श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह में देवताओं ने की पुष्पों की वर्षा

श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह में देवताओं ने की पुष्पों के वर्षा

- भागवत कथा के छठे दिन की कथा में श्री कृष्ण रुकमणी विवाह का हुआ वर्णन

- भागवत कथा में सम्मानित हुई प्रवचन कर्ता देवी विष्णु प्रिया एवं मुख्य यजमान रतन लाल गर्ग

- भगवान श्री कृष्ण को चढ़ाए का छप्पन भोग
- श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु

सोनभद्र : (संवाददाता संदीप कुमार शर्मा की रिपोर्ट)

आर्य समाज मंदिर प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन अयोध्या से पधारी कथावाचक देवी विष्णु प्रिया ने गिरिराज लीला, रुक्मिणी विवाह की कथा का श्रद्धालुओं को रसपान कराया। कथा के अनुसार ज्ञानेशानंद के नेतृत्व में  सजाई गई सजीव झांकी आकर्षण का मुख्य केंद्र रही। जिसमें भगवान श्री कृष्ण का रूप धारण किए डॉक्टर सौरभ गोयल एवं रुकमणी के वेश में डॉ निधि गोयल तथा बलराम कृष्ण कुमार गर्ग व रेवती बनी रेनू गर्ग ने अपनी सुंदर प्रदर्शन से श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। कथा का वाचन करते हुए प्रवचन कर्ता देवी विष्णु प्रिया ने कहां कि विदर्भ के राजा भीष्मक के घर रुक्मिणी का जन्म हुआ। बाल अवस्था से भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे हृदय से पति के रूप में चाहती थीं। लेकिन भाई रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ कराना चाहता था। रुक्मिणी ने अपने भाई की इच्छा जानी तो उसे बड़ा दुख हुआ। 
अत: शुद्धमति के अंतपुर में एक सुदेव नामक ब्राह्मण आता-जाता था। रुक्मिणी ने उस ब्राह्मण से कहा कि वे श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती हैं। सात श्लोकों में लिखा हुआ मेरा पत्र तुम श्रीकृष्ण तक पहुंचा देना। कथावाचक ने बताया कि रुक्मिणी ने स्वयं को प्राप्त करने के लिए उपाय भी बताया। पत्र में रुक्मिणी ने बताया कि वह प्रतिदिन पार्वती की पूजा करने के लिए मंदिर जाती हैं, श्रीकृष्ण आकर उन्हें यहां से ले जाओ। पत्र के माध्यम से रुक्मिणी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप इस दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं हजारों जन्म लेती रहूंगी। मैं किसी और पुरुष से विवाह नहीं करना चाहती हूं। प्रवचन कर्ता बताया कि पार्वती के पूजन के लिए जब रुक्मिणी आई, उसी समय प्रभु श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गए। अत: रुक्मिणी के पिता ने रीति रिवाज के साथ दोनों का विवाह कर दिया। इंद्र लोक से सभी देवताओं द्वारा पुष्पों की वर्षा की तथा खुशियां लुटाई। वही इस अवसर पर विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट के निदेशक दीपक कुमार केसरवानी एवं आदिवासी लोक कला केंद्र की सचिव प्रतिभा देवी द्वारा प्रवचन कर्ता विष्णु प्रिया शास्त्री, मुख्य यजमान रतन लाल गर्ग एवं उनकी धर्मपत्नी अनारकली देवी, यज्ञ आचार्य सौरभ कुमार भारद्वाज, लीला व्यास ज्ञानेशानंद, भजन गायक दीपा मिश्रा को विंध्य सम्मान से सम्मानित किया गया। 
कथा के अनुसार सजाई गई सजीव झांकी में गिरिराज धरन के वेश में रही शिवानी पांडे, यशोदा मैया शिवांगी पांडे, नंदबाबा श्रेया केसरी, ग्वाल बाल आयुष पांडे ने सुंदर प्रदर्शन कर वहां उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया।
छठे दिन के कथा का समापन मुख्य यजमान रतन लाल गर्ग एवं उनकी धर्मपत्नी अनारकली देवी के द्वारा की गई आरती पूजन के साथ हुआ। कथा के समापन के बाद भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाई गई छप्पन भोग और श्रृंगार के वस्तुओं का वितरण वहां उपस्थित श्रद्धालुओं में किया गया। मंच आचार्य में दीपेंद्र विद्यार्थी विनय कुमार चतुर्वेदी राजकुमार पांडे रहे। कथा का संचालन यज्ञ आचार्य सौरभ कुमार भारद्वाज ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से कथा संयोजक नरेंद्र गर्ग, कृष्ण कुमार, राजू गर्ग, डॉ सौरभ अग्रवाल, प्रतीक, राम जी, बंटी गोयल चंद्रभान अग्रवाल, सुरेंद्र गर्ग, काकू, बबलू, सीटू  सहित भारी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित रहे।

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