हाँ मैंने देखा है

हाँ मैंने देखा है 

हां मैंने देखा है
चार पैसा कम कमाने वाले लोग भी,
मिलने की कोशिश करते हैं,
मैंने विरासत में करोड़ो पाने वालो को,
छिपने में सुकून महसूस करते देखा है।

हां मैंने देखा है,
स्वर्ण की चादर ओढ़े हुए भी,
लोग तारीफ के काबिल नहीं हो पाते,
मैंने होठों पर मुस्कान रखने वालों को,
सुंदरता का उदाहरण बनते देखा है।

हां मैंने देखा है,
दुनिया वालों की नहीं अपने दिल की सुना करो,
कोई कितना भी रोके, अपने दृढ़ इरादे से पीछे मत हटो,
क्योंकि मैंने वक़्त बदलने पर लोगो को,
गिरगिट की तरह रंग बदलते देखा है।

हां मैंने देखा है,
कभी न दुःख सहने वाले,
मामूली सी चोट पर रो देते हैं,
मैंने हमेशा पीड़ा सहने वालों को,
हर गम में मुस्कुराते देखा है।

हां मैंने देखा है 
घर परिवार सब मैंने देखा है,
हसरत से मिलने घर आये मेहमानों को,
लोग घमंड में दुत्कार देते हैं जो,
मैंने उनके महलों के सन्नाटो मे,
दीवारों को चिल्लाते देखा है।

हां मैंने देखा है,
बड़ी विचित्र दुनिया है ये यारों
पराये भी सहारा दे देते हैं,
मैंने यहाँ अपनों को अपनों से,
किनारा करते देखा है।

हां मैंने देखा है,
कटु सत्य- मैंने देखा है,
अधिकतर व्यस्त रहने वाले लोग,
मदद का वादा करते हैं,
फुरसत में रहने वाले लोग अक्सर,
वक़्त न होने का दावा करते देखा है।

हां मैंने देखा है,
गम्भीरता से बेबाक सच बोल देने वालो को भी,
बेज़्ज़ती करके बेगाना करार दिया जाता है,
मैंने बेझिझक झूठ बोलकर तारीफें करने वालों को,
प्रशंसा पाकर अपना बनते हुए देखा है।

हां मैंने देखा है,
कोई परोपकारी क्यों न हो, यदि असफल है,
तो इस दुनिया में बहुत ठोकर खाते हैं,
मैंने सदैव दुत्कारे हुए सफल लोगो को,
बाद में देवता की तरह पूजते देखा है।

साहित्यकार व लेखक - 
आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर

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