शरीर
शरीर शरीर प्रभु की सुंदर देन , सत्कर्मों का प्रबल आधार । सदा स्वस्थ रखें इसको , यथोचित रखें अपना आहार। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन , करता सदा सुखमय निवास। समृद्ध और आनंदित रखता , हमारा निरंतर होता विकास । सुंदर काया चंचल मन पर , करना नहीं कभी अभिमान । मिट्टी का तन मिट्टी बनेगा , कर लो इससे कार्य महान । काया ही माया का सदन, ममता का सुंदर निवास। आदर्श इसे ऐसा बनाओ , हर अनीति का हो विनाश । गर्व कभी करना नहीं , काया जर्जर हो जाएगी । आत्मा नया तन पा लेगी , दुनियाँ इतिहास सुनायेगी । इस शरीर के रहते ही , दुनिया के सब रिश्ते नाते । ईश्वर अंश के जाते ही , हम क्या से क्या बन जाते । पानी का बुलबुला यह तन , कह गए दास कबीर । मिट्टी ही बन जाएगी , आकर्षक और गोरी शरीर । जब तक प्रभु रखें इसे , इसका रखो सदा ध्यान । तलवार जब रहे नहीं , क्या करे अकेले म्यान । रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय मुंबई /