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आज मैं विदा हो चली

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आज मैं विदा हो चली आज मैं विदा हो चली, जिस घर में बिताया बचपन, उसी घर में मेहमान हो चली, छोड़ कर अपनी महक यादों का पिटारा ले चली। सपनों की दुनियां में पहला कदम रख चली, थाम कर आपका हाथ, खुद को समर्पित कर दिया।  छोड़ अपनी पहचान, लाल चुनर ओढ़ चली। आज मैं विदा हो चली। - प्रतिभा जैन  टीकमगढ़ मध्य प्रदेश समाचार व विज्ञापन के लिए संपर्क करें। WhatsApp No. 9935694130

वह स्त्री है

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शीर्षक - वह स्त्री है  सम्मान करो वह स्त्री है, जीवन अपना चरितार्थ करो, वह जन्मी किसी घड़ी में हो, खुशियों से तुम आगाज़ करो। वह दुर्गा है, वह लक्ष्मी है, वह सीता है वह मीरा है, जग में पड़ी जरूरत जैसे, हर रूप में इनको पाया है। नाम दर्ज है इतिहासो में, रणभूमि गवाही देती हैं, इतिहास के कोने कोने में, नाम इन्हीं का बसता है। हर पहर - हर कहर को, खूब सहन कर लेती है , वह गृहस्थी में सबकुछ, न्यौछावर कर देती है। वह मां बन कर सुन्दरता तज देती है, वह स्त्री है तभी तो , वह सब कुछ सह लेती है। योद्धा बनकर वह, हर स्थिति में खड़ी रही, झंकार उसकी पायलों से, आज आंगन भी आबाद है। साहित्यकार एवं लेखक- डॉ आशीष मिश्र उर्वर कादीपुर, सुल्तानपुर उ. प्र.

भ्रष्टाचार की अग्नि : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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भ्रष्टाचार की अग्नि : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" भ्रष्टाचार की अग्नि में,  न्याय व्यवस्था शर्मसार है। कोने में  सिसक रहा, न्याय, फाइलों में बंद रोता,  सत्य हाय हाय ।  न्याय बैठा लाचार है। रिश्वत लेना जरूरी नहीं, मजबूरी है इनकी, आदत बन गई है, रिश्वत लेना जिंदगी इनकी। सत्यता को घोल चाय के गिलास में, चुस्कियां लेते हैं, न्याय की। सत्यता का बना के तमाशा, मनोरंजन करते, साहब जी। भ्रष्टाचार की अग्नि में, सहने वाला और करने वाला दोनों जलते हैं। बन के गांधी अहिंसा का डंडा लेकर, कुछ सिद्धांतवादी चलते हैं। लोकतंत्र कोई मजाक नहीं, कानून व्यवस्था किसी की जागीर नहीं। न्याय बैठा है, बस एक पल के इंतजार में। एक हिम्मती किरदार और उसके विश्वास में।

भारतीयों का स्वाभिमान है हिन्दी

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भारतीयों का स्वाभिमान है हिन्दी हर भारतीयों का स्वाभिमान है हिन्दी, या यूं कहें बसी जान इसमें है वो हिन्दी, तिरंगा पर लहराता शान है वो है हिन्दी, विरासत में मिली अमूल्य धरोहर है हिन्दी, हर भारतीयों की रक्त कोशिकाओं में निरंतर प्रवाह है हिन्दी, भारतीयों की संस्कार है हिन्दी, प्रेम से सजी वर्णमाला है हिन्दी, कवि की लेखनी का आसमां है हिन्दी, तुतलाते बच्चों के टूटे फूटे स्वर का मातृत्व है हिन्दी, नवयौवना की खनकती चूड़ियों का अरमान है हिन्दी, मां सी ममता लुटाती,मां की बिंदी में सज रही हमारी हिन्दी, पिता सी छत्रछाया में पलती,हमारी उज्जवल भविष्य का आधार है हिन्दी, कर्तव्य निभाने को अब आगे आना होगा, हिन्दी का प्रचार प्रसार हमसबों को करना होगा... हमारी लेखनी को अमूल्य आशीष दें मां हिन्दी, अपनी रचनाओं का खज़ाना समर्पित आपको मां हिन्दी... ✍️ उमा पुपुन        रांची, झारखंड

श्याम साहित्य दर्पण काव्य मंच के पटल पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन

