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कुछ रिश्ते खास क्या कहते हैं : सरिता सिंह

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कुछ रिश्ते खास क्या कहते हैं : सरिता सिंह  एक अनोखा रिश्ता है मां संग बेटी ।  रिश्ता एक अनोखा जैसे सब्जी संग रोटी  सा।  एक अनोखा रिश्ता है संगिनी संग साथी का । रिश्ता हो अनोखा जैसे दीया और बाती सा। एक अनोखा रिश्ता है सखी संग सहेली का। रिश्ता हो जैसे अनोखा हंसी और ठिठोली सा  एक अनोखा रिश्ता है भाई संग बहना का । सोने चांदी के तारों में रखी और गहनों सा। एक अनोखा रिश्ता है मौसी और ताई  का। दूध से बनी मीठी दही और मिठाई सा। एक अनोखा रिश्ता है  बच्चों बुजुर्गों का। धरती पर संस्कारों के जैसे कोई स्वर्ग सा। - सरिता सिंह गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल -दिवाना हो गया

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अनूप कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखी गजल -दिवाना हो गया।  मुद्दतों  की   प्यास  भी    जागी  हुई, दिल किसी का अब दीवाना हो गया।1 कल का डूबा चांद  अब निकला है,  इस रात का जश्न मनाना  हो गया।2 खुश्बुओं के बादल है  बिखरें हुए, जुल्फों का भी लहराना हो गया।3 इक नया सा गीत तुम भी सुना दो, आईने  का  कुछ  लजाना हो गया।4 छेड़तें  से गम चुभतीं परछाइयां , कुछ खाली  सा पैमाना हो गया ।5 प्यार को भी तरजीह देना सींखिए , इस जहां में अब खिलौना हो गया।6 अश्क बहानें  के  रास्तें रोकिए, फिर वही पे मुस्कुराना हो गया।7 रख लिजिए कीमत अभी लाज कीं, भलें  अभी  नया  जमाना  हो  गया।8 हर किसी की अपनी अपनी खुशियां,  हर खुशी  का भी  सजाना हो  गया।9 मात पे गम न शह पे ना हो खुशीं , अब  अनुप से मुस्कुराना हो गया।10 -अनूप कुमार श्रीवास्तव   कानपुर, उत्तर प्रदेश 

मैं सवाल पूछूँगा : कवि विवेक अज्ञानी

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मैं सवाल पूछूँगा : कवि विवेक अज्ञानी    मुक्तक ( केवल मनोरंजन हेतु) तुम  कर्मचारी उनकी  सरकार में हो क्या ? तुम स्वतंत्र नहीं उनके अधिकार में हो क्या ? उनकी शान में बहुत झूठे कसीदे पढ़ रहे हो। तुम अभी घर पर नहीं दरबार में हो क्या ? मुझे देश की खस्ता हालत दिखायी दे रही है। मुझे अबलाओं  की  चीखें  सुनायी दे रही है। वो कह रहे हैं देश में बह चली विकास की गंगा। और मुझे पड़ी नंगी लाश दिखायी दे रही है। जब सत्ता में हो तो जवाब दीजिए। सारे बवालों का हिसाब दीजिए। युवा बेरोज़गार क्यों हैं अभी तक फिर खुद को विकास का खिताब दीजिए। -कवि विवेक अज्ञानी   गोंडा, उत्तर प्रदेश, भारत

