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मजदूर दिवस की औपचारिकता

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मजदूर दिवस की औपचारिकता *********** आज एक बार फिर हम सब मजदूर दिवस मना रहे हैं, क्या कहूं कैसे कहूं कि हम मजदूर वर्ग का सम्मान कर रहे हैं या एक बार फिर उनका अपमान कर रहे हैं अथवा औपचारिकता वश मजदूर दिवस मना कर उन्हें ही आइना दिखा रहे हैं, उनके जले पर नमक छिड़क रहे हैं। जो भी कर रहे हैं, अच्छा ही कर रहे हैं  हम कुछ भी कर रहे पर ईमानदारी से विचार नहीं कर रहे हैं, मज़दूरों के महत्व को बिल्कुल नहीं समझ रहे हैं मज़दूरों को बेबस, लाचार, असहाय समझ रहे हैं उन्हें संपूर्ण इंसान तक नहीं समझ रहे हैं। बड़ा अफसोस है कि हम सब मज़दूरों को अलग अलग खांचों में  सुविधानुसार डालकर खुश हो रहे हैं, हम क्या कर रहे और क्या समझ रहे हैं? मजदूर के बिना क्या एक कदम हम आप या हमारा राष्ट्र आगे बढ़ सकता हैं? यदि हां तो विकल्प अब तक पार्श्व में क्यों है? और नहीं तो मजदूरों को हम हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं? उन्नति, प्रगति की राह में मजदूरों को स्तंभ मान उनका मान सम्मान क्यों नहीं कर रहे हैं, मजदूर दिवस मनाने की आवश्यकता को हम इतना महत्वपूर्ण क्यों मान रहे हैं? मज़दूरों की हर जरूरत यथासमय पूर्ण हो ऐसा को

अपने जज़्बात लिखता हूँ।

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शीर्षक - अपने जज़्बात लिखता हूँ। महज़ मैं कविता नहीं अपने जज़्बात लिखता हूं, मैं अपनी जिंदगी के ही आस पास लिखता हूं। मुस्कुराहटों के पीछे छुपे दर्दे आवाज लिखता हूं, कभी खामोशी तो कभी अपने हालात लिखता हूं। न कह पाया किसी से जो मैं ऐसी बात लिखता हूं, कभी मैं जीत लिखता हूं कभी मैं हार लिखता हूं। तड़प रही सीने में ज्वालामुखी बरसात लिखता हूं, चेहरे के पीछे के कुछ अनसुलझे राज़ लिखता हूं। गुज़रे बीते कल की बातें चलो मैं आज लिखता हूं, पहचान भले हो ख़ूब मेरी मैं अनजान लिखता हूं। मैं कुछ नहीं बस अपने दिल की आवाज लिखता हूं, कभी कविता- कहानी तो कभी अखबार लिखता हूं। साहित्यकार एवं लेखक - डॉ आशीष मिश्र उर्वर  कादीपुर, सुल्तानपुर उ.प्र.

(मजदूर दिवस) नैनों में सजते सपने, हाथ उसके कभी न थकते

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            (मजदूर दिवस)  नैनों में सजते सपने, हाथ उसके कभी न थकते गर्म हवाओं की थपेड़ों से वो घबराता नहीं, जाड़े की ठिठुरन लक्ष्य से उसे बाधित करता नहीं... नैनों में सजते उसके सपने, हाथ उसके कभी न थकते, किसी की आशियां को बनाते, ख्वाब अपने आशियां की बुनते. भाग्य का वो स्वयं निर्माता है, मेहनत से जी न चुराता है  मिट्टी से सने हाथ हर ईंटों से पहचान बनाई है, मुस्कराया हृदय से वो, खून पसीने की कमाई है.. बच्चों के कपड़े, मुन्नी की अम्मा की साड़ी लाया , मिठाई, खिलौने लेकर आया खुशियों की बारिश संग लाया.. उसे अपनी टूटी चप्पल की परवाह कहां है , मुन्नी मुन्ने की पढ़ाई की परवाह उसका सारा जहां है, पढ़ा लिखा कर बच्चों को अफसर बनाना है, लू और ठिठुरन को उसने दोस्त माना है.. लाख कोई मुसीबत आए , बारिश के संग क्यूं न नहाए, फौलाद हाथों के संग अपने स्वप्न को सच करना है, मेहनत हमारी भी एक दिन रंग लायेगी, बच्चे अफसर बन जाएं, मिठाई मोहल्लों में बांटी जाएगी.. अपने कर्म से अपना भविष्य बनाना है, नभ, पृथ्वी तुम्हें अपना भगवान हमने माना है... - उमा पुपुन ✍️ रांची, झारखंड

मार्तण्ड कविसम्मेलन सुबोध कुमार शर्मा शेरकोट गदरपुर उत्तराखण्ड की अध्यक्षता में संपन्न

