ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता क्यों?

ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकता क्यों?
                
  कहते है कि energy pervades nature, यानि प्रकृति ऊर्जा से व्याप्त है।पृथ्वी पर प्रत्येक जीवधारियों का नियमन
 ऊर्जा द्वारा ही होता है। हमारे जीवन के कार्यों को संपादित करने हेतु हमे किसी न किसी प्रकार की ऊर्जा की आवश्यकता होती है। प्रकृति व ब्रह्मांड में ऊर्जा का असीमित भंडार विद्यमान है। कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा, जबकि ऊर्जा प्रदान करने की दर को शक्ति कहते है। व्यक्ति अपने शारीरिक कार्यों को भी करने हेतु प्रतिदिन खाद्य ऊर्जा का ही उपयोग करता है। ऊर्जा के दो मुख्य प्रकार में, स्थिति ऊर्जा, जो वस्तु की स्थिति के कारण होती है, उसे स्थिति ऊर्जा, व दूसरी गतिज ऊर्जा, जो वस्तुओं में गति के कारण उत्पन्न होती है, उसे गतिज ऊर्जा कहते है।
 ऊर्जा के और कई प्रकार है जिसमे, यांत्रिक ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा, प्रमुख है। आइए थोड़ा इन ऊर्जा के प्रकारों पर विस्तार से जानकारी हासिल करें । विद्युत ऊर्जा, बिजली के कंडक्टर में, इलेक्ट्रॉन द्वारा वहन की जाने वाली ऊर्जा है। यांत्रिक ऊर्जा,एक पथार्थ व प्रणाली  की गति से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा है। उष्मीय ऊर्जा, एक पदार्थ या प्रणाली की गति से अपने तापमान अणुओं की गति से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा होती है। रासायनिक ऊर्जा, परमाणु बंधनों के बीच संग्रहित ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा कहते हैं।न्यूक्लियर एनर्जी, रेडियो एक्टिव तत्वों के संलयन, विखंडन से जो ऊर्जा मिलती है, उसे नाभिकीय ऊर्जा कहते है, यद्यपि इसमें रेडियो धर्मी कचरे के सुरक्षित निपटान की समस्या होती है, फिर भी यह उच्च कोटि की ऊर्जा मानी जाती है।
 आज हम आध्यात्मिक और ब्रहमंडीय ऊर्जा पर भी बहस करने लगे है, परंतु वह भी मुख्य ऊर्जा के ही प्रारूप हैं।
 ऊर्जा का सिद्धांत कहता है कि हम न ऊर्जा को बना सकते है, न उसे विनष्ट कर सकते हैं, केवल उसका रूपांतरण ही संभव है। इसीलिए हम ऊर्जा संरक्षण की बात करते है। ऊर्जा संरक्षण मतलब ऊर्जा का विवेकपूर्ण उपयोग से लिया जाता है। विवेक पूर्ण उपयोग से ऊर्जा का आशय ऊर्जा का अनावश्यक उपयोग न करना, कम से कम उपयोग करते हुए कार्य करने से होता है। ऊर्जा को हम जूल व वाट सेकंड में नापते हैं।
ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए, भारत सरकार ने हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस, मनाने का फैसला लिया है, जिसका मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्व के बारे में, जागरूक करना व ऊर्जा के बचत के बारे में जागरूक करना है। भारत सरकार ने  ऊर्जा के संरक्षण हेतु एक ऊर्जा संरक्षण अधिनियम भी , 2001 में लागू किया है।
इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना था।परमाणु ऊर्जा, सौर ऊर्जा प्रदूषण रहित, निर्बाध गति से मिलने वाला सबसे सुरक्षित ऊर्जा स्रोत है।
 हमें ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर तकनीकी संसाधनों का उपयोग कर आत्मनिर्भरता हासिल करनी ही होगी। हमें ऊर्जा के उत्पादन व उपयोग पर ज्यादा ध्यान देना होगा, क्योंकि आज ऊर्जा के उपयोग व उपभोग को सामान्यतः जीवन स्तर के सूचकांक के रूप में लिया जाता है। आज हम ऊर्जा के उत्पादन व खपत की तुलना में बढ़ोत्तरी नही कर पा रहे हैं।
