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आलेख - श्राद्ध पक्ष का सनातन संस्कृति में महत्व

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आलेख - श्राद्ध पक्ष का सनातन संस्कृति में महत्व           हमारा देश और हिन्दू संस्कृति सनातन संस्कृति की मान्यताओं को गहराई से आत्मसात कर सतत् सदियों से अनवरत आगे बढ़ रहा है। कहने को हम आधुनिक तकनीक के विकास और विज्ञान के बृहत्तर विस्तार की चर्चा चाहे जितना करें, अपनी पीठ थपथपायें लेकिन अभी भी हम सनातनी व्यवस्था और अपने पुरखों की बनाई परंपराओं, रीति रिवाजों का पालन ही करते हैं। यह अलग बात है कि हमारी सोच बहुत आधुनिक हो रही है और हम बहुत सारी चीजों पर नकारात्मक विचार या बेकार, ढकोसला, मूर्खता जैसे शब्दों से नवाजते हैं, पर खुद प्रतीकात्मक रूप से ही सही उस परंपरा को निभाते हैं।       तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध ही नहीं मृत्यूपरांत आज भी धनाढ्य से धनाढ्य व्यक्ति की शव यात्रा बांस की सीढ़ियों पर रखकर ही होती है। भले ही फिर शव सहित हम श्मशान तक की यात्रा तमाम साधनों से करते हैं। फिर दाह संस्कार भी परंपरा अनुसार ही करते हैं, हां आधुनिकता और तकनीक के विकास, लकड़ी की बढ़ती कमी से विद्युत शवदाह गृह के माध्यम से लाभ संस्कार जरूर करने लगे हैं, लेकिन विद्युत शवदाह गृह भी नदियों के करीब ही ह