आइये पढ़ते हैं जय प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखी गज़ल

गज़ल
कुछ सोच समझ फिर वार कर;
तू  नाहक  ना  तकरार  कर।

मौन साधना  में रत  हैं  हम; 
अब इतना तो  स्वीकर कर।

दीवार गिराना नहीं है मुश्किल;
 बस  सीधा - सच्चा  प्यार कर।

अभी- अभी तो मुखर हुए हो;
 कुछ वाणी पर अधिकार कर। 

कपट-कामनाओं में रत रहकर;
अपना जीवन मत दुश्वार  कर।

मन की व्यथा सब मिट जायेगी;
 सब  झंकृत  मन  के  तार  कर। 

 अन्तर्मन   को  कर  ले   रोशन;
 'जय' जीवन - बेड़ा  पार  कर।

    - जय प्रकाश शर्मा
       नागपुर, महाराष्ट्र

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