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कुछ भी साथ न जाएगा : चंद्रकांत पाण्डेय

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कुछ भी साथ न जाएगा  गुजरा  बचपन  बीती  जवानी  ,  लाभ मिला क्या हुई क्या हानि ?  सपनों    का   संसार  सजाया  ,  काया   तो   अब    हुई  पुरानी ।  मन  में   सपने  रंगीन  चुने  थे  ,  आशाओं का न  कोई पारावार ।  थोड़ी   झोली   ही   भर  पायी ,  रूठ    गए   अपने    सरकार  ।  वृद्धावस्था  खुद   एक  बीमारी  ,  राह   पड़े   ना   कोई   दिखाई  ।  अपने  भी  सब   दूर  हो  लिए  ,  कैसे      होगी    मेरी    विदाई  ।  अकेला   जीवन    महान   कष्ट  ,  दुःख  भी  अपने   बोल  न पाते ।  भेद  दिलों   के  खुद   ले  घुटते ,  अनुभव की गठरी खोल न पाते ।  अक्सर  लोगों का हाल ये  होगा ,  देख   दशा  मेरा   मन   मुस्काये ।  जी लो  जीवन औरों  के ख़ातिर ,  साथ  किसी  के कुछ  ना जाए  ।  - चंद्रकांत पांडेय  मुंबई  / महाराष्ट्र