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श्याम साहित्य दर्पण काव्य मंच के पटल पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन सोनभद्र, उत्तर प्रदेश : (जिला ब्यूरो चीफ पवन कुमार की रिपोर्ट) विदित हो कि सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था "श्याम साहित्य दर्पण काव्य मंच" संबद्ध "सोनभद्र मानव सेवा आश्रम ट्रस्ट" के बैनर तले, नूतन वर्ष 2024 की पूर्व संध्या पर नामचीन कवि/कवयित्रियों द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें सभी रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल व कविताएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिए।  कार्यक्रम की अध्यक्षता मुरादाबाद उत्तर प्रदेश से उम्दा कलमकार आमोद कुमार ने किया। कवि सम्मेलन का शुभारंभ कच्छ गुजरात की पावन धरा से शिरकत कर रहीं वरिष्ठ कवयित्री डॉ.संगीता पाल ने “हे शारदे मां, नव वर्ष तुम्हारा वंदन हो”  की सुमधुर वाणी वंदना से किया।           काव्य पाठ की कड़ी में अलवर राजस्थान से डॉ. बीना गुप्ता “अब नया अवसर आया है” की सुंदर प्रस्तुति दीं। खगड़िया बिहार से साधना भगत “मैया जी क्या भूल हुई” भक्ति गीत, रायगढ़ छत्तीसगढ़ से अंजना सिन्हा सखी “मैं अपनी च

मातृत्व का सुख

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मातृत्व का सुख जिंदगी गर दुखों का सागर है, मातृत्व प्रेम अमृत का महासागर है... जब हार कर भी तुम आओ, गले जीत सा ही तुमको लगाएगी, यही तो मां का ममता दुलार है... सारे रिश्तों की परीक्षा ले लो तुम, निश्चल ऐसा प्रेम कहां  पाओगे तुम, मातृत्व की आशीष अपरंपार है... जब सोए होते हो, स्वप्न में विचरण करते हो, हाथ सर पर रख आशीष देती, पल पल वो प्रेम लुटाती, "शुभम"और "स्वप्निल"नाम आंचल से सहलाती, देवता भी सर झुकाते ऐसी ममता को, जननी को करते प्रणाम बारंबार हैं... जो इस प्रेम से वंचित रह जाते, जीवन उनका निराकार है... कौर बनाकर वो सिर्फ खाना नहीं खिलाती, उस कौर में आशीष ममता का संचार है... 🖊️उमा पुपुन       रांची, झारखंड

प्रेम वर्षा

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प्रेम वर्षा  वर्षा की रिमझिम बूंदे,  मन में आग लगाती हैं ।  प्रियतम जिनके साथ,  हवाएँ गीत सुनाती हैं । शोर मोर का प्यारा लगता ,  मन गाए प्रेमल  संगीत ।  नृत्य करे खुशियों की रानी लगे अनोखा अपना मीत । जीवन फूलों की सेज लगे,  पंख लगे आशाओं के ।  मधुर लगे हर दिन और रातें ,  स्वप्न सजे नूतन भावों के । सौभाग्य हमारा लगता न्यारा ,  हर खुशहाली है जीवन में ।  सौगातें जीवन की सब हैं ,  असीम सरसता है मन में । रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय मुंबई / महाराष्ट्र

सुखमिला अग्रवाल भूमिजा को मिला ‘साहित्योदय साहित्य रत्न सम्मान’ तथा ‘ग्रेटेस्ट वर्ड रिकॉर्ड’ व ‘लंदन बुक ऑफ वर्ड रिकॉर्ड ‘

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सुखमिला अग्रवाल भूमिजा को मिला ‘साहित्योदय साहित्य रत्न सम्मान’ तथा ‘ग्रेटेस्ट वर्ड रिकॉर्ड’ व ‘लंदन बुक ऑफ वर्ड रिकॉर्ड ‘ जयपुर (राजस्थान) :  कृष्णायन महाग्रंथ में सहभागिता हेतु लंदन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं ग्रेटेस्ट का वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम शामिल  प्रभु श्री कृष्ण की पावन जन्म स्थली मथुरा में साहित्य का भव्य कार्यक्रम कृष्णायन वात्सल्य ग्राम में संपन्न हुआ इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि साध्वी ऋतंभरा दीदी मां (आध्यात्मिक गुरु) कार्यक्रम अध्यक्ष रविंद्र कुमार सिंहा (पूर्व सांसद मथुरा), विशिष्ट अतिथि डॉक्टर सोम ठाकुर, डॉ विष्णु सक्सेना संरक्षक बुद्धिनाथ मिश्र, संयोजक पंकज प्रियम रहे।  कार्यक्रम मां शारदा की वंदना से प्रारंभ हुआ प्रत्येक सत्र के अलग-अलग 17 कार्याध्यक्ष थे। देश के लगभग 200 साहित्यकार इस कार्यक्रम में शामिल हुए जिनकी लेखनी से श्रीमद् भागवत पुराण एवं प्रभु श्री कृष्ण जी से जुड़े सभी प्रसंगों का समावेश करते हुए 'कृष्णायन काव्य ग्रंथ' लिपिबद्ध  किया गया। जिसके दो खंडों में 17 भागों में 832 पृष्ठ समाहित हैं। इसके संपादक पंकज प्रियम हैं। इस ग्रंथ का विमोचन

