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कविता - कभी हमारी भी सुना कीजिए जनाब!

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एक गरीब अपने मालिक से क्या कहता है? आइये इस कविता के माध्यम से समझने का प्रयास करें।  (कविता)  कभी हमारी भी सुना कीजिए जनाब!   हम सबकी सुनते हैं, कभी हमारी भी सुना कीजिए जनाब। हम भी परिवार वाले हैं, दो वक्त की रोटी चाहिए जनाब।  सुना था आप बड़े दयालु हैं जनाब, मुझ पर भी एक बार रहम कर दीजिये जनाब।  बरसो से सेवा की है आपकी, एक बार मुझ पर भी तरस खाइए जनाब।  आप बड़े अमीर हैं,   कुछ गरीबों को भी दान कर दीजिये जनाब।  एक दिन महल छोड़ झोपड़ी में आइये जनाब। हम सबकी सुनते हैं, कभी हमारी भी सुना कीजिए जनाब। हम भी परिवार वाले हैं, दो वक्त की रोटी चाहिए जनाब।  - गौतम विश्वकर्मा (प्रधानाचार्य) शिवा एकेडमी, सुकृत- सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) फोटो साभार- गूगल

पिता

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पिता रात ना हो तो दिन का महत्व नहीं होता,  हार ना हो तो जीत का मजा नहीं होता, संघर्ष वाली जिंदगी में कोई स्वाद नहीं होता, पिता के बिना जीवन , जीवन नहीं होता l हर मोड़ पर उंगली थामे नजर आता है, कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ चुपचाप उठाता है, सहता है बच्चों के ताने फिर भी प्रेम लुटाता है, जीवन में पिता का प्रेम कभी समझ नहीं आता है l कोई लड़का लड़की में फर्क नहीं होता है, पिता के मन में प्यार का बंटवारा नहीं होता है, जहां भी जीवन जगमगाया है, वहां पिता भी मन्नतें मांगते नजर आया है l जिनके होने से मैं खुद को मुकम्मल मानती हूं, मैं खुदा से पहले अपने पिता को जानती हूं, पिता से बड़ा कोई उपहार नहीं होता, पिता के बिना घर परिवार नहीं होता l नींद अपनी भुलाकर सुलाया सबको, जीवन की हर खुशी से मिलाया हमको, दर्द कभी ना देना उनको, खुदा ने पिता बनाया जिनको l रचनाकार- प्रिया जैन,  कटक, उड़ीसा 

आपकी इजाजत से

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आपकी इजाजत से छोड़ देंगे उस दिन से पीछा तुम्हारा, जब पीछे से मुझे बुलाओगी... मेरी उन कविताओं को जब, तुम गा-गा कर मुझे सुनाओगी... भूल जाएंगे उन सब को, जो सोचे थे कई इरादे हम ... तोड़ देंगे उन कसमो को, और जो मिलकर किए थे वादे हम ... फिर बाद में तुम्हारे उस मोड़ के किनारे, इंतजार में तेरे ठहर जाएंगे कहीं..  फिर आकर वापस से जिंदगी में तुम्हारे, यादों के कहर बरसाएंगे नहीं... फिर भी लिखते रहेंगे ना हम, कभी याद में तुम्हारे... अपना लेंगे उन्हीं को जो मिलते थे बिछड़ने के बाद के सहारे ... फिर एक आखिरी मुलाकात की जब आस हम लगाएंगे, बिना इंतजार किए एक पल, हम पास तुम्हारे आएंगे ... बस आरजू बरकरार रखना, फिर मुलाकात की दोबारा ... वादा है तुमसे कि भूलेंगे नहीं, कसम से हम, कभी नाम यह तुम्हारा.. रचनाकार- विवेक राज श्रीवास्तव कुशीनगर 

