सत्यता का रंग : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

 सत्यता का रंग : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" 
कभी- कभी एक चुप्पी भी,
गुनाह नाम लिख देती है।
खुलती हैं परत, जब सच्चाई की,
तो कई नजरों को शर्मशार कर देती है।
ढूंढता है, शब्दों को पश्चाताप के लिए, शख्स 
मगर वक्त की कलम नई कहानी लिख देती है।
जीता है पश्चाताप में, हर जीता हुआ,
जब सच्चाई उसे, स्वयं की नजरों में शर्मसार कर देती है।
स्वयं को ईश्वर तुल्य प्रकट करने वाले को, पश्चाताप की अग्नि राख कर देती है।
अंहकार में मैं ही नहीं मैं भी मरता है,
कहो सत्य कहां, सौ पर्दो में छुपाता है।
मिल जाए , भले ही किसी भी रंग में,
"सत्य" 
तब भी सत्य का रंग अनोखा होता है।

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