माँ शैलपुत्री
माँ शैलपुत्री नवरात्रि के प्रथम दिवस पर , शैलपुत्री का करते पूजन । इस व्रतकथा के श्रवण मात्र से , सुख समृद्धि का होता आगमन । इस आराधना से भक्त को , पत्थर सी स्थिरता मिलती । रह अडिग लक्ष्य प्राप्ति संभव , जीवन में खुशहाली रहती । कलश स्वरूप गणपति जी , पुराणों में मिलता वर्णन । इसीलिए कलश स्थापित कर , कलश पूजते सभी भक्तगण । सती पिता दक्ष ने यज्ञ किया , बेटी और शिव को नहीं बुलाया । बिना निमंत्रण तैयार सती को , न जाने को भोले ने समझाया । माता सती आज्ञा ले शिव की , मायके हेतु की तुरंत प्रस्थान । निमंत्रित नहीं किए जाने से , मिला नहीं उचित सम्मान । तब क्षोभ और ग्लानि में आकर , खुद को यज्ञ में किया हवन । मिली सूचना जब भोले को , यज्ञ विध्वंस हुआ तत्क्षण । हिमालय गृह पुत्री रूप में , सती ने फिर जन्म लिया । नामकरण हुआ फिर शैलपुत्री , पृथ्वीलोक ने पूजन किया । कवि - चंद्रकांत पांडेय, मुंबई , महाराष्ट्र