गौतम बुद्ध का गृह त्याग -

गौतम बुद्ध का गृह त्याग - 
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माया, ममता, मोह में न फँसना है मुझे, 
अज्ञान दूर कर, ज्ञान प्राप्त करना है मुझे। 

यह संसार दुःख का सागर, लोग वृद्ध, लाचार यहाँ। 
सभी समय के दास यहाँ, दुःखी और बीमार यहाँ। 
कुछ जटिल प्रश्नों से न डरना है मुझे। 
अज्ञान दूर कर,ज्ञान प्राप्त करना है मुझे। 

पत्नी, पुत्र, माता - पिता , या कि मेरा परिवार। 
सुख,वैभव तृण समान,नहीं चाहिए राज दरबार। 
जन्म-मरण के प्रश्नों से ऊपर निकलना है मुझे। 
अज्ञान दूर कर , ज्ञान प्राप्त करना है मुझे। 

सांसारिक आकर्षण , कुछ नहीं मेरे लिए। 
अनसुलझे प्रश्न! ,गृह त्याग कर दूँगा तेरे लिए। 
जीवन बिताकर भी,अज्ञान हरना है मुझे। 
अज्ञान दूर कर, ज्ञान प्राप्त करना है मुझे। 

एक बड़ा सुखद दिन, वह विश्व में आएगा। 
ज्ञान प्रकाश, दिग्-दिगंत में छाएगा । 
अज्ञान का तिमिर नष्ट कर, ज्ञान ही भरना है मुझे। 
अज्ञान दूर कर, ज्ञान प्राप्त करना है मुझे। 

रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय, 
मुंबई / महाराष्ट्र

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