ज्ञान, मानव कल्याण की अद्भुत दिशा बोधनी : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा

ज्ञान, मानव कल्याण की अद्भुत दिशा बोधनी : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा 
किसी चीज को समझने व समझाने का माध्यम ही ज्ञान है, जो हमारी बुद्धि की क्षमता को बढ़ाता है, हमें निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।ज्ञान व्यक्तित्व को आकार देता है । लोगों के साथ व्यवहार करने एवं व्यवहार को सही करने के लिए एक दिशा बोधक का कार्य करता है। ज्ञान व्यक्ति, तथ्य और सूचना के बीच की कड़ी होता है। बिना बुद्धि के ज्ञान का आत्मसातीकरण संभव नहीं। इसी कारण से कहते हैं कि, निश्चय बुद्धि विजयंती, संशय बुद्धि विनाशयंती। ज्ञान बुद्धि द्वारा ही हम सक्षम, श्रेष्ठ व परिष्कृत प्राणी बनते हैं। हमारी बुद्धि ज्ञान से ही शुद्ध होती है।
ज्ञान को यज्ञ के रूप में माना जाता है, ज्ञान हमें शोक के माहौल से निकालता है। ज्ञान से ही हम सुखी व समृद्ध जीवन जीते हैं।इसीलिए कहते हैं कि ज्ञान के सदृश्य इस धरा पर पवित्र कुछ भी नहीं।
"न हि ज्ञाननेन सदृश्यम पवित्र मही विद्यते।"
आइए, एक उदाहरण द्वारा ज्ञान विज्ञान व विवेक को समझें, हाइड्रोजन के दो कण जब ऑक्सीजन के संपर्क में आते हैं तो पानी बनता है, यह विज्ञान है, लेकिन इस पानी से जीव जंतुओं की प्यास बुझती है इसे ज्ञान कहते हैं।पानी में शक्ति का भान कर जब हम उसे बिजली में परिवर्तित करते हैं, तो इसे विवेक कहते हैं। ज्ञान पानी, बुद्धि ने पहचाना कि पानी में शक्ति है, विवेक ने उससे बिजली बना दिया, इसीलिए ज्ञान, बुद्धि, विवेक को मनीषियों ने एक ही टीम के हिस्से मानते हैं।
मन को आत्मा से संयुक्त करने वाला ज्ञान ही होता है। अध्यात्म  में हमारे आर्ष ऋषियों ने बताया है कि निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय अप्रिय सुख दुःख इत्यादि भावों से निरपेक्ष्य होता है।आध्यात्मिक ज्ञान होने पर अंतस से अज्ञान, अभाव और आसक्ति सदा सदा के लिए समाप्त हो जाती है।कामना, वासना, तृष्णा स्वमेव तिरोहित हो जाते हैं, और अज्ञानजनित दुखों से मुक्ति मिल जाती है। अध्यात्म ज्ञान होने पर हम इंद्रिय विचलन से, बचने में सफलता प्राप्त करते है। नैषधीय चरित के अनुसार यदि देवता प्रसन्न होते हैं तो हमें सद्बुद्धि ही प्रदान करते हैं। व्यक्ति अध्यात्मिक मानसिक ज्ञान अर्जित करने की चेष्टा करता है, अपेक्षा भौतिक मानसिक ज्ञान के, अर्थात उसके ज्ञान का स्रोत वाह्य भौतिकता नहीं है, बल्कि आंतरिक आध्यात्मिकता है, जब वह इस अवस्था में ज्ञान प्राप्त करता है तो यह ज्ञान यथार्थ ज्ञान कहलाता है।वास्तव में यही ज्ञान वास्तविक ज्ञान होता है। इस ज्ञान की सहायता से व्यक्ति अपने लक्ष्य तक जीवन में पहुंच जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान वह ज्ञान है, जो जीवन में उतर कर सत्य का दीप  प्रज्जवलित करता है, जब जीवन में सत्य प्रकाशित  होना शुरू होता है, तो व्यक्ति में नम्रता अंकुरित होने लगती है। नम्रता से जीवन में पात्रता आती है, और पात्रता पूर्णता के लिए पहली शर्त होती है।
