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आ० हृदय नारायण दुबे साहित्यकार शिक्षाविद एवं संगीतकार का मनाया गया जन्मदिन

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आ० हृदय नारायण दुबे साहित्यकार शिक्षाविद एवं संगीतकार का मनाया गया जन्मदिन अभिन्न मित्र मंडल पटल  पर दिनांक 05 नवंबर 2023 को रात्रि 9.00 बजे से आ० हृदय नारायण दुबे साहित्यकार शिक्षाविद एवं संगीतकार का जन्मदिन मनाया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ गूगल मीट पर किया गया शंखनाद के साथ। इसके उपरांत सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गयी। पुनः विशिष्ट अतिथियों का स्वागत काव्यात्मक प्रस्तुतियों से डॉ कृष्ण कांत मिश्र, कार्यकारी अध्यक्ष नवोदय वैश्विक प्रज्ञान साहित्यिक मंच के द्वारा किया गया।  इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ ओम प्रकाश मिश्र मधुब्रत ने की और उनके जन्मदिन पर "जीवनामृतवर्षा " अंक 2 का विमोचन किया। विशिष्ट अतिथि डॉ लवकुश तिवारी माधवपुरी , सतना मध्यप्रदेश जी ने अपने उद्बोधन द्वारा पटल को संबोधित करते हुए आ० हृदय नारायण दुबे जी को जन्मदिन पर बधाई दी। इस अवसर पर श्री अमर जीत शर्मा, आदरणीय संजय कुमार पाण्डेय श्री दुर्गा प्रसाद पाण्डेय और श्री शशि भूषण मिश्र सभी मित्रों ने उपस्थित होकर जन्म दिन की शुभकामनाएं दी।  अंत में आदरणीय हृदय नारायण दुबे जी ने अपने गीतऔर ग़ज़ल के माध

समय का चक्र : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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  समय का चक्र :  डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" हर लफ्ज़ पर मतलब,  और हर मतलब का लफ्ज़, यही तलाशता रहा जिंदगी की किताब में, और आज जिंदगी की आखिरी किताब के पन्ने पर सुकून तलाशता है। चलता रहा,  स्वार्थ में जिंदगी भर और आज एक सुकून का कदम तलाशता है। सत्यता को पर्दे में रखकर ज़िन्दगी भर झूठ की परतें बुनता रहा, और आज जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर सत्यता तलाशता है। खुद को खुदा मान छलता रहा जिंदगी भर, आज अपनी बारी में,  खुदा को तलाशता है। कसम खाता रहा,  ज़िन्दगी भर अपनी उम्र की, ज़िन्दगी के अन्तिम क्षण में हरेक चित्र निहारता है। अपने चरित्र को जिंदगी भर इंद्रधनुष बनाकर चित्र को संवारता रहा‌। आज अपने ही चित्र में अपने चरित्र की परछाइयां निहारता है।

डॉ बृजेश की "महादेव प्रयास" पुस्तक का हुआ विमोचन

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डॉ बृजेश  की "महादेव प्रयास" पुस्तक का हुआ विमोचन  सोनभद्र : (जिला ब्यूरो चीफ पवन कुमार की रिपोर्ट) सोनभद्र के नवाचारी शिक्षक डॉक्टर बृजेश कुमार सिंह "महादेव" कंपोजिट विद्यालय पल्हारी ब्लाक स्काउट मास्टर नगवा बेसिक शिक्षा विभाग सोनभद्र द्वारा लिखित पुस्तक "महादेव प्रयास" का विमोचन डायट सोनभद्र के परिसर में  श्रीमान चंद्र विजय सिंह जिलाधिकारी सोनभद्र, श्रीमान नवीन कुमार पाठक जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सोनभद्र,  श्रीमान प्रकाश सिंह प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान सोनभद्र एवं खंड शिक्षा अधिकारी द्वय समस्त विकास खण्ड के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ। इस अवसर पर जनपद के सम्मानित खंड शिक्षा अधिकारी गण  सर्वश्री धनंजय सिंह रावर्टसगंज, अशोक कुमार सिंह घोरावल, अरविंद कुमार करमा,  विश्वजीत कुमार म्योरपुर , बृजेश कुमार सिंह नगवा, अरविन्द पटेल चतरा, सुनिल कुमार चोपन, महेंद्र मौर्य दुद्धी, देवमणि पाण्डेय कोन, प्रेम शंकर राम बभनी भी मौजूद रहे। सम्मानीय एसआरजी संजय मिश्र विनोद कुमार विद्यासागर एआरपी बंधु हृदेश कुमार सिंह, विनोद मिश्रा, राज कुमार मौर्य