आइये पढ़ते हैं अर्चना कोहली जी द्वारा लिखी हास्य-व्यंग्य कविता

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 आइये पढ़ते हैं अर्चना कोहली जी द्वारा लिखी हास्य-व्यंग्य कविता    हास्य-व्यंग्य कविता रोज सवेरे चाय पर पति से तकरार होती है बिना बात ही बहस-बीज बोती वह रहती है। पीते-पीते चाय पर मुद्दा बड़ा संगीन उठता  सुबह-सवेरे ही मूड़ मेरा बरबाद कर देता।। क्या बनेगा आज नाश्ते में प्रश्न दागा जाता सोच-विचार का कुछ समय मिल न पाता। नाम कुछेक मैं पतिदेव को बतलाती जाती सहमति न किसी पर भी उनकी बन पाती।। आज गरम चाय पीने का मजा बेकार हुआ बिना बात ही वाक-युद्ध का भारी वार हुआ। अंत में कहा, जो खाना है अब बतला भी दो बात का बतंगड़ बनाकर खुंदस न दिलाओ।। क्यों नाश्ते पर हर रोज ही मुझे तंग करते हो बिना कारण ही योद्धा बनकर जंग लड़ते हो। घूमने-फिरने का गत इतवार वादा तुमने किया क्या उससे बच निकलने का बहाना है बनाया।। बेकार की बहस से दिन मेरा हो गया है खराब शॉपिंग में हीरे का हार देकर कर दो हिसाब। नाश्ता भी आगे से हर इतवार तुम्हीं बनाओगे हरजाने में अबसे तनख्वाह हाथ में मेरे दोगे।। -अर्चना कोहली नोएडा (उत्तर प्रदेश)

शब्दों में बदल तुमको लिखते जाना : अनूप कुमार श्रीवास्तव

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शब्दों में बदल तुमको लिखते जाना :  अनूप कुमार श्रीवास्तव                     (कविता) ये मेरा बेवजह ही  दीवारों से बतियाना , तुम्हारी राहें तकना  तुम्हें पा जाना। कहीं कुछ खुद को टटोलना प्याली चाय की भूल जाना,  कुछ कुछ तुम्हें  शब्दो में बदल कर लिखतें जाना। तुम्हें  खो देना   हमें रास नहीं आता , बहुत अच्छा लगता है तुम्हारा आइना बन जाना।  तुम्हीं में  आसमां बन जाना , तुम्हीं में समुंदर बन जाना।  छुपा के कैसे कैसे  तुम्हें यादों में लाया हूं ,  वादों में लाया हूं । हकीकत इतनी सी है  तुम्हें भूल कब पाया , पराया अजनबी रिश्ता  हमें कुछ नहीं कहना । हमारी सूब्हो शाम की  इक प्याली चाय जैसी , सुकुन दिन भर की लगती है।  कभी जब चांद कोई  लहरों में उतरतें देखता हूं ,  तुम्हारी खामोशियां कैसी तुम्हें संवरतें देखता हूं । तुम्हारा अंदाज अपना है , हमारा अंदाज अपना है , सभी के जीने का अंदाज़  अपना अपना है। -अनूप कुमार श्रीवास्तव 

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी -अर्चना कोहली

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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी -अर्चना कोहली  (कविता) कृशकाय तनु लेकिन इरादा अटल था साधन अल्प पर देश-प्रेम प्रबल था। सत्य-अहिंसा-शांति को ढाल बनाया देश पर गांधी जी ने सब अर्पण किया।। बम-तोप भी लाठी के आगे हार गए अहिंसा-समिधा से आजाद करवा गए। चरखे खादी से आत्मनिर्भर बना दिया स्वाभिमान से रहना हमें सिखा दिया।। भेद-भाव-भित्ति से देश संकुचित था अस्पृश्यता के भंवर में देश व्यथित था। आत्मबल से  मिटाने का संकल्प लिया एकता की राह पर देश को चला दिया।। डांडी मार्च से फिरंगियों को हिला दिया पैदल ही समर्थकों संग सफर तय किया। रवींद्रनाथ ठाकुर से महात्मा नाम दिया तो सुभाष चंद्र ने राष्ट्रपिता कह बुलाया।। सत्कर्मों से गांधी जी अति महान बने थे अनेक मुख्य आंदोलनों के प्रणेता बने थे। स्वच्छ भारत का सपना इन्होंने देखा था उसी की डगर पर आज समस्त  देश है।। "अंग्रेजो भारत छोड़ो" का नारा दिया था देश से उन्हें भगाकर ही दम लिया था। सदा चले सादा जीवन उच्च विचार पर बल दिया इन्होंने सात्विक भोजन पर।। महानता की पराकाष्ठा हैं राष्ट्रपिता गांधी मातृ-पितृ भक्ति की एक मिसाल गांधी। आज भी भारत की आत्मा म