दिव्यागंता : एक अधूरी दुनियाडॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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  दिव्यागंता : एक अधूरी दुनिया डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" जिनकी जुबान नहीं सुना सकती, तुमको तान। उसके मन के संगीत को, ज़रा धैर्य से सुनो उसका गान। सुन नहीं सकता जो संगीत, ज़रा विचार करो कितने होंगे,उसके मन में गीत। ओझल है,  जिनकी आंखों से, हर रंग जरा सोचो क्या होगी, उसकी जीवन तरंग। छू नहीं सकता जो किसी भौतिकता के अंश को, जरा विचार करो, उसके जीवन के तंक्ष को। दौड़ नहीं , जो चल नहीं सकता,  ज़रा विचार करो, उसकी पीड़ा कोई समझ नहीं सकता। बहुत शोर है, हर ऐसी अन्तरआत्मा में, जो हौसला हर दम जीत का भरती है। कभी पहाड़ो की चोटी छूती, तो कभी अम्बर से विचार बिखेरती है। फिर भी कहीं न कहीं, हर पल इनमें "दिव्यागंता" की एक अधूरी दुनिया बसती है। रचनाकार - डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

अंतर्राष्ट्रीय श्रेया क्लब धार्मिक परिषद का भजन संध्या आयोजन संपन्न

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अंतर्राष्ट्रीय श्रेया क्लब धार्मिक परिषद का भजन संध्या आयोजन संपन्न        अंतर्राष्ट्रीय श्रेया क्लब धार्मिक परिषद द्वारा दिनांक २१.०९.२०२३ को पावन पर्वों के मध्य "एक शाम प्रभु के नाम" भजन संध्या का आनलाइन आयोजन किया गया।        कार्यक्रम का शुभारंभ डा. अर्चना श्रेया द्वारा गणेश वंदना और डा. कमलेश मलिक द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति के साथ हुआ      भजन संध्या में आ. मनीषा श्रीवास्तव, प्रयागराज, आर. एन. सिंह( रुद्र संकोची) कानपुर, डॉ शशिकला अवस्थी, डाॅ. कमलेश मलिक, सोनीपत, अंशी कमल, श्रीनगर गढ़वाल, श्रीमती संतोष तोषनीवाल इंदौर, शोभारानी तिवारी इन्दौर , राम निवास तिवारी आशुकवि, निवाड़ी, प्रवीण पांडे,लखनऊ, डॉ आनन्दी सिंह रावत, आशा झा, ऋतु दीक्षित वाराणसी, शिखा पाण्डेय, डॉ. पुष्पा जैन ,गीता कुमारी गुस्ताख़, विनीता लावानियां बेंगलूरु सतीश शिकारी रतलाम ने अपने भक्तिमय गीतों से मंच को भक्तिमय कर दिया।         आयोजन के दौरान परिषद की संस्थापिका डा. अर्चना श्रेया, संयोजक सुरेंद्र वैष्णव, कार्यकारी अध्यक्ष विनीता लावानियां, संरक्षक सुधीर श्रीवास्तव, पटल प्रभारी सतीश शिका

आलेख - बदलते दौर में रक्षाबंधन

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आलेख -  बदलते दौर में रक्षाबंधन        रक्षाबंधन यानी रक्षा का बंधन। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हर वर्ष इस पर्व को मनाया जाता है।     रक्षाबंधन मनाने के कारणों के अनेक उदाहरण हम सभी के संज्ञान में है। परंतु जहां तक बदलते परिवेश में रक्षाबंधन की बात है तो समय के साथ इस पवित्र पर्व पर भी बदलाव की बयार का असर पड़ा ही है।          आधुनिकता और बढ़ती शैक्षणिक योग्यता ने भी अपना व्यापक प्रभाव इस पर्व पर डाला है।     सबसे पहले मूहूर्त लेकर भी तरह तरह की सूचनाएं भ्रमित करती हैं। इसके लिए संचार माध्यमों और सोशल मीडिया का बहुतायत सुलभ सुगमता भी बड़ा कारण है। पहले के समय में हमारे पुरोहित घर आकर जो दिन तिथि बता देते थे वहीं पक्का हो जाता था। लोग हंसी खुशी से दिनभर पर्व का आनंद लेते थे और यथा सुविधा समय से रक्षाबंधन बंधवाते रहे।        पुराने समय में स्वनिर्मित राखियां, कच्चे धागे प्रचलन में थे जबकि आज सब कुछ रेडीमेड हो रहा है, विभिन्न प्रकार की महंगी राखियां भी बाजारों में उपलब्ध हो जाती हैं, अब तो चांदी की राखियां भी काफी प्रचलन में आ रही हैं/गई है