 ज्ञान प्राप्ति की स्रोत इंद्रियां ही, ज्ञान की आरंभिक स्रोत मानी जाती हैं, जिसमें आंख, नाक कान, जीभ, त्वचा से ज्ञान प्राप्त करते हैं। इंद्रिय अनुभव से हम बाहरी वस्तुओं के संपर्क में आते हैं, इससे संवेदना होती है, जिससे ज्ञान का प्रत्यय हमारे मस्तिष्क में बनता है। इसलिए इंद्रियों को ज्ञान का स्रोत मानते हैं। तर्क द्वारा भी ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। इस प्रक्रिया से  बुद्धि में कुछ तथ्य पनपते हैं, इन तथ्यों के आदान प्रदान से ज्ञान प्राप्त होता है।
तर्क बुद्धि,ह मारे जीवन में होने वाले अनुभवों से हमें ज्ञान की प्राप्ति कराती है। यह तर्क ही ज्ञान में परिवर्तित हो जाता है।तर्क बुद्धि के द्वारा ही व्यक्ति दो कथनों के बीच के संबंध को समझता है, प्रत्यय निर्माण इसी आधार पर होता है।
शब्द और आप्त वचन से भी हमें ज्ञान होता रहता है, विशेष ज्ञान हेतु हमे विशेषज्ञों का सहारा लेना होता है, जैसे गणित का ज्ञान हम किसी विशेषज्ञों से ही प्राप्त कर सकते।
श्रुति, इसका संबंध धार्मिक ज्ञान से होता है, श्रुति का अभिप्राय सुनने या प्रकट होने से लगाया जाता है। यह भी ज्ञान का स्रोत रही है।
अंतःप्रज्ञा से भी हमें ज्ञान प्राप्त होता है। यह ज्ञान एक प्रकार से अंतःकरण की आवाज ही है। अंतःप्रज्ञा का संबंध अंतर्बोध से होता है। यह एक ऐसी शक्ति है, जिसके द्वारा व्यक्ति को परम सत्य का बोध होता है। इस ज्ञान को छठी इंद्रिय से प्राप्त ज्ञान कहा जाता है।
आस्था, लगाव, हमारी संस्कृतियों में कुछ ऐसी बातें होती हैं, जिन पर हमारी आस्था होती है, हमारे सामाजिक जीवन में अनेक कार्य हमारी आस्था से जुड़े होते हैं, अतः आस्था को भी ज्ञान का स्रोत मानते हैं।
प्रकृति भी हम सबके लिए ज्ञान का असीम भंडार होती है। सूर्य ब्रह्मांड का चक्कर लगाता है, पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, अनेक तारा मंडलों की जानकारी भी हमें प्रकृति से ही प्राप्त होती है।
पुस्तकें तो ज्ञान का प्रमुख स्रोत हैं ही। जब कागज नही था तब भी हमारे पूर्वज ताम्रपत्रों, भोजपत्रों पर आवश्यक बातें लिखा करते थे। आज तो पेपर के आविष्कार ने तो ज्ञान का विस्फोट ही कर दिया है।
अगर मनन करें तो ज्ञान एक दर्शन है। स्वम में अथाह, गांभीर्य और स्थिरता का नाम है ज्ञान।जहां दर्शन है, गहनता है, अर्थ की सोदेश्यता है, जीवन का गांभीर्य है, वही ज्ञान है। इसीलिए ज्ञान को सूर्य की संज्ञा दी जाती है।
   
लेखक : डॉ दयाराम विश्वकर्मा  
पूर्व जिला विकास अधिकारी             सुंदरपुर, वाराणसी

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