भारतीय समाज की प्रगति में नारियों की भूमिका

भारतीय समाज की प्रगति में नारियों की भूमिका 

सृष्टि आरम्भ से ही नारी समाज को प्रगति की ओर सदैव प्रेरित करती आई है। धरा पर व्याप्त सम्पूर्ण शब्द, लेखनपटल और स्याही कम पड़ जाएंगे जब देश और समाज की प्रगति में नारी की भूमिका का वर्णन लिखा जाएगा।
            समाज हो, परिवार हो या फिर मानव का व्यक्तिगत जीवन ही क्यों न हो सभी के प्रारम्भ से विस्तार तक और विस्तार से अनन्त तक के परिचरण की सृजनकारीणी ब्रम्हरूपा "नारी" ही है। तभी तो स्वायंभुव मनु द्वारा रचित मनुस्मृति में "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" कह सम्मान दिया गया है।
वैदिककाल में विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी, लोपामुद्रा, सिकता, रत्नावली और मैत्रैयी जैसी महान परम् विदुषी महिलाओं ने धरा पर सनातन संस्कृति और ज्ञान को प्रतिष्ठित कर एक शिक्षित समाज की प्रेरणा दी वहीं इन्द्राणी, देवयानी, घोषा, लोपामुद्रा और विश्वआरा जैसी महान विदुषी शास्त्रज्ञाता, दार्शनिकाओं ने परमात्मा रूपी श्री "वेद" के लेखन में विशिष्ट योगदान दिया।
भारत के समस्त पौराणिक धार्मिक ग्रंथ, ऐतिहासिक पुस्तकों से लेकर वर्तमान तक के प्रामाणिक स्रोत  समाज को प्रतिष्ठा एवं प्रेरणा देनेवाली नारियों के उल्लेखों से भरे परे हैं।
सनातन संस्कृति, भारतीय सभ्यता और हिन्दू धर्म पर अपने ओजस्वी व्याख्यानों से विदेशों में भी भारत को विश्वगुरु प्रमाणित करने वाले महान भारतीपुत्र स्वामी विवेकानंद जी ने भी नारी सम्मान में कहा है कि "प्रत्येक भारतीय नारी प्रतिष्ठा में महारानी के समान हैं"। 
        हर युग में नारीयां समाज को प्रेरित करने के लिए अपने जीवन को ही प्रमाण बनाती आयी हैं। जिसमें माता सीता, उर्मिला, माता अनसुइया, माता शबरी, कुंती, द्रौपदी आदि देवपुत्रियां महत्वपूर्ण नाम हैं।
माँ मौरा द्वारा विषम परिस्थितियों में  भी सबलता और दृढ़ता की प्रेरणा से सिंचित और चाणक्य का आशीर्वाद प्राप्त कर एक अति साधारण दासीपुत्र बालक में महान चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय हुआ था तो माँ धर्मा की प्रेरणा ही थी जो भारतवर्ष को "अखण्ड भारतवर्ष" बनाने वाले चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान की प्राप्ति हुई।
भारत के भक्ति आंदोलन में भी भक्तिन  मीराबाई, अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लालदेद जैसी महान कवयित्रियों ने अपनी काव्य सृजनता से समाज को प्रेरित और शिक्षित किया।
भारत की नारियों ने विदेशी आक्रांताओं से भी शौर्यता पूर्ण टक्कर लेकर भारतीय प्रजा में साहस और शौर्य के बीज का रोपण किया। जालौर राज्य की एक अतिसाधारण महिला हीरादे के पति दुर्गपाल विका दहिया ने जब राज्य से गद्दारी कर आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के लिए दुर्ग का दरवाजा खोल दिया तो देशभक्तन हीरादे ने अपने पति का सिर काट कर राजा कान्हड़देव के चरणों में अर्पित कर दिया वहीं चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती ने भी पति राजा रतन सिंह की मृत्यु के पश्चात खिलजी की गुलामी को नहीं बल्कि जौहर का आलिंगन कर भारतीय समाज को मर्यादा धर्म और देशभक्ति के लिए सर्वस्व बलिदान करने की प्रेरणा दी।
1857 में भारत की प्रथम स्वतंत्रता क्रांति के समय भी भारत की नारियों ने समाज को आजादी के लिए संगठित एवं प्रेरित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। जिसमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल और सावित्रीबाई फुले (भारत की प्रथम महिला शिक्षिका) का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है।
      पुरुषप्रधान समाज में बेगम रजिया सुल्ताना ने भी भारत की प्रथम महिला शासिका बन एक मजबूत नारी शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत किया था।
जहा 1931 के कोल आंदोलन में गया मुंडा की पत्नी माकी ने विदेशियों को कड़ी चुनौती दी वहीं कस्तूरबा गांधी, दुर्गा देवी बोहरा (दुर्गा भाभी), कबकलता बरुआ, सुचेता कृपलानी (स्वतंत्र भारत में प्रथम महिला मुख्यमंत्री, यू.पी.), उषा मेहता, विजयलक्ष्मी पंडित (स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला राजदूत), कैप्टन लक्ष्मी सहगल (आजाद हिंद फौज), सरोजनी नायडू (भारतीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला राज्यपाल) और अरुणा आसिफ़ अली आदि जैसी अनेक भारतीय नारियों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान दे आन्दोलन को लक्ष्य की ओर प्रेरित किया था।
भारतीय राजनैतिक प्रणाली से जुड़कर भी नारियों ने समाज को प्रगति प्रदान की है जिसमें निडरतापूर्ण निर्णयों के लिए स्व.इंदिरा गांधी का नाम सर्वोपरि है।
भारतीय समाज में वैचारिक प्रगति स्थापित करने में भारत की महान लेखिकाओं सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, मन्नू भंडारी, इसम्मत चुगताई आदि का भी स्वर्णिम योगदान रहा है। स्व. कल्पना चावला ने अंतरिक्ष में भी भारतीय नारी का मार्ग प्रशस्त किया तो बछेन्द्री पाल ने हिमालय की चोटियों पर भारतपुत्रियों का नाम अंकित किया। पी.टी.उषा, मैरीकॉम, पी.वी.सिंधु, सानिया नेहवाल, सानिया मिर्ज़ा आदि महिलाओं ने भारतीय समाज में पुत्रियों को खेल जगत का सितारा बनने को प्रेरित किया। 
आज भी भारतीय नारियां सम्पूर्ण समाज में पूरी निष्ठा से सभीं महत्वपूर्ण क्षेत्रों स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, राजनीतिक, खेल और समाजसेवा आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं और अपने कुशल प्रबंधन और सुयोग्य निर्णयपूर्ण कार्यक्षमता से समाज का प्रतिनिधित्व कर रही हैं प्रेरित कर रही हैं, इसीलिए लेखिका का कथन है कि-
सृष्टि को संजीवित रखना है तो संज्ञान करो,
बेटियों का संरक्षण नारियों का सम्मान करो,
वर्ना अपमानित प्रकृति भी आयुध होती हैं,
क्योंकि हम नारियां बहुत मजबूत होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।

-ममता मनीष सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखण्ड)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनभद्र के परिषदीय विद्यालयों में राज्य परियोजना कार्यालय लखनऊ की टीम ने की गुणवत्ता को जांच

विशिष्ट स्टेडियम तियरा के प्रांगण में विकसित भारत संकल्प यात्रा सकुशल संपन्न

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बने विश्व के कीर्तिमान