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व्यंग्य- चोरी बेईमानी द्वेष ईष्या बस और क्या है : कवि विवेक अज्ञानी

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व्यंग्य- चोरी बेईमानी द्वेष ईष्या बस और क्या है : कवि विवेक अज्ञानी  (व्यंग्य) कभी-कभी तो समझ में नहीं आता कि जीवन क्या है?  चोरी बेईमानी द्वेष ईष्या बस और क्या है? हर तरफ़ लूट मार घूसखोरी और दलाली है  वही फूलों का भक्षक है जो बागों का माली है  लगाकर मजहबी आग यहाँ  जलावाते हैं शहर  उनके बंगले बच गये जल गया रामू का घर  आओ यहाँ पुर में जले दंगो में जो घर देखिये  सलोना हो गया उनके कोठी का मंजर देखिये  गाँव में रघ्घु की हालत लाखन का रोना देखिये  उजड़ा आँधियों में छ्न्गे का घर सलोना देखिये  चाल कुछ चलकर वो घटिया बन गये फिर बादशाह  दिन प्रतिदिन निकल रही है बेबस दिलों की कितनी आह ! कवि विवेक अज्ञानी  गोंडा, उत्तर प्रदेश, भारत

आइये पढ़ते हैं कवि प्रदीप कुमार जी द्वारा लिखा - व्यंग्य

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आइये पढ़ते हैं कवि प्रदीप कुमार जी द्वारा लिखा - व्यंग्य व्यंग्य-  अभी तक सोचा नहीं यदि गांव का सच ना लिख सकूं मैं । तो फिर अपना नाम कवि क्यों लिखूं मैं ।। लिखूंगा घोटाले सारे रिश्वतखोरी वाले । कलम ना रोकूंगा चाहे जितने हो रोकने वाले ।। खुले शब्द होंगे बाणो सी मानो बौछार हो । सुनने वाले सहे ना सहे पर वार पर वार हो ।। खुलकर लिखना चाहता हूं आजादी का पंछी हूं । साथ मित्रों का चाहता हूं दुश्मनों की फांसी हूं ।। बस आगे क्या लिखकर बताना किसी को। अब तो काम करके दिखाना है हर किसी को ।। - कवि प्रदीप कुमार   सहारनपुर

व्यंग्य- नशा मुक्ति अभियान : सुधीर श्रीवास्तव

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व्यंग्य - नशा मुक्ति अभियान : सुधीर श्रीवास्तव   ( व्यंग्य) जीवन का सुख उठाना है तो खूब मजा कीजिए, जितना नशा कर सकते हैं वो सब भरपूर कीजिए, मरना तो आखिर एक दिन सबको है फिर बुढ़ापे में जाकर मरें इससे अच्छा है चलते फिरते निपट जायें बहुत अच्छा है। हमारी सरकार भी तो आखिर खुल्लमखुल्ला यही चाहती है, बेरोजगारी नशे की आड़ में शायद कम करना चाहती है, राजस्व पाने की चाहत इतनी नशे का उत्पादन बंद नहीं कराती, उल्टे नशा मुक्ति अभियान चलाती है। नशा मौत है सबको समझाती है नशीले उत्पादों पर देखिये नशे के खतरे बताती है, हमारी सरकार गंभीर है नशे की सुविधा के साथ साथ इलाज का भी इंतजाम करती है। यह कैसी विडंबना है यारों सरकार सब कुछ करती है हमारे जीने की चिंता तो करती ही है ये अलग बात है हमारे मरने का कितना ख्याल भी रखती है, नशीले उत्पादों से काफी धन कमाती है। उसी राजस्व से हमें सुविधाएं बाँटती है कुछ भी नहीं बचा पाती है। पर उसकी उदारता तो देखिये इसी बहाने कम से कम करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रोजगार तो उपलब्ध ही कराती है, नशा मुक्ति अभियान में भी खुले हाथ धन ही नहीं कीमती समय भी खुशी खुशी व