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लिखनें का मुगालता पालनें वालों के नाम एक पाती - अज्ञात लेखक

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लिखनें का मुगालता पालनें वालों के नाम एक पाती - अज्ञात लेखक  आप लोग के समक्ष "अपनों के बीच अपनी बात" के तत्वावधान में कुछ कहना चाहता हूं। साहित्य वास्तव में है क्या मुझे याद आता है जब मैं शुरूआत किया था, मैं उन दिनों अखबार में छप रहा था। बी.एस.सी का छात्र था, गणित के प्रोफ़ेसर गणित पढ़ा रहे थे। मेरे मित्रो ने बताया कि अंशु *कविता* लिखते हैं अखबार में छपते हैं तो प्रोफेसर सर ने बोला कि कोई बड़ी बात नही है लाओ मैं लिख देता हूं।  "मैं कोई गीत गाता हूँ मैं तराना लिखता हूं, आसमान को झुकाने का हौसला रखता हूं।" कोई बड़ी बात नहीं कविता लिखना। बेहतरीन तरीक़े से मज़ाक उड़ाया गया, सभी 100 बच्चों से भरी कक्षा हंसी से गूंज गई। उसके बाद उनका कार्यकाल ख़त्म हुआ। अंत में उन्होंने बुलाया। कविराज नाराज़ हो, मैंने कहा- सर आपकी बातें सोना-चांदी है आप जो भी कहेंगे सही कहेंगे। उन्होंने कहा - वेरी गुड मैं तुम्हारी रचनाएं पढ़ता हूं। दैनिक भास्कर मे सप्ताह में काव्य वाले कालम में तुम्हारी रचनाएं रहती हैं। ईमानदारी से बताऊं, मज़ा नहीं आ रही हैं।  कविता लिखना इस दुनिया का सबसे कठि