लखु कथा- तिरंगा

लखु कथा- तिरंगा 

                 तिरंगा
उठो रजवी मुझे देर हो रही है।  कल मेरी फाइनल परेड है। आज सारी तैयारी करनी है। क्या राज!  इतनी सुबह- सुबह उठा रहे हो। सो जाओ ना थोड़ी देर? अरे उठो रजवी, ये देखो, मैं चाय बना लाया पी कर बताओं कैसी बनी। चाय का कप रजवी के हाथ में देते हुए राज बोला। अरे बाबा आपके हाथ की चाय कभी ख़राब बनती है? बस बस ज्यादा तारीफ़ के पुल न बांधो। जल्दी उठो और तैयार हो कर आज मेरे साथ चलो गार्डन, तुम्हें अपनी परेड दिखाता हूँ। कल तुम्हें साथ नहीं ले जा पाऊंगा। राज एक आर्मी ऑफिसर है। क्या यार मैं तो कल चलूंगी आपको फुल ड्रेस में परेड करते हुए देखना है। नहीं मैं नही साथ ले जा पाऊंगा इसलिए आज का बोल रहा हूं, जल्दी चलो। नही मैं तो कल ही चलूंगी। रजवी ज़िद पकड़ पर बैठ गई। अच्छा बाबा अब गुस्सा शांत करो और चलो आज और कल दोनों दिन साथ चलना, राज लाल साड़ी देते हुए कहता है। जैसे ही परेड के बैंड बजने की आवाज़ टीवी पर रजवी ने सुनी उसके हाथ से चाय का कप नीचे गिर गया और सपना टूट गया। आंखो में आँसू लिए धीरे से टीवी बंद कर दी क्योंकि आज वो ही 15 तारीख है। आज जब राज तिरंगा ओढ़ कर घर आया था। सच में आज उसकी फाइनल परेड थी रोते हुए रजवी ने कहा।

लेखिका- प्रतिभा जैन
टीकमगढ़, मध्य प्रदेश

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