 ऊर्जा के रूप में विद्युत आज पूरी दुनिया की सबसे अहम जरूरत बन गई है। बिजली के बिना कोई भी देश आज तरक्की नहीं कर सकता। थोड़े समय के लिए यदि आज बिजली चली जाती है तो हमारे अनेकों काम रुक जाते हैं। आज देखें तो हमारा जन जीवन बिजली के सहारे हो गया है।इसलिए हमें प्रत्येक दशा में बिजली की बचत करनी होगी व उसके दुर्पयोग पर रोक लगानी होगी।
 भारत सरकार आज 5 लाख 97 हजार, 464 ग्रामों का विद्युत करण करा चुकी है। 15 सितंबर, 2022 के एक आकणे के अनुसार पूरे भारत में बिजली का उत्पादन करीब
 404132.96 मेगावाट है। जिसमें तापीय (कोयले) से बिजली 206699.50 मेगावाट उत्पन्न होती है जो कुल बिजली उत्पादन का 52.14% है,जल से उत्पादित (हाइड्रो पावर) बिजली 46850.17 मेगावाट उत्पन्न की जा रही है, जो कुल बिजली उत्पादन का 11.5% है।
 प्राकृतिक गैस से विद्युत उत्पादन 24856.21 मेगावाट, जो कुल विद्युत उत्पादन का 06%, परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन 6780 मेगावाट है।
 आज हम जिस तेजी से पारंपरिक व प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर रहे हैं, हो सकता है हमारे पास 40 वर्षों बाद, तेल, प्राकृतिक गैस व बड़े जल भंडार खत्म हो जाए, उस स्थिति में हमें गैर पारंपरिक स्रोतों से ही ऊर्जा उत्पन्न करने की जरूरत होगी, जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास, बायो ऊर्जा आदि पर निर्भर होना पड़ेगा,
 क्योंकि हमारे देश में खनिज पेट्रोलियम, कोयला, उत्तम गुणवत्ता की गैस, प्राकृतिक संसाधन बहुत कम, सीमित मात्रा में उपलब्ध होंगे।ऊर्जा की बचत किए बिना हम विकसित राष्ट्र का सपना नहीं देख सकते हैं।
ऊर्जा स्रोतों की दो श्रेणियां होती है।पहला नवीकरणीय ऊर्जा, जिसका हम बार बार प्रयोग करते है जैसे सौर ऊर्जा, बायो मास, बायो डीजल, हाइड्रो पावर, विंड एनर्जी, ज्वार भाटिय ऊर्जा (तरंग ऊर्जा), महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण, भूतापीय ऊर्जा आदि। अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत में तेल, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस कोयला आदि आते हैं।
नाभिकीय ऊर्जा की संभावना हमारे देश में बढ़ गई दिखती है, क्योंकि हमारे पास थोरियम का भंडार ज्यादा है, जिससे नाभिकीय ऊर्जा बहुतायद से पैदा की जा सकती है।
आधुनिक दौर में , हमारे वैज्ञानिकों ने ग्रीन हाइड्रोजन गैस से ऊर्जा उत्पन्न करने की तकनीकी विकसित की है, जिसे ईंधन कोष्ठिका तकनीकी कहते है, इस तकनीक से हम हाइड्रोजन को विद्युत में परिवर्तित करते है। हाइड्रोजन एक ईंधन के रूप में बहुतायत उपलब्ध है , जो प्रचुर ऊर्जा युक्त है। यह ताप व विद्युत के रूप में वाहनों, इमारतों में उपयोग किया जाने लगा है। इससे ट्रेनों को भी चलाया जाने लगा है। हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन में थोड़ी महंगी अवश्य है, परंतु यह ग्रीन ऊर्जा की श्रेणी में रखी जाती है, जिसमें प्रदूषण की संभावना नगण्य होती है।
ऊर्जा का ही खेल हमारी प्रकृति व ब्रह्मांड में चल रहा है, जिससे सारी गतिविधियां संचालित हैं, इसीलिए कहते भी हैं कि Energy rules every form of life on this earth.

लेखक: डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
           पूर्व जिला विकास अधिकारी
           कई राज्य स्तरीय सम्मानों से सम्मानित
           साहित्यकार, सुंदरपुर वाराणसी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनभद्र के परिषदीय विद्यालयों में राज्य परियोजना कार्यालय लखनऊ की टीम ने की गुणवत्ता को जांच

विशिष्ट स्टेडियम तियरा के प्रांगण में विकसित भारत संकल्प यात्रा सकुशल संपन्न

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बने विश्व के कीर्तिमान