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मैं सवाल पूछूँगा : कवि विवेक अज्ञानी

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मैं सवाल पूछूँगा : कवि विवेक अज्ञानी    मुक्तक ( केवल मनोरंजन हेतु) तुम  कर्मचारी उनकी  सरकार में हो क्या ? तुम स्वतंत्र नहीं उनके अधिकार में हो क्या ? उनकी शान में बहुत झूठे कसीदे पढ़ रहे हो। तुम अभी घर पर नहीं दरबार में हो क्या ? मुझे देश की खस्ता हालत दिखायी दे रही है। मुझे अबलाओं  की  चीखें  सुनायी दे रही है। वो कह रहे हैं देश में बह चली विकास की गंगा। और मुझे पड़ी नंगी लाश दिखायी दे रही है। जब सत्ता में हो तो जवाब दीजिए। सारे बवालों का हिसाब दीजिए। युवा बेरोज़गार क्यों हैं अभी तक फिर खुद को विकास का खिताब दीजिए। -कवि विवेक अज्ञानी   गोंडा, उत्तर प्रदेश, भारत