भक्ति भाव से अन्तस चेतना में ईश्वरानुभूति : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

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भक्ति भाव से अन्तस चेतना में ईश्वरानुभूति : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा                 (एक चिंतन)                                  भक्ति घनीभूत प्रेम की अवस्था को माना जाता है। भक्ति भावों की शुद्धि,भावों में भगवान की विलीनता, भगवानमय जीवन, यही भक्त का लक्षण होता है। नैतिकता और उच्च मानवीय मूल्यों के साथ ही भक्ति हो सकती है।कहते भी है कि                                                                                                               कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होए। भक्ति करे सोई सुरमा जाति वर्ण कुल खोए।। वास्तव में, तुकाराम जी के शब्दों में कहें तो, तिलक और माला धारण कर लेने से हृदय में भक्ति भाव नहीं जग जाता। भक्ति के माध्यम से भक्त अपनी चित्तवृत्तियों के कलुषित विचारों, दुष्प्रवत्तियों व मानवीय विकारों का नाश करके शुद्ध स्वरूप में रमण करता है, और अंततः अपने अंतस को ज्ञान से आलोकित करता है। भक्ति से मन के विकार नष्ट होते हैं, और उदात्त भावों की सृष्टि के साथ मानव स्वयं को एक ऐसे पुनीत वातावरण में परवेष्ठित करता है कि उससे समस्त अशुभ संकल्प विकल्प तिरोहित हो

लेख- खोती भावनाएं : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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  लेख- खोती भावनाएं :   डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" दोनों खटखटाते रहे दरवाजा, दरवाजा खोलने का वक्त, ना तुम पर था, ना हम पर था। एक अहम में और दूसरा इन्तजार में था। बीत गए बरसों, इसी कश्मकश में, एक अहम में आगे था और दूसरा इन्तजार में पीछे था। पड़ाव बदला शहर के मोड़ों का, दरवाजा आज भी खटखटाते हैं, दोनों। मगर  …..................................। बीत गए बरसों, खामोशी से दरवाजा खटखटाने में। ना दरवाजा खुला, ना कोई मिला। हो गया अंत रिश्ते प्यारों का। एक ही दरवाजे पर खड़े होकर, दोनों खटखटा रहे थे, दरवाजा। मगर............................... फर्क सिर्फ इतना था, एक दरवाजे के अंदर और दूसरा बाहर था।

लघुकथा- पति का करवा चौथ

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लघुकथा-                                  पति का करवा चौथ         पिछले कुछ वर्षों से लीना का मानसिक संतुलन खराब चल रहा था। जिसकी वजह से उसका परिवार अस्त व्यस्त हो गया, उसका पति लाखन उसके इलाज के चक्कर में चक्करघिन्नी बन गया था, उसका व्यवसाय चौपट होता जा रहा था, क्योंकि वो दुकान पर समय ही नहीं दे पा रहा था। बच्चों की शिक्षा भी राम भरोसे ही चल रही थी ।इन सबके बावजूद लाखन को भरोसा था कि एक दिन लीना फिर से अपना सामान्य जीवन जी सकेगी और फिर सब ठीक हो जाएगा। पर कब ......। इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था।           हर साल की तरह ही इस बार भी करवा चौथ आ गया। लीना जब तक स्वस्थ थी, बड़े मनोयोग से व्रत रखती थी, पूजा पाठ करती थी। लेकिन अब तो उसे जब अपना होश नहीं तो तीज त्योहार की बात भला कैसे सोच सकती है।‌            इस बार करवा चौथ से थोड़े दिन पूर्व उसकी सरहज ने फोन कर लाखन से आग्रह किया कि जीजा जी, क्यों न इस बार आप दीदी की जगह ये व्रत रख लें।शायद कुछ हो सके और नहीं भी हो तो आखिर पतियों का भी तो कोई धर्म होता है, हम पत्नियां हमेशा पतियों के लिए तो व्रत, अनुष्ठान करती ही हैं, फिर हम य