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन  प्रत्येक भाई बहन का, हार्दिक अभिनंदन,  अनूठा पर्व यह, प्यारा  रक्षाबंधन। राखी के  ये सुंदर धागे, प्यार  की  निशानी,  बड़े   ही  अटूट  ये , प्रेम  की  कहानी। बहन की रक्षा का प्रण लेता, इस मौके पर भाई,  बहन भी करती प्रभु से प्रार्थना, अमर रहे मेरा भाई। राखी का यह  छोटा धागा, होता  बड़ा  ही पावन,  प्राचीन  बड़ी  यह  परंपरा, सच  में  बड़ी  सुहावन।  राखी  मर्यादा की रक्षा में, कृष्ण भी दौड़े आए,  कहीं राह  में रुके नहीं, द्रौपदी  की लाज बचाये। वीर हुमायूँ भागा -भागा, सेना लेकर आया ,  पूरी शक्ति लगाकर उसने, कर्मवती का सम्मान बढ़ाया। त्योहारों  का होता लक्ष्य, सभी लोगों को जोड़ना,  अनमोल राखी का धागा, कभी भी ना तोड़ना। हर भाई बहन की रक्षा, करने का संकल्प ले आज,  सम्मान  करे पुरातन मूल्यों का, आदर  देता रहे समाज। रचनाकार- चंद्रकांत पाण्डेय मुंबई / महाराष्ट्र

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बने विश्व के कीर्तिमान

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इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बने विश्व के कीर्तिमान   कई युगों-जन्मों का सपना।                   लैंडर विक्रम चन्द्रयान ने,  पूरा किया, चन्दा है अपना।।                नेटवर्क वैज्ञानिक समूह,          चांद दक्षिणी ध्रुव चिन्हित प्रत्युह।          भारत "शिवशक्ति" नाम प्वाइंट पर, विश्वजयीअगस्त क्रान्ति तिरंगा फहराकर।।        विश्व में जो था असंभव।        मानव के लिये अब हुआ है संभव।।   अमेरिका, चीन, रुसआदि देशों ने,  भय खाकर वापस लौटा है।                 चौथा भारत देश हुआ,  जो चंद्रतल पर यह विजय तिरंगा फहराया है।।    महान् चार उपलब्धियां :-  अन्तरिक्ष विज्ञान की अद्भुत क्षमता।१  ब्रह्माण्ड रहस्यों का उद्घाटन। २             स्वदेशी उपकरणों की ताकत स्वालंबन ३,              विश्व वैज्ञानिक तकनीक प्रख्यात ४ न।।            चन्द्र परम्परा :-           चन्द्र किरण में अमृत बसती,                शीतलता जग में उड़ेलती। कितने शीतल कतने निर्मल ,              मनभावने, सलोने सुन्दर।। बनते-बिगड़ते रुप तुम्हारे,                   सबसे दुलारे सबके प्यारे।। उपमा, अनन्य -कल्पनाएं :-         

मौन निमंत्रण

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मौन निमंत्रण मौन निमंत्रण लफ्जों का, नज़रों का कोई कर के दिखाओ। मिले जब अनजान राहों में, अंखियां भी बोल कर बताएं। मौन की परिभाषा झुकी नजरों से इज़हार करे लेकर हाथों में हाथ ख़ामोशी की खुश्बू दिल को छू जाएं। चंचल सी नज़रें होठों पर मुस्कान लाएं। - प्रतिभा जैन टीकमगढ़, मध्य प्रदेश

विवाह के बाद भी हनुमान जी ने ब्रह्मचर्य का पालन किया : डाॅक्टर देव नारायण पाठक

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विवाह के बाद भी हनुमान जी ने ब्रह्मचर्य का पालन किया : डाॅक्टर देव नारायण पाठक  नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय प्रयागराज के ज्योतिष, कर्मकाण्ड, वास्तुशास्त्र एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ देव नारायण पाठक ने बताया कि हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला का मंदिर तेलंगाना के खम्मम जिले में है यह एक प्राचीन मंदिर है। यहां हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला की प्रतिमा विराजमान है। यहां की मान्यता है कि जो भी हनुमानजी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है। डॉ.पाठक ने बताया कि पाराशर संहिता में उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी अविवाहित नहीं, विवाहित हैं। उनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला से हुआ है। संहिता के अनुसार हनुमानजी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे। सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया। शेष 4 द