बालिकाओं/महिलाओं का सशक्तिकरण कैसे? पढ़ें पूरा लेख...

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शिक्षा से ही हम अपने अंतर्निहित शक्तियों का विकास करते हैं तथा शिक्षा के माध्यम से ही हम विपरीत परिस्थितियों से निपटने का प्रयास करते हैं। किसी भी परिवार में बालिकाओं को शिक्षित करने का मतलब होता है, पूरे परिवार को शिक्षित करना, इससे पुरुष सदस्यों की सोच में भी बदलाव आता है। देखा जाए तो शिक्षा से एक स्वतंत्र सोच का निर्माण होता है, जिससे आत्म सम्मान के साथ जीने व अन्याय के खिलाफ मुखर होने का साहस पैदा होता है। शिक्षित होकर नारी आज आजीविका पाकर आत्म निर्भर हो रही हैं, स्वावलंबी होकर आत्म निर्भरता प्राप्त कर रही हैं। राज्य/केंद्र सरकार द्वारा भी महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु कई योजनाएं जैसे कौशल विकास मिशन के अंतर्गत कई कार्यक्रमों में प्रशिक्षण प्रदान कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है।पिछले दो दशकों में महिलाएं आत्म निर्भर हुईं हैं, आत्मनिर्भरता सिर्फ आजीविका नही, बल्कि स्वाभिमान व आत्म गौरव की अनुभूति भी है। आज समाज का भी दायित्व है कि उन्हें आजीविका का विकल्प देकर उनके विकास में नए पंख लगाने का कार्य करें।महिलाओं के योगदान से न सिर्फ समाज का निर्माण होता है बल्कि पालन-पोषण भी होता है, समाज को एक दिशा भी मिलती है। महिलाओं के प्रसन्न रहने से ही किसी कुल, परिवार, समाज, देश की प्रगति होती है, क्योंकि पढ़ी लिखी महिलाएं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की आधारशिला हैं ।
महिलाओं के साहचर्य से ही समाज में सुख, समृद्धि, व आनंद की परिकल्पना की गई है, इसलिए ऋग वेद में नारी को स्वयं गृह कहा गया है, "न गृहम् गृहम् मित्याहम्गृ हणी गृह मुच्यते।" शतपथ नामक ग्रंथ में नारी को अर्धांगिनी की संज्ञा दी गई है। वराहमिहिर ने इसी कारण नारी को एक रत्न ही नही बल्कि सर्वश्रेष्ठ रत्न कहा है।
मनुस्मृति में तो यहां तक वर्णित है कि जहां नारियों की पूजा होती, वहां देवताओं का वास होता है,
"यस्तु नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता"

