बेटी दिवस

 बेटी दिवस 
पापा के सिर की पगड़ी
मां हाथों की कलछुल बेटी,
रिद्धि सिद्धि दो कुल है बेटी।
पापा के सिर की पगड़ी,
संबन्धों की डोर कड़ी।
बाबा की मर्यादा है,
नये सृजन का वादा हैं।
आजी की है प्राण लली,
मन जूही अनखिली कली।
भाई का विश्वास है वो,
वही करेगी कहेंगे जो।
भाभी की चंचला सखी,
बोझिल मन की दवा चखी।
बच्चों की हमजोली है,
कंथा मंथा गोली हैं।
अपने चाचा की प्यारी,
लाती भोजन की थारी।
चाची के है लिए खिलौना,
जब तक गोद न आता छौना।
पूरे घर की किलकारी,
खिला सुमन आंगन क्यारी।
इसके बिन न राखी पर्व,
जिनके बहन है करता गर्व ।
नवरात्री दुर्गा माता,
करवा चौथ तीज नाता।
लक्ष्मी गौरी का प्रतिरूप,
कभी है छाया कभी है धूप।
बेटी से संस्कृति पहचान,
बेटी ने रखा है मान।
कभी बनी सीता सावित्री,
संतोषी काली गायत्री।
बेटी से संसार सृजन,
इसकी शिक्षा का लें प्रन।
इसे बचायें इसे पढ़ायें,
भारत की संस्कृती बचायें।।

- डाॅ0 रामसमुझ मिश्र अकेला

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