मृग व खग

मृग व खग
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मृग के दृग में झाँकता खग ।
प्रेमिल नैनों में बसा है जग ।
मूक संवाद करें द्वय नयन,
दृश्य अति मनोरम रहा लग ।

मधुमय भाषा अनुराग की ।
स्वर लहरी रूचिर राग की ।
कण कण में व्याप्त प्रीत है  , 
उर उद्दीप्त प्रभा चिराग की ।

कौन है अछूता मनोभावों से ।
प्रेम, द्वेष व भय के प्रभावों से ।
प्रेमासिक्त मृदा से रचा जीव,
दूषित हुआ मन भेदभावों से ।। 

 
- सीमा वर्णिका 
कानपुर, उत्तर प्रदेश

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