विश्वपति तुम जग के स्वामी

विश्वपति तुम जग के स्वामी
विश्वपति तुम जग के स्वामी,
कष्ट हरो भगवान।

सृष्टि रचयिता पालक सबके,
रखना मेरी लाज।
सबके स्वामी अंतर्यामी,
पूर्ण करो मम काज।।
तेरी शरण में जो भी आया,कृपा मिली अविराम।
विश्वपति तुम जग के स्वामी,कष्ट हरो भगवान।।
मन मंदिर में तेरी मूरत,
लगती है अति प्यारी।
तूँही आदि देव हो भगवन,
महिमा तेरी न्यारी।।
भावों को तुम शुद्ध करो,मन तन को मिले आराम।
विश्वपति तुम जग के स्वामी,कष्ट हरो भगवान।।
भव सागर से पार लगाओ,
सुख वैभव के दाता।
विध्न क्लेश के हर्ता तुम्हीं,
सर्व प्रगति अभिदाता।।
तेरे कुल में जन्म लिया है,क्यों न करूँ गुमान।
विश्वपति तुम जग के स्वामी,कष्ट हरो भगवान।।
तेरी भक्ति ने कितनों का,
जीवन सफल बनाया।
तेरा जिसने ध्यान किया,
बदला वर्तुल काया।।
सृजन और निर्माण के देवता,जाने सकल जहान।
विश्वपति तुम जग के स्वामी,कष्ट हरो भगवान।।
सद बुद्धि वाणी के दाता,
पूर्ण करो अभिलाष।
भटके जन को राह दिखाओ,
तुम्हीं मात्र हो आस।।
करता जग है तेरी साधना, हर दिन आठो यॉम।
विश्वपति तुम जग के स्वामी, कष्ट हरो भगवान।।

रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा,वाराणसी।

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