लिखनें का मुगालता पालनें वालों के नाम एक पाती - अज्ञात लेखक

लिखनें का मुगालता पालनें वालों के नाम एक पाती - अज्ञात लेखक 

आप लोग के समक्ष "अपनों के बीच अपनी बात" के तत्वावधान में कुछ कहना चाहता हूं।

साहित्य वास्तव में है क्या मुझे याद आता है जब मैं शुरूआत किया था, मैं उन दिनों अखबार में छप रहा था।
बी.एस.सी का छात्र था, गणित के प्रोफ़ेसर गणित पढ़ा रहे थे। मेरे मित्रो ने बताया कि अंशु *कविता* लिखते हैं अखबार में छपते हैं तो प्रोफेसर सर ने बोला कि कोई बड़ी बात नही है लाओ मैं लिख देता हूं। 

"मैं कोई गीत गाता हूँ मैं तराना लिखता हूं, आसमान को झुकाने का हौसला रखता हूं।"

कोई बड़ी बात नहीं कविता लिखना। बेहतरीन तरीक़े से मज़ाक उड़ाया गया, सभी 100 बच्चों से भरी कक्षा हंसी से गूंज गई। उसके बाद उनका कार्यकाल ख़त्म हुआ। अंत में उन्होंने बुलाया। कविराज नाराज़ हो, मैंने कहा- सर आपकी बातें सोना-चांदी है आप जो भी कहेंगे सही कहेंगे। उन्होंने कहा - वेरी गुड मैं तुम्हारी रचनाएं पढ़ता हूं। दैनिक भास्कर मे सप्ताह में काव्य वाले कालम में तुम्हारी रचनाएं रहती हैं। ईमानदारी से बताऊं, मज़ा नहीं आ रही हैं। 

कविता लिखना इस दुनिया का सबसे कठिन काम है, शब्दों का चयन करना उससे भी कठिन काम हैं। हिंदी कविता लिखते हो तो आपको हिंदी शब्दों का विशेष ध्यान रखना होगा। ग़ज़ल लिखते हो तो बह्र का विशेष ध्यान रखना होगा। गीत लिखते समय भाव और बह्र का विशेष ध्यान रखना होगा। उर्दू विधा में लिखते हो तो उर्दू का विशेष ध्यान रखना होगा।

उन्होंने कहा - बेटा साहित्य में हमेशा एक बात ध्यान रखना झूठी तारीफ़ से बचना, जब अपनी रचना को इक बार लिखना तो ईमानदारी से उसे 5 बार पढ़ना और सोचना क्या सच में ये रचना अच्छी हुई है या नहीं हुई।

तुम्हारी कोई कितनी भी तारीफ़ करे, तुम अप्रभावित रहना। साहित्य में आगे बढ़ने का क्रम है। तुम्हारी कोई कितनी भी बुराई करे उससे जरूर प्रभावित होना कि आखिर कमी कहां रह रही है। उसे सुधार कर आगे बढ़ जाना। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ तुम हमेशा पढ़ाई के साथ इसमें भी जरूर अव्वल रहोगे। 

उनका इतना कहना मेरे जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ गया।।
आप सभी से बताते हुए अत्यंत दुखी महसूस कर रहा हूं कि 85% रचनाकारों  की रचनाएं  बिल्कुल ही ख़ारिज हैं। इनका कोई भी मोल नहीं है मुझे पता है कि आपकी अपनी  रचनाएं बच्चों की तरह है और कोई बच्चो को बुरा कह देता है तो ऐसा लगता है कि क्या न कर दें। 

मगर यह सच्चाई है‌ कि आप मे से 70%  रचनाकारों के रचनाओं का कोई स्तर नहीं। बिल्कुल भी काम की नहीं हैं।
हो सकता है कि आपकी इन रचनाओं को बहुत सी तवज्जह मिली होगी, लोगों ने आपको फेसबुक में लाइव सुना हो, व्हाटस अप में आप को तवज्जो मिला हो, लोगों ने काल करके आपको तवज्जह दिया हो मगर सच यह है कि रचनाएं का कोई स्तर नहीं है।

आप एक बात ध्यान रखिए फेसबुक एक आभासी दुनिया हैं यहां तवज्जह यूं ही मिलती है। यहां पर तवज्जह से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि साहित्य आपके फेसबुक मित्रों की तवज्जह नहीं मांगता है साहित्य आपकी परख मांगता है। 

फेसबुक व्हाटसअप वो दुनिया हैं जिसमें तुम मेरी तारीफ़ करना, मैं तुम्हारी तारीफ़ करूंगा। इतने में ही उनकी रोटी सेकी जाती है। इससे आपका कभी भी विकास नहीं होगा आप एक सीमित दायरे में सिमट कर रह जाएंगे। 

मंच-मंच का खेल से कोई बड़ा साहित्यकार नहीं हो जाता , प्रशस्ति-पत्र इकट्ठा कर लेने से कोई वरिष्ठ साहित्यकार नहीं हो जाता । 50-60 कवियों को जान लेने से कोई बड़ा साहित्यकार नहीं हो जाता । उसके लिए बड़ी मेहनत करनी होती है। बहुत सारा पढ़ना पड़ता है। उसकी विधाओं को समझना पड़ता है । तब जाके दो चार कविताएं , ग़ज़ल ,गीत होते हैं।
अगर आप के पास पढ़ने का समय नही है। सिर्फ़ आप अपने आप को कवियत्री या कवि कहें। कुछ भी लिखना साहित्य नहीं है। शौक के लिऐ लिखना साहित्य नहीं है। वो सिर्फ़ शौक है।  उस दौरान आप कवि नहीं है। जिस प्रकार हम सभी शौक के लिए खेलते हैं मगर हम खिलाड़ी नहीं है। आप तुरंत झूठै कवि या कवियत्री होने से बचिए।

कविताएं लिखते हैं तो‌ कविताओं का इल्म समझिए। उनके लिए पढ़ना प्रारम्भ कीजिए। आभासी तारीफो से बाहर आइऐ , वो तारीफ़ नहीं है वो सिर्फ़ आपका मज़ाक उड़ा रहे हैं। जिसे आप तारीफ़ समझते हैं। तारीफ़ आप तब समझिए गा जब आपकी आंतारात्मा खुद गवाह दे कि हम ने कुछ लिखा है।

ग़ज़ल या गीत या नज़्म के लिए बह्र सीखिए।
मुक्तक कैसे लिखते हैं उसे सीखिए। 

85% आप रचनाकारों को तुकांत जिसे क़ाफ़िया कहते हैं मिलाना नहीं आता है। एक मुक्तक लिखने में आप लोगों को समस्या हो रही है यह गंभीर बात है। इसे शीघ्र सुधारें।

झूठा रचनाकार बनने से बचें। जब तक कि इन चीजों में निखार नहीं आ जाता। अगर आप के पास इनका समय नहीं कि आप पढ़ नहीं सकते या सीख नहीं सकते तो इसे शौक के रूप में रखे मगर खुद को कवि या कवियत्री न कहें।

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