जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन आबो हवा धरा की बदली, मौसम में परिवर्तन। नभ में केवल, बादल दिखते, करते केवल नर्तन।। पहले जैसी ऋतुवें, वर्षा अब नसीब में नहीं रहीं। वह ताजगी, मलयानिल की, न जाने खो कहां गई।। पावस ऋतु में गर्मी जैसा, दृश्यमान है खेत सिवान। कहा गए वो जलद, मेघ वो, ढूंढे रहे, दाता किसान। अब वर्षेगें, तब वर्षेगें, सोच के बीते रात्रि विहान। दादुर मोर पपिहों की प्रिय, कहां गई वो मनहर तान।। यही दुर्दशा मौसम की तो, कैसे आएगा मधुमास। ऋतुओं के परिवर्तन से, घट न जाए श्वास प्रश्वास।। मौसम के व्यतिक्रम से उपजा, कृषकों की परेशानी। और धरा का दूषण बढ़ता, है करता, मानव मनमानी ।। वर्षा पर जो कृषि टिकी थी, है उसकी अब बदहाली। सांसत में, बेचैन कृषक अब, उनके आंगन कंगाली।। कटते जंगल, वृक्ष अभाव से, रुका मेघ का वाहन । झुकी पृथ्वी, उल्टी जल धारा, हो रहा द्वीप संवहन ।। जलवायु परिवर्तन के कारण घटा फसल उत्पादन। रोग बढ़े, पीड़ित मानवता, कैसे भला रहे निजशासन।। मानव ने सुविधा के खातिर, दुख को न्योत बुलाया । चेते नही समय से भैया, है दुष्परिण