तौ हमसे बात करौ : कवि विवेक अज्ञानी

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तौ हमसे बात करौ : कवि विवेक अज्ञानी            वार्तालाप (केवल मनोरंजन हेतु ) आऊँ खेत माँ भैंस चरा कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। जेठ के घाम मा खड़ा रहिकै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। सावन के सुहानी बारिश मा भीजत हौ शौख से। कब्भौ आषाढ़ बरसय भीज कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। ई ऊपर से बहुत धर्मात्मा बने घूमत हौ जौन। छुट्टा जंतु का पानी पियाय कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। बहुत खायो पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन, नूडल, मैगी। अब चूल्हक रोटी सरसौ क साग खवाऊ तौ हमसे बात करौ। अरे तू पिए लागेव कोका कोला, स्प्राईट, थम्सप। हमका मटकी कै मट्ठा पियाय कै देखाऊ  तौ हमसे बात करौ। समझत हौ ई अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी भाषा। चलौ गौमाता कै भाव समझ कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। हियाँ शहर मा घूमत हैं सब मनइ कै नकाब पहिरे। यहमा कोई इंसान चीन्ह कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ  अरे अपने जीवन मा कमायौ तू खोब पैसा। पर कतना व्यवहार कामायौ देखाऊ तौ हमसे बात करौ। तोहरे बराबर नहीं पर थोऱै पढ़े लिखे हमहु हन। पर जहाँ पर हम खड़ा हन आय कै देखाऊ तौ हमसे बात करौ। हिया घूमेव बहुत चिड़ियाघर औ पार्क बड़े बड़े। लेकिन खुले खेत कै हमै शैर कराऊ तौ हमसे बात क

आइये पढ़ते हैं सुधीर श्रीवास्तव जी द्वारा लिखा संस्मरण- ये कैसा श्रद्धाभाव?

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आइये पढ़ते हैं सुधीर श्रीवास्तव जी  द्वारा लिखा संस्मरण- ये कैसा श्रद्धाभाव? इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई।          रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय पहले मुझसे एक सत्य घटना का जिक्र किया था। रमन के घर से थोड़ी ही दूर एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। बाप रिटायर हो चुका था। दो बेटे एक ही मकान के अलग-अलग हिस्सों में अपने परिवार के साथ रहते थे। पिता छोटे बेटे के साथ रहते थे। क्योंकि बड़ा बेटा शराबी था। देखने में सब कुछ सामान्य दिखता था। दोनों भाईयों में बोलचाल तक बंद थी।           अचानक एक दिन पिताजी मोहल्ले में अपने पड़ोसी से अपनी करूण कहानी कहने लगे।      हुआ यूँ कि दोनों बेटों ने उनके जीवित रहते हुए ही उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर एक दूसरा मकान, जो पिताजी ने नौकरी के दौरान लिया था, उसे अपने नाम कराने की साजिश लेखपाल से मिलकर रच डाली।     संयोग ही था कि पिता को पता चल गया और उनकी साजिश नाकाम हो गई।       धीरे धीर बात पूरे मोहल्ले में फैल गई लोग आश्चर्य से एक दूसरे से यही कह रहे थे कि आखिर इन दोन

अर्चना कोहली जी द्वारा विश्व शांति दिवस पर लिखी रचना- नशा-पतन का मार्ग

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अर्चना कोहली जी द्वारा विश्व शांति दिवस पर लिखी रचना-  नशा-पतन का मार्ग (नशा- पतन का मार्ग) सिगरेट-बीड़ी-तंबाकू हो या शराब, सभी से होती काया हमारी खराब। पतन मार्ग में शनै:-शनै: ले जाती, प्रेम-सौहार्द को कलह में बदल देती। नशे में पता नही क्या खुशी ढूँढते, चोरी करने में जरा भी न झिझकते। गंभीर बीमारियों से तनु जर्जर होता, समय से पूर्व ही मृत्यु-द्वार खुल जाता। सभी सपने इसी की ही भेंट चढ़ते, नन्हे-मुन्ने गलत राह अख्तियार करते। नशे हेतु जिंदगी से खिलवाड़ मत कीजिए, अनमोल जिंदगी को सस्ती मत बनाइए । तंबाकू निषेध का मन में सभी ठान लो, खुशी-द्वार ओर मिलकर कदम बढ़ा लो। हमेशा के लिए अब इससे नाता तोड दो, नशे का यह बुरा मार्ग अब तुम छोड़ दो। -अर्चना कोहली नोएडा, (उत्तर प्रदेश)