प्यारा चंदा तू मेरा, शीतल चांदनी मैं तेरी

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प्यारा चंदा तू मेरा, शीतल चांदनी मैं तेरी ओढ़ ली चुनरिया तेरे नाम की, सिंदूर को देख साजन, चांद तारों से मैंने भर ली, तू मेरा मधुर साज, संगीत मैं तेरी चंदा तू मेरा प्यारा, शीतल सी चांदनी मैं तेरी... पिया चांद के साथ चलनी से करूंगी तेरा दीदार, चूड़ी छनकेगी, समझ लेना मेरा असीमित प्यार... सुहागन मरूं और कोई दुआ दूजा न करूं, अंतिम श्रृंगार तेरे हाथों से करूं... अपने हाथों पानी पिला देना, स्नेह से फिर आशीष दे, बांहों में भर लेना.. तेरे दिल में हर पल बसी रहूं, प्यारा सा घर मंदिर सा सजाती रहूं.. ममता बच्चों पर लुटाती रहूं.. जिस ओर तेरे कदम पड़े, कामयाबी हमेशा मिले, स्वस्थ, प्रसन्नता से चेहरा तुम्हारा खिलता रहे... - उमा पुपुन की लेखनी से रांची, झारखंड

करवा चौथ

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करवा चौथ   वर्षों का इंतज़ार खत्म हुआ , आया समय प्यार सवाँरने का ।  करवा चौथ सुहाग के प्यारे पर्व पर,  आ गया दिन गगन निहारने का।  पूर्ण दिन व्रत निर्जला रहकर ,  प्रियतम की रख खुशी कामना।  माँ पार्वती का कर स्मरण,  करतीं पति खुशीहाली की याचना।  बड़ा विशिष्ट  पर्व होता यह,  प्रत्येक सुहागन नारी का।  वे  प्रतीक्षारत  रहती  हैं,  इस त्योहार की  बारी का।  पूर्ण  दिवस भूखी प्यासी  रह ,  देर  रात्रि चंद्र  को अर्घ्य देतीं।  पति के  सुखी समृद्ध होने की,  माँ पार्वती जी से कामना करतीं।  प्रथा यह  कोई  नूतन नहीं ,  वरन यह तो बड़ी पुरानी है।  हमारे शास्त्रों में व्यस्थित वर्णन मिलता,  अत्यंत प्रभावी इसकी व्रत कहानी है।  पूर्ण सरसता जीवन में घुले ,  स्नेह  की  अविरल धार रहे।  उनमें कटुता का नामोनिशान ना हो ,  दोनों के जीवन में महकता प्यार रहे।  रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय मुंबई / महाराष्ट्र 

एक दिवसीय न्याय पंचायत स्तरीय क्रीड़ा प्रतियोगिता हुई संपन्न

नारी का जीवन : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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  नारी का जीवन :  डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" बरसों से खामोशी में जीती- मरती नारी , कभी भू्ण हत्या, कभी दहेज प्रथा, कभी बाल विवाह का शिकार होती नारी। रीति रिवाजों के पर्दों में छुपकर, अंधेरों में  सिसकती नारी। रसोई की कलम पकड़ कर, दुनिया में इतिहास रचती नारी। कभी दुर्गा कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी का रूप धारण करती नारी, देवी स्वरूप देवालय तक सीमित,  घर- घर में बरसों से शिवालय में बैठी रोती नारी। कभी समाज की  कुप्रथाओं , कभी समाज के तानों का शिकार होती नारी। अपमान सहती, मानसिक तनाव सहती, नारी। बदल रहा है, जमाना। सशक्त भारत में जहाज उड़ाती नारी। बदलते परिवेश में, शिक्षा और अधिकार के लिए लडती नारी। सदियों पुरानी बेड़ियों से, शिक्षा का दामन थाम आगे बढ़ती नारी । बरसों पुरानी परंपराएं बदली, रूप बदला, अधिकार बदले, ढूंढती है, अपना अस्तित्व नारी।

