सच्ची घटना पर आधारित कहानी- एक बेजु़बान ‍की चीख

सच्ची घटना पर आधारित कहानी-  एक बेजु़बान ‍की चीख


शाम का समय था मैं और मेरी छोटी बहन आकृति बाजार से लौट रहे थे, हालांकि शरीर थक चुका था मगर मन भी उतना ही संतुष्ट था। आज का दिन खाते पीते गुजर रहा था। हम आकर अपने गांव के बस में बैठ गए और दिनभर हमनें क्या-क्या खाया, कौन से मॉल में ज्यादा अच्छे कपड़े थे, इन बातों पर चर्चा करने लगे । ड्राइवर ने भी खैनी मली और ड्राइविंग सीट पर आ बैठा, ठीक मेरे आगे । उसने बस स्टार्ट करते हुए दो तीन लगातार हॉर्न मारी और बस चल पड़ी। तभी एक व्यक्ति और महिला दौड़ते हुए बस में घुस गए, सभी यात्रियों की नजर उन पर ही थी और उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए एक लंबी गहरी सांस छोड़ी। दोनों मेरे पास के ही सीट पर बैठ गए और अपनी बोरी को नीचे रख दिया। 

हम अपनी बातों में लगे थे तभी मेरी नजर उस व्यक्ति की हाथों पर जा पड़ी उसकी उंगलियों में खून लगा था। उसके प्रति मेरे मन में एक संवेदना जागृत हुई, मन तो कर रहा था अभी जाकर उसकी पट्टी कर दूँ। मगर मैंने अपना ध्यान खींचते हुए खिड़की के बाहर देखना शुरू किया तभी मुझे लगा मानों मेरे पैर के नीचे पानी हो। मैंने आश्चर्य से झुक कर देखा तो मेरे पैर के नीचे लाल रंग का पानी था । न जाने क्यूँ मेरा हृदय कांप उठा। थोड़ी दूर नज़र दौड़ाया तो वह पानी उस बोरी से निकल रहा था, ना जाने कैसे पैर हटाते वक्त वह लाल रंग का पानी मेरी बाएं पैर की सबसे छोटी उंगलियों पर लग गया था। ना जाने क्यों मुझे बहुत अजीब महसूस होने लगा तभी मैंने खलासी को बताया।

 उसके पूछने पर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,

आई हमर बेटा के जन्मदिन हई, ए ही लागी मांस ले जाई छीअई , घड़े जाके अपने से काट लेबई, एमें मेमना के गर्दन कटल हई, बस आ गेलई ह त ठीक से पैक न करलई ह, ए हि लागी खून बाहर अवैछई, दोसर सीट पर चल जा हम अपना एने कर लैछी।

सब अपनी बातों में लग गए मानों यह कोई सामान्य बात हो। शायद उनके लिए यह एक सामान्य घटना ही हो मगर मेरे साथ यह पहली दफा गुजर रहा था। बहुत छोटी थी जब मैंने मांस खाना छोड़ दिया था और मैंने बहुत को खाते तो देखा था मगर इतना निर्दयी तरीके से नहीं।

मेरा पैर उसी खून के बीच था और मेरी उंगलियों पर लगा खून जम चुका था। ना जाने क्यों, मेरे मन में एक अपराध भाव जग रहा था और शरीर में कंपन।  मैंने खुद को बहुत डिस्ट्रेक्ट करने की कोशिश की,  मगर मेरे सामने एक अजीब दृश्य घूम रहा था, कोई उस मेमना को काट रहा हो, उसकी गर्दन से खून निकल रहा हो और फिर भी उसे बोरी में डाला जा रहा हो। मेरी आखों में बस उस मासूम मेमने की आंखे घूम रही थी, जैसे वह कुछ कहना चाहती हो।

मुझे ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे सामने मदद के लिए आया हो मगर मैंने उसकी मदद ना की हो, मानों मैं कुछ कर सकती थी फिर भी चुप रही। यह मेरे जीवन के उन पलों में से है जिसमें मैंने खुद को बहुत ज्यादा कमजोर पाया इतना कमजोर कि मैं किसी बेजुबान जानवर के लिए आवाज तक नहीं उठा पाई, ज्यादा ना सही मैं उस आदमी को बता भी ना सकी कि वह कितना घटिया और निर्दयी इंसान है। बस थोड़ी देर के लिए उसके जिह्वा को स्वाद मिले उसके लिए उसने उस मासूम मेमने को इतनी दर्दनाक तरीके से मारा है। मैं उस आदमी को बहुत ही बुरी तरह से डांटना चाहती थी मगर मैं कमजोर पड़ गई।

थोड़ी देर बाद ही मेरा घर आ गया और बस रुकी। अब भी  मैं उसी सीट पर बैठी थी और मेरा पैर उसी खून में था। मैंने उठते वक्त एक बार फिर से उस बोरी को देखा और जल्दी से उतर गई। 

सचमुच हम बस शरीर से ही मनुष्य हैं, वरना हमारे अंदर तो सर्द पशुता भरी पड़ी है, जो अपने स्वार्थ में इतना डूब चुका है कि उसे एक बेजुबान की चीख भी नही सुनाई पड़ती, उसकी मासूम आंखे भी उसके हृदय को नहीं झकझोरती।

लेखिका- स्मृति सुमन 
मुजफ्फरपुर, बिहार

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