नशा नाश का कारण : सरिता सिंह

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नशा नाश का कारण : सरिता सिंह   (लघु कथा)  अस्पताल के बेड  पर अंतिम सांसे गिन रहे किशन को देख  मौसी इंद्रावती की आंखों से निकला हर आंसू बस यही कह रहा था काश! कि बचपन में अपने लाल को  डिबिया से चुपके से निकालकर तंबाकू खाते हुए रोक देती तो शायद! आज यह दिन न देखना पड़ता , कसूर मेरा ही है बचपन में तंबाकू की खुशबू से उसे छींक दिलाने का काम भी तो मैंने ही किया। हाय! ये कैंसर मेरा ही दिया हुआ है ईश्वर अब सब खत्म नशे ने सब नाश कर दिया।   -सरिता सिंह  गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

सीमा वर्णिका जी द्वारा लिखी रचना- काश ! तुम मेरे होते

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सीमा वर्णिका जी द्वारा लिखी रचना-   काश ! तुम मेरे होते         (काश ! तुम मेरे होते) भर आँसू नैन न रोते, काश! तुम  मेरे  होते । दर्द की बातें ना होती, आँखें सुकून से सोती, यादें मन को न भिगोती , वेदना लड़ियाँ न पिरोती,  पीड़ामय लफ्ज़ न होते, काश ! तुम  मेरे  होते । गीत मेरे भी मुस्कुराते, गम के किस्से न सुनाते ,  दिन कटते हँसते गाते , तुम संग सपने सजाते, स्वप्न यूँ न बिखरे होते, काश ! तुम  मेरे  होते । तुम्हे भी हमसे प्यार होता, कोई ख्वाब साकार होता, प्रेम का अभिसार होता,  जीवन एक उपहार होता, बिना बात न रूठे होते, काश ! तुम  मेरे  होते ।। -सीमा वर्णिका   कानपुर, उत्तर प्रदेश

सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना - सच्चा मित्र

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सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना  -  सच्चा मित्र              (सच्चा मित्र) मित्रता ईश्वरीय वरदान है। गहन तम में बिहान है । दुख और सुख में बदले, सच्चा मित्र ईश्वर समान है। मित्रता आत्मशक्ति देती है। सारी उदासी हर लेती है। मुश्किल वक्त पड़े तो, जीने की हिम्मत देती है। मित्रता आत्मीय संबंध है।  सीमाओं से स्वच्छंद है । त्याग प्रेम समाहित इसमें, यह जीवन का मधुर छंद है। मित्रता बाल रूप में आती। ऊंच-नीच का भेद भुलाती। शारीरिक मानसिक अक्षमता, अपनापन रोक नहीं पाती । मित्रता पुण्य कर्मों का फल। जीवन में एक सशक्त संबल। कैसी भी कठिनाई आए, हाथ थाम कर चलती हरपल ।।  - सीमा वर्णिका  कानपुर, उत्तर प्रदेश

श्राद्ध पर पितरों को श्रद्धांजलि देते हुए माता-पिता के नाम- पिता को सिरहाने पाता हूँ : अनूपसहर

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श्राद्ध पर पितरों को श्रद्धांजलि देते हुए माता-पिता के नाम- पिता को सिरहाने पाता हूँ : अनूपसहर   आज़ जो कुछ भी हूँ   तुमसे हूँ ऐ पिता, धूप सा जब हुआ  छांव तुम हो ग‌ए।  डूबा जब भी यहां  जीवन मंझधार में, बचाते रहे हमको नाव तुम हो ग‌ए। मै नज़र था तुम्हारी फ़िक्रर था तुम्हारी, कतरा कतरा था लहू का रग रग में तुम्हारी। जितना समझा यहां जाना खुद को कहीं, ऐ पिता मुझमें तुम  घुलते गये,  मैं मिटता रहा और  तुम मिलते रहें।  पिता कोई भी हो  तपके जीता है, हमेशा बच्चों की  खातिर आंसू पीता है। जिएं जाता है  जिंदगी  अपनी,  ऐसी वैसी, लेकिन बच्चों को  बढ़ाता है। लहू के ईंट गारो से इमारत,  बच्चों की सजाता है।  पिता होता वहीं है जो तपा होता है। कभी खिलौना बन जाता,  कभी बिछौना बन जाता, पिता बच्चों की खातिर   सीढ़ियां बन जाता,  भलें अपने लिए  बेड़ियां बन जाता।  पिता कितने बड़े होते,  हमेशा साथ में होते,  हमेशा समझ में होते,  इसे इक बेटा ही समझ पाता।  पिता दश दिशाएं होते,  पिता हरेक  मौसम की हवाएं होते। नहीं आतीं जब  नींदें मुझको,  पिता को सिरहाने पाता हूं।  पिता को अपने  पंच