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मार्तण्ड कविसम्मेलन सुबोध कुमार शर्मा शेरकोट गदरपुर उत्तराखण्ड की अध्यक्षता में संपन्न मार्तण्ड साहित्यिक साँस्कृतिक एवं सामाजिक सस्था भारत पंजीकृत लखनऊ, संस्थाध्यक्ष डॉ० एस.पी. रावत एंव सुरेश कुमार राजवंशी के द्वारा आयोजित 21 अप्रैल  2024 को मासिक गोष्ठी एवं सरस कवि सम्मेलन का आयोजन ऑनलाइन किया गया। इस कार्यक्रम के उप अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश मुख्य अतिथि प्रो० जयनाथ सिंह गया बिहार तथा विशिष्ट  अतिथि आ० रामरतन यादव  'रतन' उत्तराखण्ड रहे। इस कवि सम्मेलन काट संचालन डाॅ एस पी रावत लखनऊ ने किया तथा संयोजन सुरेश कुमार राजवंशी लखनऊ ने किया।  कवि सम्मेलन का शुभारम्भ सुस्मिता सिंह जी लखनऊ की वाणी वन्दना से हुआ। उपस्थित सभी कवियों एवं कवयित्रीयों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि रचनाएं सुनाकर श्रोताओं और कवियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकार  सर्वश्री  सुबोध कुमार शर्मा शेरकोट गदरपुर उत्तराखण्ड,महेंद्र भट्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश,प्रो जयनाथ सिंह गया बिहार,रामरतन यादव उत्तराखण्ड, सुस्मिता सिंह लखनऊ, रश्मि लहर  लखनऊ,डा• इन्दु कुमारी मधेपुरा बिहार, न

छाँव की तलाश

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छाँव की तलाश  *************************** भगवान भाष्कर  की  तीव्र किरणें,  इन  दिनों धरती को जला  रही हैं ।  पशु , पक्षी ,पादप , वृक्ष मनुज को ,  गर्मी    से   पागल   बना   रही  हैं ।  जलती    धरती  तवा   के   जैसी  ,  पानी जैसे बदन से निकले पसीना ।  तेज धूप  से व्याकुल  पथिक सब  ,  घने  पेड़ की  छाया में  चाहे जीना ।  दूर -  दूर   तक  सड़कों   पर  भी  ,  पहले  से   वृक्ष  न   पड़ें   दिखाई ।  गर्मी  अब  बेतहासा   बढ़  चली है ,  पुराने  पेड़ों  की याद सबको आई ।  संतुलन   प्रकृति  का खुद  सभी ने ,  अपने ही हाथों जानकर बिगाड़ा है ।  कुदरत   कहर  अपना बरपा रही है , मानव की कमियों ने उसे पछाड़ा है।  आने वाली  अपनी  पीढी़  को  हम ,  ऐसी  वीरान   धरती  ही  देंगे  क्या ?  खुद   तो  मुशीबत  में  घिर   गए  हैं ,  हरी पृथ्वी  दे अहशान न  लेंगे  क्या?  अंकुश   लगाएं   वृक्ष   काटने   पर  ,  वृक्षारोपण  की हो चहुँ ओर भरमार ।  व्यक्तिगत , संस्थागत हर प्रकार  से  ,  दिल  खोल  कर मदद करे  सरकार ।  - चंद्रकांत पांडेय,  मुंबई  / महाराष्ट्र

वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी का हुआ सम्मान

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वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी का हुआ सम्मान (पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जन भावना पत्रिका के प्रदेश ब्यूरो ने किया सम्मान) सोनभद्र :   वरिष्ठ पत्रकार मीडिया फोरम ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सोन साहित्य संगम के निदेशक पंडित मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी जी को पत्रकारिता एवम साहित्य के क्षेत्र में अविस्मरणीय एवम उल्लेखनीय योगदान देने के लिए जन भावना पत्रिका के उत्तर प्रदेश ब्यूरो राकेश शरण मिश्र ने जन भावना पत्रिका परिवार की तरफ से उनके सोनभद्र आगमन पर  पुष्प माला, श्री राम नाम का फटका ओढ़ाकर नगर स्थित उनके निज आवास पर सम्मानित किया । इस अवसर पर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक एवम सोन साहित्य संगम के संरक्षक किशोर न्यायालय बोर्ड के सदस्य ओम प्रकाश त्रिपाठी एवम अधिवक्ता पत्रकार रामानुज धर दिवेदी , पत्रकार संजीव कुमार श्रीवास्तव सहित दर्जनों पत्रकार उपस्थित थे। इस अवसर पर जन भावना पत्रिका के उत्तर प्रदेश ब्यूरो राकेश शरण मिश्र ने कहा कि मिथिलेश दिवेदी जी ने अपनी लेखनी से  पत्रकारिता में जो मुकाम हासिल किया है वो अनुकरणीय और वंदनीय है।  वह