101 नवागंतुक कवियों के सम्मान में प्रभा जी ने लिखी कविता, बढ़ाया डॉ सत्या होप टॉक क़ा मान

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101 नवागंतुक कवियों के सम्मान में प्रभा जी ने लिखी कविता, बढ़ाया डॉ सत्या होप टॉक क़ा मान वाराणसी :  काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर सत्य प्रकाश के आह्वान पर देश के कोने कोने से जुड़ रहे साहित्यकारों ने शिक्षा अभियान को बल देने के लिए अपना संपूर्ण मन बना लिया है.  आज प्रभा दुबे जो रीवा मध्य प्रदेश से अनुज्ञा सदस्य के रूप में डॉक्टर सत्य प्रकाश जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, उन्होंने नवागंतुक कवियों के लिए स्वागत ध्येय कविता लिखा है, शिक्षा के इस अभियान का महत्व भी बताया है और देश के लिए कितना प्रासंगिक है यह अभियान इसको भी रखा है!  जो सदस्य इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं, वे सभी कवि के साथ कॉफी फेसबुक ग्रुप में जुड़ रहे हैं.  ऐसी चौदह 10 दिवसीय कार्यशालाओं को पूरा करने के पश्चात, डॉ सत्य प्रकाश क़ा मानना है, कि समाज के प्रति साहित्यकारों ने जितना अच्छा दायित्व निभाया है, इससे समाज के मानसिक तनाव को दूर करने में बहुत मदद मिली है.  महामारी के इस काल में इस तरह की यह पहली वर्चुअल मीट कार्यक्रम है जिसमें, जुड़ने वाले सदस्य पूरे वर्ष कार्यशाला में भाग लेते रहत

आइये पढ़ते हैं गौतम विश्वकर्मा द्वारा लिखित कविता- अकेले बढ़ते जा....

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आइये पढ़ते हैं गौतम विश्वकर्मा द्वारा लिखित कविता  (कविता) जीवन के इस दौर में.... अकेले बढ़ते जा.... 2 जीवन में करना है संघर्ष.... आगे बढ़ना है संघर्ष.... अकेले बढ़ते जा.... 2 एक दिन होगा पीछे कारवां.... अकेले बढ़ते जा.... 2  आएगी एक दिन मंजिल तेरी.... तू कठिन मार्ग पर चलते जा.... 2 जीवन के इस दौर में.... अकेले बढ़ते जा.... 2 एक दिन होगा पीछे कारवां.... अकेले बढ़ते जा.... 2 रचनाकार : गौतम विश्वकर्मा  संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष/प्रधान ट्रस्टी  सोनभद्र मानव सेवा आश्रम (ट्रस्ट) मोबाइल- 9935694130  

कल का शिलालेख लिखती "लेखनी" है डॉ सत्या होप टॉक

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वाराणसी :  काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं डॉ सत्या होप टॉक नाम से सोशल मीडिया एजुकेशन रिफॉर्म चला रहे डॉ सत्य प्रकाश पांडेय ने देश के पत्रकारों, कवियों,  शिक्षाविदों, तथा साहित्यकारों का सम्मान अपनी कविता के माध्यम से किया है. उनकी कविता हे! लेखनी! कुछ सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट और पत्रकारों के लिए एक सम्मान के रूप में मानी जा रही है.कविता के माध्यम से कवि के साथ काफी कार्यक्रम और मीट कार्यक्रम के लिए आह्वान करते हुए  वैज्ञानिक ने यह कविता प्रस्तुत की है. हे लेखनी! तू ही साथ रह! हे लेखनी! तू ही साथ रह! कितने रहस्यों के परत! तू खोल देती! कितने रहस्यों को!  निरंतर जन्म देती! हे लेखनी! तू साथ रह! जहाँ भी ठिठक कर! रुक जाती! लिख जाती है तू अमिट! जहाँ पर तू दृष्टि को है साध देती! बदल देती है जगत का दृष्टिकोण! हे लेखनी! तू साथ रह! थोथा था! चीखता! चित्कार करता! यह मन!अनमना सा! घूमता था यहां वहां! रेंगता था! पर! खींच लिया तूने! अपने आगोश मे! हे! लेखनी! हाँ, खींच लिया तूने! अपने परिपेक्ष मे! देख फिर! लिखने लगा है वही! मन बुनने लगा है! एक नव चेतन! लेखनी! तूने रच दिया! आज एक