मृग व खग
मृग व खग ••••••••••••• मृग के दृग में झाँकता खग । प्रेमिल नैनों में बसा है जग । मूक संवाद करें द्वय नयन, दृश्य अति मनोरम रहा लग । मधुमय भाषा अनुराग की । स्वर लहरी रूचिर राग की । कण कण में व्याप्त प्रीत है , उर उद्दीप्त प्रभा चिराग की । कौन है अछूता मनोभावों से । प्रेम, द्वेष व भय के प्रभावों से । प्रेमासिक्त मृदा से रचा जीव, दूषित हुआ मन भेदभावों से ।। - सीमा वर्णिका कानपुर, उत्तर प्रदेश