प्रकृति की सुषमा

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प्रकृति की सुषमा प्रकृति भू का आत्म तत्व है, आओ इसका करे जतन। सबको सुलभ उसके संसाधन, विविध वस्तुएं,अन्य रतन।। प्रकृति की है छटा निराली, इसकी गोंद सौंदर्य की खान। इसीलिए तो कवि जन सारे, करते रहे सदा गुणगान।। पर्वत से निर्झर हैं झरते, नदियों का कल कल बहना। तितली भ्रमर सुमन पर उड़ते, इन दृश्यों का क्या कहना।। तरुओं पर पंक्षी के कलरव, जीव जंतु के अरण्य प्रवास। वर्ष पर्यन्त सुमनों की संगत, पाते हैं सुगंध व सुवास।। मलयागिरी की पवन सुखद तो, प्रमुदित करता तन और मन। प्रकृति के विशाल आंगन में, हरियाली संग मुक्त गगन।। तृण पर फबती ओस की बूंदें, मुक्ता सी लगती मन भावन। खिलते कमल कुमुदनी संग, पावस में मन हरता सावन।। सूर्योदय की किरणें फैलें, रश्मि पुंज बन तेज प्रखर। सभी जगह है सुषमा उसकी, प्रतिपल नीश दिन, अजर अमर।। प्रकृति है आनंद प्रदायिनी, मन को भाए बारंबार। सबकी करती आशा पूरी, विविध तत्व का है अंबार।। प्रकृति हमें तो सिखलती है, सहनशील बन करें करम। जीवन हो चलायमान हर दम, पाय प्रतिष्ठा रहे नरम।। प्रकृति की है छटा निराली, दिखती रंग बिरंगी। विविध रंग की सुषमा उसकी आकर्षक बहुरंगी।। प्रकृति

विकारों पर धर्म की विजय

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विकारों पर धर्म की विजय नवरात्रि बुराई और प्रचंड प्रकृति पर विजय पाने और जीवन के सभी पहलुओं और यहां तक ​​कि उन चीजों और वस्तुओं के प्रति श्रद्धा रखने के प्रतीकों से भरी हुई है जो हमारी भलाई में योगदान करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों को तमस, रजस और सत्व के तीन मूल गुणों के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। दशहरा एक गहरा आध्यात्मिक महत्व रखता है, जो भक्तों को धार्मिकता की तलाश करने और उनके दिलों से नकारात्मकता को दूर करने के लिए प्रेरित करता है, इस प्रकार सद्गुण और आंतरिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह हमेशा शक्ति के बारे में नहीं है बल्कि खुद को नकारात्मकता और विषाक्तता से मुक्त करने के बारे में है जो सबसे ज्यादा मायने रखता है। हमारे जीवन में जो कुछ भी मायने रखता है उसके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता रखने से सफलता और जीत मिलती है। विजयादशमी अस्तित्व के मूल गुणों पर विजय पाने के बारे में है: तमस, रजस और सत्व। दशहरा प्रसिद्ध हिंदू महाकाव्य रामायण में रावण पर राम की जीत का प्रतीक है। रावण के दस सिर : पांच ज्ञान इंद्रियों और पांच कर्म इंद्रियां हैं , जो शारीरिक क्रिया के साधन हैं।

मिशन शक्ति चतुर्थ चरण के अन्तर्गत कन्या जन्मोत्सव एवं कन्या पूजन का किया गया आयोजन

