शब्द

शब्द 
शब्दों को हैं, ब्रह्म मानते,
शब्द ब्रह्म का, आराधक।
दिखती है शब्दों की थिरकन,
जग में सब, उसके साधक।।

शब्दों के ही उद्बोधन से,
अन्तर्मन के उठते स्वर।
शब्दों के ही, दिव्य प्रकाश से
ज्योतित है त्रैलोक्य अमर।।


कभी कभी शब्दों की ऊर्जा
देती है अद्भुत धड़कन।
शब्दों से रस, स्रावित होता
होता रसिक प्रफुल्लित मन।।

शब्दों की ख़ुशबू भी फैले, 
शब्दों से मिलता है ग़म।
शब्द कभी बन मधुप भ्रमर सा
करता है चंचल चितवन।।

शब्दों के इन महाजाल में
बर्बश उलझा कभी यौवन।।
कवि शब्दों का सत्य सृजेता
करता नित साहित्य सृजन।।

शब्दों का वह चित्रकार बन
करता मन का चित्रांकन।
शब्दों से ही जगमग होता, 
कविता का अद्भुत आँगन।।

शब्दों की सत्ता में निश्चित,
मिलता है वह सुख-निर्वच।
शब्दों का सहयोग सृजन में
जन जीवन के प्राण कवच।।

शब्दों के संयोजन से बनते
प्राण स्वाँस के रक्षक मंत्र।
शब्दों से ही गीत ग़ज़ल बन
महका है, वाणी का तन्त्र।।

शब्दों से संसार विनिर्मित,
जैसे पुप्ष मधुप संग उपवन।
शब्दों का है निखिल विश्व
में यत्र तत्र सर्वत्र वहन।।

रचनाकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
 सुन्दरपुर वाराणसी-05

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