श्री कृष्ण प्राप्ति विरह गोपी गीत श्रीमद्भागवत -१० स्क० ३१ अ० समीक्षक- आचार्य डा० गौरीशंकर उपाध्याय
श्री कृष्ण प्राप्ति विरह गोपी गीत श्रीमद्भागवत -१० स्क० ३१ अ० समीक्षक आचार्य डा० गौरीशंकर उपाध्याय गिरिडीह (झारखंड) प्रेरक प्रसंग - हे प्राणनाथ मेरे प्रियतम ! हम तुम्हें बुलातेहै? किआप मधुर बंशी बजा नेत्रों से हमें रिझाते हैं।। जन्म लेने सेआपके ब्रज की महिमा बढ़ रही। छोड़ वैकुण्ठ लक्ष्मी ऋधि सिधि सहित ब्रज में रह रही।। दर्शन आपके करने प्राण रख खोज विविध दिशाओं मैंने किया। अमूल्य दासियां हूं , आपके कृपा : कटाक्ष नेत्रों ने, मेरे चित चुरा लिया।।हे चितचोर! विना देखे आपके मेरे प्राण पखेरू न कहीं उड़ जाये। डर है मेरा, कहीं आपको, स्त्री हत्या का पाप न लग जाये।। याद रहे प्रभु जो नेत्रों से बध होता है, वह शस्त्रों से नहीं। जीवन ब्यर्थ जीया, फिर नेत्रों का प्रयोजन क्या? जो प्रभु का दर्शन किया नहीं।। फिर आपने बचाया क्यों? प्रभु हमें विषाक्त यमुना जल से। अजगर रुप अघासुर से, और बृषभासुर, ब्योमासुर से।। वर्षा, वायु से प्रचण्ड अग्नि और वज्रपात से, न जाने कितने बड़े -बडे उत्पातों भरीं। सभी प्रकार के असुरों के भयों से, बार-बार मेरी रक्षा क्यों करी?हे सखे! आप यशोदा, नन्दनन्दन ही नहीं, अपि