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मिशन शक्ति चतुर्थ चरण के अन्तर्गत कन्या जन्मोत्सव एवं कन्या पूजन का किया गया आयोजन - बेटी खुशियां लाती है, वह किसी बेटे से कम नहीं है : मुख्य विकास अधिकारी  सोनभद्र : (जिला ब्यूरो चीफ पवन कुमार की रिपोर्ट) आज दिनांक 23 अक्टूबर 2023 को मिशन शक्ति चतुर्थ चरण के अन्तर्गत महिला कल्याण विभाग व पुलिस विभाग के द्वारा संयुक्त रूप से कन्या जन्मोत्सव एवं कन्या पूजन कार्यक्रम का आयोजन जिला संयुक्त चिकित्सालय लोढ़ी में किया गया जिसमें मुख्य विकास अधिकारी सौरभ गंगवार द्वारा आयोजित कन्या जन्म उत्सव कार्यक्रम में नौ नवजात कन्याओं के माताओं को बेबी किट, टावेल, व मिष्ठान वितरित करते हुए कहा कि ऐश्वर्य की सूरत बनकर है लक्ष्मी आई बिटियाँ के जन्म पर आपको ढेरो बधाई साथ ही सभी  पात्र नवजात कन्याओं  को मुख्यमन्त्री कन्या सुमंगला योजनान्तर्गत लाभान्वित कराये जाने हेतु जिला प्रोवेशन अधिकारी को निर्देशित किया गया। उसके उपरान्त वन स्टाप सेन्टर लोढ़ी में नवरात्रि के नवमी पर आयोजित कन्या पूजन कार्यक्रम में अपर पुलिस अधीक्षक मुख्यालय  कालू सिंह द्वारा या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

जय माँ सिद्धिदात्री ( माँ का अंतिम स्वरूप)

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जय माँ सिद्धिदात्री ( माँ का अंतिम स्वरूप) माँ    सिद्धिदात्री   की , आज   करें  आराधना,  माँ पूर्ण  करती लौकिक, पारलौकिक कामना।  कमल  पर   आसीन   माँ,  चार  भुजा    वाली,  अंतिम  स्वरूप अम्बे, आठों सिद्धि  देने वाली।  जो  करे   माँ   की  जप,  तप,   पूजा , अर्चना ,  बने  कृपापात्र   माँ  का , न  शेष   रहे  कामना।  माता    आज   आपसे  , केवल   एक  प्रार्थना,  प्राण  रक्षा  करें   सबकी  , यही  मेरी  याचना । सुरक्षित  रहें  सभी  , पाकर   मां   तेरा  वरदान ,  तन, मन , धन माँ सब अर्पित, करो कष्ट संधान।  माँ    रिद्धि, सिद्धि  सबके  हृदय  में भर दें ज्ञान,  बुद्धि दें वंश में सभी के ,और चित्त में भरें ध्यान।  माँ सबके दुःख दूर कर, प्रदान करें अभय वरदान,  सज्जनों का  हित कर, दें जगत में मान, सम्मान।  माँ  निरोगी तन कीजिए ,सुंदर सदा मन कीजिए,  कष्ट  का  कर  संहार , सुखमय जीवन  दीजिए।       रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय मुंबई, महाराष्ट्र 

न्याय मौन : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

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 न्याय मौन : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" समाज का रूप बदला,  यहां हर कोई शेर है। अत्याचारों के नाम पर मानवता  ढेर है‌। घटनाओं के नाम पर राज्य बदले, जिले बदले, गांव बदले, शहर बदले। एक स्त्री का नाम बदला, उम्र बदली, लिबास बदले। हिंसा के रूप, हिंसक के नाम बदले। अपंग खड़ा है, कानून हिंसा के द्वार पर, रोज बलि चढ़ जाती है, एक स्त्री के मान की। जयकारा लगाते हैं, भारत माता की जय का। सड़क पर बेजान लाशें, पड़ी होती है, न जाने कितनी माताओं की। अखबारों में छपती खबरें, चलती टीवी पर बखान है। ना हालात बदले ना हिंसा बदली। सशक्त कहते हो,  महिलाओं को।   न जाने किस महिला की तस्वीर बदली। लेकर मोमबत्तियां निकलते हैं, सड़कों पर न जाने की यह कौन है। जानते हुए,   हिंसकों के परिचय, चेहरे फिर यह कौन मौन है? निकलते हैं,  एकजुट होकर मोमबत्तियां हाथ में लेकर तस्वीरों पर फूल माला लगाकर। फिर हिंसक कौन है ?  गुनहगार कौन है,  फिर कानून क्यों मौन है? बदल रही है,  तस्वीर एक सशक्त देश की। यहां भेड़िए भी घूमते हैं, खरगोश के भेष में। शिक्षा, सशक्तिकरण का क्या मोल  है? हर स्त्री आज भी हिंसा के नाम पर मौन है।