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आइये पढ़ते हैं अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल

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आइये पढ़ते हैं अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल                          गज़ल   उस मुहब्बत  से भरम  उठ जायेगा ,   जख्म अपने अगर हम दिखाने लगे।1  कोई सूरत कोई चेहरा अगर देखूँगा ,  खुआब में किसके हम लुभाने लगे।2 चाहतें दिल की भी यहां रूमानी है, रंग आंखों में भरे आएं मिलाने लगे।3  फिर सरकतीं है उम्मीदें  तन्हाई में ,  फिर कोई आके यही समझाने लगे।4 टूटता कितना है दर्पन सूरत ये लिए, आकर परछाई जो यहां सताने लगे।5 चदं शिकवों की शिकायत हो कैसीं, चंद लम्हों  में तबियत घबड़ानें लगे।6 ना सवालात  ना फरमाइशें अपनीं , पांव कांटो पे रख गुलाब उगाने लगे।7 -अनूप कुमार श्रीवास्तव   

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- अपनी आदत में

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- अपनी आदत में                गज़ल  अभी बहुत कुछ है अपनी आदत में , ना जाने कबसे हो तुम  मेरी इबादत में । ये शाम और ये सूबह  ठहर गई कबसे , खुलें खुलें से हैं गेसू किस क़यामत में । संभल संभल के तुम चलना इस ज़माने में कोई तो और नहीं हैं तेरी नजाकत में । अब तुमको चाहूं तो कह दूं ये बात भी कैसे ,  डरा डरा सा हूं शायद  इसी शराफ़त में । झुकी झुकी सी हैं  पलकें,  छुपी खुमारी हैं ,  शराब जैसी हों तुम किसी शरारत में । अभी बहुत कुछ है अपनी आदत में , ना जाने कबसे हो  तुम मेरी इबादत में । ये शाम और ये सूबह  ठहर गई कबसे , खुलें खुलें से हैं गेसू किस क़यामत में । संभल संभल के तुम चलना इस ज़माने में कोई तो और नहीं हैं तेरी नजाकत में । अब तुमको चाहूं तो कह दूं ये बात भी कैसे ,  डरा डरा सा हूं शायद  इसी शराफ़त में । झुकी झुकी सी हैं  पलकें,  छुपी खुमारी हैं ,  शराब जैसी हों तुम किसी शरारत में । अब कैसे चूम भी लूं  तुम्हारी यादों को, गुलाब जैसी हों तुम  मेरी रिवायत में । महक रहा हूं अभी तक  तेरी सोहबत से , न‌ई ग़ज़ल सी हो तुम मेरी मोहब्बत में । ना जानता हू

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- मेरी खातिर जरा सा मुस्कुरा दो

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- मेरी खातिर जरा सा मुस्कुरा दो                    गज़ल  जरा जुलफों में आसरा दिला दो  मेरी खातिर जरा सा मुस्कुरा दो।1 जिया कैसे यहां मिटके अभी तक , अगर चाहो  यहां अपनी दुआ दो ।2  बिछड़ जाते  जमाने में  सभी तो भरोसा तुम  अपना तो दिला दो। 3 चमन उलझा कलीं तड़पी बचालों बहारों यहां लाओ खुश्बू  उड़ा दो ।4 रूठें चाहे  देवा तैतिस करोणा, मेरी माता मुझें दर्शन दिला दो।5 दंभी  घमंडी  सभी  कैसे हुये  है, सभी में अपनत्व भी मां जगा दो। 6 लिखीं किसने मेरी किस्मत बता दो ,  खुआबों को    मिरे नींदे  जला दो।7 कसम अपनी नहीं रह गई  यहां पे , यहा  आकर  मिरा पीना  छुड़ा दो।8 उतर आयी सुरत दर्पन में जैसे, मुझे अपने खुवाबों से मिटा दो।9 जुदा होने  से  पहले हि  चलेंगे , जहां से भी फसाने तो मिटा दो।10 -अनूप कुमार श्रीवास्तव   

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- तन्हा तन्हा इस शहर में

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- तन्हा तन्हा इस शहर में               (गजल) तनहा तनहा इस शहर में  तनहाई ने आवाज दी, तेरा चेहरा याद आया  परछाई ने आवाज दी। छुप ग‌ई पलकों में यूं  शाम की ये रौनकें, दिल ने समझा कि कहीं मैकशीं ने आवाज दी। राहगीरों के मकां थें  हम कहां जातें किधर, उम्रभर के ख़ालीपन में ठोकरों ने आवाज दी। नींद में भी आ के कोई छेड़ता है इस तरह, उठ के बैठें हम सहर अंगड़ाई ने आवाज दी। -अनूप कुमार श्रीवास्तव 

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- माँ

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल- माँ   (माँ) बचपन जिसका मां की बाहों में बीता, मां का आंचल धरती अम्बर लगता है।1 मां की  बातें  गहरीं  बातें  यादों में , अमृत मंथन मौन समंदर लगता है।2 ये जग भी घर लगता सूना पन डसता मां के   बीना खाली मंदर लगता है ।3 अब का  जीना दुष्कर जैसा  लगता है, बदलीं सबकीं आदत  से डर लगता है।4 ममता की क्या कीमत ये जग  दे पाया , मां का  तारा  आश्रम  देकर   लगता है।5  सारे  रिश्तों   में मां   धूरीं   होती   थीं , फ्लैटों  में अब बिस्तर अंदर लगता है।6 पीले  लेने   दो जी  लेने  दो भी कुछ, सीने   में है  दहकें  अक्सर  लगता है।7  मां को शिकवा कब था लेकर कीसी को ,   कहती   बेटा    मेरा   जेवर  लगता  है।8 मेरी    मां थी   जैसें  डाली   फूलों  की ,  आगन का वो दरख्त चश्मेंतर लगता है।9  मां के  होते  मीले   सारे  रिश्तें जो ,  दादी नानी  में अब अंतर लगता है ।10 -अनूप कुमार श्रीवास्तव  कानपुर, उत्तर प्रदेश 

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल -दिवाना हो गया

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल -दिवाना हो गया।  मुद्दतों  की   प्यास  भी    जागी  हुई, दिल किसी का अब दीवाना हो गया।1 कल का डूबा चांद  अब निकला है,  इस रात का जश्न मनाना  हो गया।2 खुश्बुओं के बादल है  बिखरें हुए, जुल्फों का भी लहराना हो गया।3 इक नया सा गीत तुम भी सुना दो, आईने  का  कुछ  लजाना हो गया।4 छेड़तें  से गम चुभतीं परछाइयां , कुछ खाली  सा पैमाना हो गया ।5 प्यार को भी तरजीह देना सींखिए , इस जहां में अब खिलौना हो गया।6 अश्क बहानें  के  रास्तें रोकिए, फिर वही पे मुस्कुराना हो गया।7 रख लिजिए कीमत अभी लाज कीं, भलें  अभी  नया  जमाना  हो  गया।8 हर किसी की अपनी अपनी खुशियां,  हर खुशी  का भी  सजाना हो  गया।9 मात पे गम न शह पे ना हो खुशीं , अब  अनुप से मुस्कुराना हो गया।10 -अनूप कुमार श्रीवास्तव   कानपुर, उत्तर प्रदेश