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आइये पढ़ते हैं शेख रहमत अली "बस्तवी" जी द्वारा लिखी ग़ज़ल

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आइये पढ़ते हैं शेख रहमत अली "बस्तवी" जी द्वारा लिखी ग़ज़ल ज़माने   से  तू  बेख़बर   हो  गया  है। मोहब्बत का जबसे असर हो गया है।।  दिवाना  सा  फ़िरता  हमारी  गली में।  तुझे  रोग अब  इस क़दर  हो गया है।।  दुआ  है  ख़ुदा   से  तुझे   इल्म  दे दे।  मग़र  सब  दुआ  बेअसर हो  गया है।।  रहा उम्र भर  संग  तू उसकी जानिब।  अधूरा  मग़र  ये   सफ़र  हो  गया  है।।  कहानी सुनो  "रहमत" लब से बयां है।  ग़ज़ल  ये  तुम्हारे  नज़र  हो  गया  है।।  ग़ज़ल ये तुम्हारी - शेख रहमत अली "बस्तवी" बस्ती (उ. प्र.) 

आइये पढ़ते हैं जय प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखी गज़ल

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गज़ल कुछ सोच समझ फिर वार कर; तू  नाहक  ना  तकरार  कर। मौन साधना  में रत  हैं  हम;  अब इतना तो  स्वीकर कर। दीवार गिराना नहीं है मुश्किल;  बस  सीधा - सच्चा  प्यार कर। अभी- अभी तो मुखर हुए हो;  कुछ वाणी पर अधिकार कर।  कपट-कामनाओं में रत रहकर; अपना जीवन मत दुश्वार  कर। मन की व्यथा सब मिट जायेगी;  सब  झंकृत  मन  के  तार  कर।   अन्तर्मन   को  कर  ले   रोशन;  'जय' जीवन - बेड़ा  पार  कर।     - जय प्रकाश शर्मा        नागपुर, महाराष्ट्र

आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी- गज़ल

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आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी- गज़ल  (गज़ल) सीखी हमने दुनियादारी तुमसे । जाना क्या होती लाचारी तुमसे । मर जाना आसान नहीं था मेरा,  सीखा जीने की दुश्वारी तुमसे । इतना सहज नहीं था सफ़र अकेले,  दुनिया से जीती पर हारी तुमसे । होठों को सिल कर चलते रहते हैं ,  बोली क्या मेरी खुद्दारी तुमसे । अपनों के तीरों से घायल 'सीमा', देखें न गए जख्म इक बारी तुमसे ।। -सीमा वर्णिका  कानपुर, उत्तर प्रदेश 

आइये पढ़ते हैं अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल

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आइये पढ़ते हैं अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल    गज़ल   जिसे आज हमनें यहां यार समझा वो सभी बड़े दिल के उदार निकलें।1 यहां की हवा ने बदल जो दिया है  खुद  को जानने से इंकार  निकले।2  बुराई  करने  से   पहले  सब्र  जरा    जुबानों  के वहीं तो मुख्तार निकलें।3 चिरागों  रौशन रहों हम देतें दम आंधियां हमेशा हि गद्दार निकले।4 हुश्न ओ इश्क भी बेहतरीन शायद रह गया जहन में  इश्तहार निकले ।5   बुराई  करने  से   पहले  सब्र  जरा   जुबानों के सभी तो मुख्तार निकलें।6 कभी वो चाटतें थे तलुए किसी के घूमतें  दिखातें  युं तलवार  निकले।7   सुर्ख निगाहों पे किसी के रूक गयें  यहां पे वहीं तो यु अश‌आर निकले।8   लपकें सभी उसी लाल सूरज तरफ जिनके लोहू  से यु किरदार निकले।9   जमाने   से कहो उम्मीद भी  न रख फकीरों में कहीं युं फनकार निकले।10 -अनूप कुमार श्रीवास्तव   कानपुर, उत्तर प्रदेश