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भारतीय अनुशासन: ट्रेन कोच में जंजीर से बंधा शौच का डिब्बा

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भारतीय अनुशासन: ट्रेन कोच में जंजीर से बंधा शौच का डिब्बा विधा : व्यंग्य एक नागरिक देश को बना सकता है और बिगाड़ भी सकता है पर हम हमेशा अपने दायित्व के अलावा दूसरे के कर्तव्यों के विषय में ज्यादा सोचते हैं , बात अनुशासन की हो तो और भी गंभीर। सबको लगता है कि पहले दूसरे करें मैं पहले क्यों। लखनऊ से असम को जाते हुए  रास्ते में  कुछ नवयुवक ट्रेन के डब्बे में दाखिल हुए , साथ में बड़े बड़े बैग , लोग कम और सामान ज्यादा, पूरा कोच फुल था, पर वह रेलवे को कोसते , इधर उधर जगह बना कर बैठने लगे,कुछ स्टेशन पार करते हुए ट्रेन ने आधा सफर पार कर लिया रात हो गई सब ने अपने जरूरी दैनिक कार्य शुरू किए। अब शौचालय के बाहर बैठे वह चार युवक कभी खड़े होते और कभी बैठते , आने जाने वाले सारे लोग उन्हें ही खरी खोटी सुना रहे थे, एक सज्जन बोले पता नहीं कहां से चले आते हैं ऐसे ऐसे लोग रिजर्वेशन के डब्बे में , पहले से टिकट कराना चाहिए, हम लोग पागल है क्या जो रिजर्वेशन में चल रहे हैं, अब बिना टिकट के भी हैं इनको आराम भी चाहिए, दूसरे सज्जन बोले अब ठीक है उनकी भी क्या रिजर्वेशन टिकट नहीं मिला पूरी भरी गाड़ी में