सामयिक परिवेश हिंदी पत्रिका की प्रयागराज में काव्य गोष्ठी संपन्न

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सामयिक परिवेश हिंदी पत्रिका की प्रयागराज में काव्य गोष्ठी संपन्न       दिनांक 20/07/2021 को प्रातः दस बजे से चंद्रशेखर आजाद पार्क प्रयागराज (उ.प्र.) में सामयिक परिवेश हिंदी पत्रिका के सौजन्य से एकभव्य और शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।  जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पत्रिका के सह संपादक श्री श्याम कुंवर भारती ( बोकारो झारखण्ड ) ने भाग लिया। गोष्ठी का संचालन श्री संजीव कुमार शुक्ला ने किया। अतिथियों का स्वागत युवा कवि इंद्रसेन भारती ने किया । काव्य पाठ में आ. संजीव शुक्ला ने लक्ष्मण और मेघनाथ युद्ध प्रसंग का ओज काव्य पाठ किया। आ. इंदर सेन भारती ने भाव आधारित रचना प्रस्तुत किया।इसके अलावा आ.कुमार शैलेश तिवारी, मृत्युंजय मिश्रा, दीपक कुमार, प्रकाश सिंह, योगेश कुमार आदि युवा कवियों ने ओज काव्य पाठ कर गोष्ठी मे देश भक्ति की लहर उत्पन्न कर दिया। रायबरेली से आई गीता पांडेय ने भी अपनी देश भक्ति रचनाओं से सभी में जोश से भर दिया। श्याम कुंवर भारती ने -रोती है क्यों जननी, क्या ग़म तेरे आंचल में है। क्या लग गया कलंक जैसे कि रंग काजल मे है । देश भक्ति रचना सुनाकर खूब

साहित्यकार हरेराम वाजपेयी का सम्मान प्रितमलाल दुआ सभागार में 22 सितम्बर को

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साहित्यकार हरेराम वाजपेयी का सम्मान प्रितमलाल दुआ सभागार में 22 सितम्बर को  23 सितम्बर को गोमय कला प्रशिक्षण में गोबार से विभिन्न  कलाकृति बनाना सिखाया जायेगा। इंदौर :  संस्कार भारती मालवा साहित्य मंच द्वारा शहर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरिराम बाजपेई जी को मालवा साहित्य अलंकरण से 22 सितम्बर बुधवार को सम्मानित करने जा रहा है। शाम 5 बजे से काव्यगोष्ठी भी आयोजित होगी। विनिता चौहान ने बताया कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रमोद झा (संगठन मंत्री मध्य क्षेत्र) तथा विशेष अतिथि दिनेश दिग्गज (मालवा प्रांत साहित्य विधा प्रमुख) होंगे।अध्यक्षता श्रीपाद जोशी (मध्य क्षेत्र प्रमुख) करेंगे। दविंदर कौर होरा एवं श्रीमती विनिता चौहान का संचालन होगा। 23 सितम्बर को दोपहर 12 से 5 बजे तक प्रितमलाल दुआ कला विथिका प्रथम तल में गोमय कला प्रशिक्षण श्रीमती कल्पना ओसवाल तथा श्रीमती मंजुला साकले देंगी। यह संयोजन अर्चना चितले ने किया है। यह जानकारी इंदौर निवासी जितेन्द्र शिवहरे ने दी।

