माँ कालरात्रि - ज्ञान

 माँ कालरात्रि - ज्ञान 
बहिरंग भयंकर, पर अंतस में,
शुभंकरी, मनु- बंध उच्छेदिनी। 

दिन सप्तम  है रहस्य भावी,
रूप माँ  कालरात्रि कल्याणी। 
असुर रक्तबीज सैन्य दल के,
रक्त-विन्दु सहज विनाशिनी। 

स्वामी   के गुरुत्व - आदेश से,
कालिका, तेज-रश्मि उद्भाविनी।
जलधि-सी अगाध है,वह ममता,
जो मानवता-हित में सत्संगिनी। 

घनघोर तिमिर के गर्भ से जो,
ज्ञान-आलोक पथ दिग्दर्शिनी। 
दाहिने कर की है, वरद-मुद्रा,
जग - हेतु ,अभय-उद्घोषिणी। 

रक्तदंता, परअन्नपूर्णा - भाविनी,
लौह-कंट से वह विग्रह निवारिणी। 
विद्युत-सम आभा में  विराजती,
पुण्यमति जो,माँ त्रिनेत्र -धारिणी। 

कर्मठ-रूप माँ, दें साहस-संदेश,
रिद्धि-सिद्धि में, न मन का प्रवेश। 
रखो,  जग-सेवा में सद्भाव सतत,
नश्वर तजो,अनश्वर की बनो जोत। 

- मीरा भारती,
  पुणे, महाराष्ट्र

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