मत बटो हजारो टोली में, आ बैठो एक ही डोली में

मत बटो हजारो टोली में, आ बैठो एक ही डोली में 
रख लेंगे हिमालय सिर पर मिल
बस एक जय भीम की बोली में।
मत बटो....
कितनी सदिया बीत गयी
हैं पुरखे मरे गुलामी में
कमर टूट गयी ढ़ोते बोझा
गर्दन झुकी सलामी में
अगर चाहते हो आजादी
मत फसना बाते भोली में
मत बटो .....
ये मालिक सौ – सौ बीघा के
हम है गरीब और भूमि हीन
ये लेकर पैदा नही हुए
सब कुछ अपना लिया छीन
ये खाना खाते होटल में
यहा खिचड़ी पके पतिले में ।
मत बटो.....
ये धन्ना सेठ मिलो के मालिक
खेले अरबों – लाखों में
हम थोड़ा आगे क्या आये
लगा खटकने आँखो में
लगे काटने जड़े हमारी
है राज छिपा सब रोली में
मत बटो...
ये ऐसा बीज ड़ालते है
सब आपस मे लड़ो–मरो दिनो–रात हम करे परिश्रम
सोच कर इस पर गौर करो
फिर भी हम रहते छप्पर में
ये रहते बड़ी हवेली में।
मत बटो....
ये तो स्वयं इकट्ठा हैं
हम फंसे हुए हैं इनकी बातों में
हम बिखरे टूटी माला में
हमें बांट रखा है जातो में 
बाँध लो अब अपनी मुट्ठी
मत बिताओ समय ठिठोली में।
मत बँटो....
हम बोले तो अपराधी
वो जुर्म करे तो माफी है
हम दर्द बयाँ नही कर सकते
यहा दलित ही होना काफी है
होता है व्यवहार हमारे संग
जैसे सगा और सौतेले में।
मत बटो .....
छूआ–छूत तो हावी इतनी
कुत्ते–बिल्ली को दुलारे ये
पर एक दलित के बच्चे को
सब छूने से घबराते हैं
क्या यही अनुकरणीय संस्कृति है
जैसे जहर भरा सपोली में।
मत बँटो....
चाहे जितना हो पढ़ो–लिखो
पर जात हमारी नीची है
नही छुआते अपने बर्तन
यहा लक्ष्मण रेखा खीची है
हद हो गयी जुर्म ज्यादती की
अभी घट्ठे बने गदोली में।
मत बटो .....
अभी दलित की वो हालत है
हर कोई आँख दिखाता है
छोटी – छोटी बातों में भी
घण्टी की तरह बजाते हैं
यहाँ समता और बन्धुता का
रंग भरा नही अभी रंगोली में
मत बटो ....
अगर देखनी है आजादी
तो आकर देखो गाँवों में
जातिवाद की जंजीरों से
बँधी है बेड़ी पावों में।
पग–पग पर होते अपमानित
रहते सहमे बड़बोली में।
मत बटो....
जो कहर ढ़ाहते गाँवों में
पद पाने पर क्या इंसाफ करे
नही बदलती है मानसिकता
हाथ वहीं पर साफ करे
दिख रहा लेखनी का लेखा
सब औंधे गिरे खटोली में।
मत बटो हजारो टोली में,
आ बैठो एक ही डोली में।।

नोट- लेख व फोटो साभार- सोशल मीडिया 

जयभीम! नमोबुध्दाय!
भारत माता की- जय 

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