नारी का जीवन : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

 नारी का जीवन : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

बरसों से खामोशी में जीती- मरती नारी ,
कभी भू्ण हत्या, कभी दहेज प्रथा,
कभी बाल विवाह का शिकार होती नारी।
रीति रिवाजों के पर्दों में छुपकर, अंधेरों में  सिसकती नारी।
रसोई की कलम पकड़ कर, दुनिया में इतिहास रचती नारी।
कभी दुर्गा कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी का रूप धारण करती नारी, देवी स्वरूप देवालय तक सीमित,
 घर- घर में बरसों से शिवालय में बैठी रोती नारी।
कभी समाज की  कुप्रथाओं ,
कभी समाज के तानों का शिकार होती नारी।
अपमान सहती, मानसिक तनाव सहती, नारी।
बदल रहा है, जमाना।
सशक्त भारत में जहाज उड़ाती नारी।
बदलते परिवेश में, शिक्षा और अधिकार के लिए लडती नारी।
सदियों पुरानी बेड़ियों से, शिक्षा का दामन थाम आगे बढ़ती नारी ।
बरसों पुरानी परंपराएं बदली,
रूप बदला, अधिकार बदले, ढूंढती है, अपना अस्तित्व नारी।

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