नारियों को चरित्रवान भी होना चाहिए, क्योंकि चरित्र ही उनकी जमा पूंजी है, इतिहास साक्षी है की माता सीता ने अपने चरित्र के बल से लंकापति रावण से
अपने कुल की रक्षा की थी। जब हम इतिहास के पन्नों को पलटते हुए वैदिक युग में प्रवेश करते हैं तो पाते हैं कि तत्समय नारियों के साथ अच्छा बर्ताव होता था, उन्हें ज्यादा अधिकार प्राप्त थे, वे पुरुषों के साथ यज्ञ करती तथा युद्ध में भाग लेती थीं। अदिति, लोपमुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी, अपाला जैसी असाधारण विदुषी महिलाओं ने तत्समय अपने समाज का मार्गदर्शन भी किया था।
स्वतंत्रता आंदोलन एवम समाज सुधारकों के समन्वित प्रयासों द्वारा पिछले कई शताब्दियों से महिला सशक्तिकरण हेतु सार्थक प्रयास किए जा रहें है, जिसका परिणाम सकारात्मक मिल रहा है।
पश्चिमी शिक्षा, उदार आदर्शों के कारण, ज्ञान के विस्फोट से महिलाओं के ज्ञान व चेतना में वृद्धि परलक्षित है, जिससे लिंग भेद व अनेकानेक भेदभाव दूर हो रहे हैं ।
इक्कीसवीं सदी के आगमन ने देश के नियोजित विकास से महिलाओं को केंद्र मानकर अनेकानेक योजनाओं का शुभारंभ हुआ। नौवीं दशवी पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान उनके स्वास्थ्य, पोषण व रोजगार सृजन हेतु कई कार्यक्रम शुरू किए गए, जिनमें प्रशिक्षण के साथ- साथ उन्हें आर्थिक गतिविधि शुरू करने हेतु लघु ऋण देने का प्रबंध हुआ। फलस्वरूप महिलाओं ने अपना व्यवसाय शुरू कर आत्मनिर्भरता को प्राप्त भी की। इसी कारण से महिलाओं में राजनैतिक जागरूगता लाने के फलस्वरूप केंद्र सरकार/राज्य सरकारें, उन्हें स्थानीय निकायों, ग्रामों में 33% आरक्षण देने हेतु संविधान संशोधन किया। आज हर जगह उससे ज्यादा संख्या में महिलाएं चुनकर जनप्रतिनिधि हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में तो लगभग 50% से अधिक प्रधान महिलाएं चुनी जा रही हैं।
जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते है तो बिना बालिका शिक्षा के महिला सशक्तिकरण की बातें करना एक गलत अवधारणा होगी। सर्वविदित है कि महिलाएं सामाजिक स्तर पर पत्नी, मां, एवं गृहणी के रूप में पहचानी जाती हैं। शहरों में महिलाओं का सशक्तिकरण ग्रामीण परिवेश की महिलाओं से ज्यादा हुआ है क्योंकि आज भी ग्रामीण परिवेश की महिलाओं की पहचान शहरों की महिलाओं से कम है। हमारा पुरुष समाज, महिलाओं के सशक्तिकरण को एक अलग बिंदु से देखता है, जिसमे वह मानता है कि स्त्री सशक्तिकरण का अर्थ पुरुष समाज को शक्तिविहीन करना। इस प्रकार की विचारधारा महिलाओं के सशक्तिकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हैं। समाज में स्त्री- पुरुष दोनों मिलकर परिवार रूपी गाड़ी चलाते हैं। आज आवश्यकता इस बात कि है दुनिया की आधी आबादी को उनकी स्वयं की ताकत के बारे में जागरूक बनाया जाए, एवम् उन्हें शिक्षित किया जाए, जिससे वे विश्व पटल पर सामाजिक व आर्थिक विकास की प्रवर्तक बन सकें।महिलाएं जब तक शिक्षित नहीं होगी, तब तक उनका राष्ट्रीय विकास की धारा में शामिल होना संभव नहीं होगा। महिलाओं के मानसिक शक्ति विस्तार हेतु शिक्षा एक अनिवार्य आवश्यकता है।
शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति में, आत्म विश्वास, शक्ति एवं क्षमताओं का विकास होता है वैसे शिक्षित महिलाएं ही अपने हित व अहित की बातें सोच सकती हैं।
आज प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर उच्च प्राथमिक पाठशाला होने के बावजूद भी बालिकाएं आठवीं तक की शिक्षा ग्रहण करने में असमर्थ हैं, अब प्रत्येक परिवार का अनिवार्य दायित्व है कि बालिकाओं को आठवीं तक की शिक्षा अवश्य दिलवाएं।
आज शासन स्तर से भी बालिका शिक्षा पर प्रयास तीव्र किया गया है, अब अभिवावकों का यह दायित्व है कि वे बालिकाओं को शिक्षित करने में कोई कोर कसर न छोड़ें।

