लघुकथा - महाविद्यालय में साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम

लघुकथा - महाविद्यालय में साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम 
पायल अपने वर्ग की सबसे ख़ूबसूरत व होनहार छात्रा थी। वह लंबी, गोरी व चंचला थी। उसकी आवाज़ों में मिठास झर रही थी ऐसे मानों कि उसके कंठ में मां शारदे साक्षात् समाहित थी। उसकी स्मृतियां भी बहुत अच्छी थी, जो एक बार पूरी तन्मयता व मनोयोग पूर्वक अध्ययन कर लेती थी तो उसे सदा के लिए ही स्मरण हो जाती थी। उसकी सभी विषयों में समतुल्य ज्ञान थी। ख़ासकर हिंदी साहित्य में तो और भी ज़्यादा, हिंदी साहित्य तो मानों कि बहुत उत्कृष्ट व अनमोल थी। उसकी अल्फ़ाज़ों से सुंदर-सुंदर शब्दों की झरियां झर रही थी। उसकी मधुर अल्फ़ाज़ों को जब कोई श्रोतागण एक बार सुनते तो बस कायल ही हो जाते थे। 
इसी क्रम में एक बार महाविद्यालय के प्रांगण में हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन रखा गया, जिसमें जिला कलेक्टर मुख्य अतिथि के रूप में सांस्कृतिक मंच पर आमंत्रित व विराजमान थे। उस सांस्कृतिक कार्यक्रम में पायल भी प्रतिभागी हुई। वह सबसे पहले अपने सुंदर कंठ से छायावाद के महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना " 
"वर दे, वर दे वीणा वादिनि वर दे.." गीत पर गायन कर अति सुन्दर व मनमोहक अपनी प्रस्तुति दी। उसकी मधुर गायन श्रवण कर सभी मंचासीन अतिथिगण व श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये व एक पल के लिए सबकुछ विस्मृत हो गये। साथ ही साथ जिला कलेक्टर भी पायल की मधुर आवाज़ व झंकार श्रवण कर अति प्रभावित हुए व फूले  नहीं समाये। उनके होंठों पर मंद-मंद मुस्कान प्रतीत हो रही थी। उसके बाद वो कमल सी खिलती हुई प्यारी छात्रा  पुनः हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर अपनी काव्य से हिंदी साहित्य के महत्व के बारे में अति मधुर, सुंदर, उत्कृष्ट, अतुलनीय व सारगर्भित काव्यपाठ की जिसे श्रवण कर जिला कलेक्टर सहित मंचासीन अतिथिगण व श्रोतागण तालियों की बौझार किये एवं महाविद्यालय के होनहार व प्यारी छात्रा को कार्यक्रम समापन के उपरांत उसे आदर सहित रंगमंच पर आमंत्रित किया गया। मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर के द्वारा उपहार स्वरूप पारितोषिक स्वरूप गुलदस्ता सप्रेम भेंट की। इस तरह उस प्यारी छात्रा के हौसले को अफजाई किया गया। उस पारितोषिक उपहार स्वरूप में ख़ूबसूरत गुलदस्ता सप्रेम भेंट में  पाकर वो फूलो नहीं समाई, ख़ुशी से झूम उठी व धन्य-धन्य हो उठी। 
काश इस तरह के साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम महाविद्यालय के प्रांगण में बारंबार आयोजित होता रहे तो अपने राष्ट्र में आज़ हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में दर्ज़ा मिला है जो भविष्य में एक दिन हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा दिया जा सकता है। हिंदी भाषा का उत्थान व आयाम समस्त विश्व में स्थापित हो सके। यहीं हम लोगों का हिंदी साहित्य के प्रति विशेष लगाव हो व सदैव सतत् प्रयास करते रहें।

प्रकाश राय (युवा साहित्यकार, विचारक व समाजसेवी)
सारंगपुर, मोरवा, समस्तीपुर, बिहार

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