हृदयांगन साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था, मुंबई द्वारा सीमा वर्णिका राष्ट्र भाषा हिन्दी गौरव सम्मान 2021 से सम्मानित

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हृदयांगन  साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था, मुंबई द्वारा सीमा वर्णिका राष्ट्र भाषा हिन्दी गौरव सम्मान 2021 से सम्मानित हृदयांगन साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था, मुंबई द्वारा हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित काव्य गोष्ठी में उत्कृष्ट काव्य प्रस्तुति के लिए  सीमा वर्णिका को राष्ट्रभाषा हिंदी गौरव सम्मान 2021 से सम्मानित किया गया।

उमा शर्मा 'उमंग ' जी द्वारा लिखी रचना - स्वप्नों की दुनियाँ

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उमा शर्मा 'उमंग ' जी द्वारा लिखी रचना - स्वप्नों की दुनियाँ (स्वप्नों की दुनियाँ) स्वप्नों की दुनियाँ होती है निराली, स्वप्नों में हम क्या क्या बन जाते। जो मन में रहती चाह बढ़ने की,  तो स्वप्नों में पूरा कर आते। मन में अंकुर फूटे विचारों ने ली तरुणाई। कैसे होंगे पूरे, स्वप्नों  ने राह दिखाई।। कभी दिखे सपनों में, आसमान में उड़ना। कभी वो छलांगे लगाना इधर से उधर पार करना।। कभी परीक्षा में पेपर का छूटना, कभी कोरी कॉपी रख आना। कभी कुछ लिख ना पाये, ऐसे ही चले  आए। यही स्वप्न दिखते जब आशाएं पूरी ना होती। मन का क्या है स्वप्नों में ,वो तो प्रभु दर्शन भी कर आते। लेकिन सपनों की है सांकेतिक भाषा , जो बतलाते  जीवन  की  आशा।। गरीबों के स्वप्न होते दफन मन में,  चाह कर भी न होते पूरे जीवन में। विचरते लोक कल्पना में,  वो जीवित ही मर जाते। हम देखें जागती आँखों से  कुछ  करने के  स्वप्न, एक नयी उमंग भरी जिंदगी जीने के स्वप्न। घर में सौहार्दपूर्ण परिवार बनाने के स्वप्न। अगर ये स्वप्न दिखें तो बन जाए हमारी जिंदगी दिवास्वप्न। जो साकार करेगी हमारी जीवन बगिया को,  और फलेगी, फूलों सी रचेगी

काव्य गंगा में अवगाहन कराने वाला "मंथन साहित्यिक परिवार" द्वारा आयोजित "काव्य संध्या" कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न

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काव्य गंगा में अवगाहन कराने वाला "मंथन साहित्यिक परिवार" द्वारा आयोजित "काव्य संध्या" कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न दिनांक 19 सितम्बर 2021 को "मंथन साहित्यिक परिवार" के तत्वावधान में "काव्य संध्या" कार्यक्रम का आयोजन किया गया; जिसमें देश के कोने कोने से मूर्धन्य कवियों और साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम का प्रारम्भ वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार आदरणीय हंसराज सिंह "हंस" जी के दोहा छन्द में रचित सरस्वती वंदना एवं वैदिक ऋचाओं के सस्वर पाठ के साथ हुआ। श्री हंसराज सिंह "हंस" जी के मधुर स्वर में मंत्रोच्चार से अनुगूँजित सम्पूर्ण वातावरण मंत्रमय हो गया। देश के कोने कोने से आन लाइन जुड़े हुए मूर्धन्य कवियों ने अपने कोकिल कंठों से छंद की विभिन्न विधाओं में काव्य पाठ कर मंच पर रसों की अविरल और मधुर धारा बहा दिया।        दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि आदरणीय प्रदीप मिश्र "अजनबी" जी बतौर मुख्य अतिथि रहे। आपने मधुर काव्य पाठ से उपस्थित समस्त श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए अपने आशीर्वचनों से सभी को अभिसिंचित किय