयी ज़िंदगी मिली।  समय का दौर शनै:-शनै: व्यतीत होता गया एवं बालक सिद्धार्थ का भी यौवनारंभ होने लगी। वे किशोरावस्था की उम्र की दहलीज़ों को जब पार किया तो बालक सिद्धार्थ के माता-पिता उनके लिए एक सुंदर व सुसंस्कारी वधु की तलाश में भटकने लगे और आख़िरकार एक अमुक नगर में एक चांद-सा मुखड़ा की तरह एक ख़ूबसूरत वधु मिल ही गयी जो साक्षात् किसी स्वर्ग लोक की परी की तरह दिखती थीं। दोनों परिवारों की स्वीकृति से दोनों वर-वधु परिणय सूत्र में एवं दाम्पत्य जीवन में बंध गये एवं सात जन्मों तक अग्नि देवता के सन्मुख साक्षात्