क्योंकि डॉक्टर एनी बेसेंट ने कहा है कि, एक बालक की शिक्षा, एक व्यक्ति की शिक्षा है, जब कि एक बालिका की शिक्षा पूरे परिवार की शिक्षा है।
अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि बालिकाओं को शिक्षित किया जाए, उन्हें संस्कारवान बनाया जाय, जिससे कालांतर में वे संस्कार की संवाहिका बन अपने परिवार को संस्कारवान बना सकें।
आज महिलाएं अपने श्रम, संघर्ष एवम सहकारी प्रयत्नों से अपने को सबल बनाने में आशातीत सफलताएं अर्जित कर रही हैं। कहा भी गया है-
"पढ़ी लिखी लड़की, रोशनी घर की।"

महिलाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। कौशल विकास व शिक्षा द्वारा बालिकाएं
वाह्य जगत की कार्यप्रणाली को सिखती हैं, जिससे वे क्रय- विक्रय, बैंक से लेन- देन, विद्युत बिलों, टेलीफोन बिल्स का भुगतान, कंप्यूटर संचालन का ज्ञान इत्यादि प्राप्त कर समाजोपयोगी बनती हैं, साथ ही सामाजिक विकास में अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन भी करती हैं तथा उनमें आत्म विश्वास, आत्म संयम, आत्म सम्मान व संवेदनशीलता का भी विकास होता है।
आठवीं व दशवीं में पढ़ने वाली बालिकाओं को व्यावसायिक शिक्षा देने का भी प्रबंध किया जाना चाहिए, जैसे लघु एवं कुटीर उद्योगों की जानकारी जैसे- वाल हैंगिंग बनाना, फ्लावर एंड डाल मेकिंग, मूर्ति निर्माण, टेरेकोटा के कार्य, ड्रेस डिजाइन, ब्यूटी पार्लर, ब्यूटी कल्चर, कंप्यूटर जॉब वर्क्स जिससे उनके परिवार की आय वृद्धि में भी सहायक हो सके।
विज्ञान व प्रौद्योगिकी विकास में आज कंप्यूटर प्रशिक्षण के सुअवसर बालिकाओं को उपलब्ध कराया है।महिलाओं के आय सृजन हेतु डेस्क टॉप पब्लिशिंग कार्य, कंप्यूटर एडेड डिजाइन, कोरल ड्रा, फोटो सॉफ्ट, कंप्यूटर एडेड मैन्युफैक्चरिंग कार्य का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्म निर्भर बनाया जा सकता है।
आज महिलाएं उक्त पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित होकर अपनी जीविका का अर्जन कर रही हैं, इंटीरियर डिजाइनिंग, बोटिक आर्ट, साड़ी प्रिंटिंग वर्क के कार्यों से भी अनेक महिलाएँ, बहनें अपने पैरों पर खड़ी होने में समर्थ हुईं हैं ।
आज के उपभोक्तावादी वैज्ञानिक युग में महिलाएं कई तरह के व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त कर, कला संगीत में भी अपना जल्वा बिखेर रही हैं। आज बालिकाएं किसी भी क्षेत्र में बालकों से कम नहीं है।
भारत सरकार द्वारा महिलाओं के आर्थिक विकास हेतु महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर, उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है। आज गांव की महिलाएं, मसाला उद्योग, दालों की पैकेटिंग, मूर्ति निर्माण, बिंदी निर्माण, टेंट व्यवसाय, मोती निर्माण, आर्टिफिशियल ज्वेलरी निर्माण, ब्यूटी पार्लर, झालर निर्माण, सब्जी उत्पादन, हस्त शिल्प के कार्य, वाल हैंगिंग के कार्य कर रही हैं, जिससे उनका आर्थिक विकास हो रहा है। सरकारी प्रयासों के अलावा हम सभी को सामाजिक प्रयास कर बालिकाओं को महिलाओं को सशक्त बनाने की महती आवश्यकता है।

लेखक- डॉ दयाराम विश्वकर्मा
पूर्व जिला विकास अधिकारी,
वाराणसी

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