लेख- शिव से शव तक : सुधीर श्रीवास्तव


लेख- शिव से शव तक : सुधीर श्रीवास्तव


शिव महिमा का बखान शब्दभावों में जितना भी किया जाय कम है।
परंतु मेरे समझ में जो आया वह ये कि आदि से अंत तक बस शिव ही शिव है। जीवन भर हम शिव मय ही रहते हैं, शिव के बगैर जीवन असंभव है। शिव = यानि शव + शक्ति (प्राण)।
    जब तक हमारी साँसें चलती हैं (हममें प्राण रहते हैं) हम सभी शिव और शिव ही हैं। मात्र 'इ' यानि शक्ति का प्रभाव, असर ही है कि इससे युक्त होकर हमरा शव (शरीर) शिव (जीवंत) हो जाता है और ज्यों ही यह 'इ' रूपी शक्ति शिव (जीवंतता) से पृथक हो जाती है यानी जीवंतता से दूर हो जाती है तब हम पुन: शिव से शव हो जाते हैं।
    इससे बड़ी महिमा और क्या हो सकती है कि हम सभी शिव हैं परंतु तभी तक जब तक 'इ' अर्थात आत्मा शरीर में है।बस 'इ' अर्थात आत्मा शरीर से अलग होते ही 'शिव' अर्थात हम 'शव' बन जाते  हैं। इसीलिए कहा जाता है कि शिव ही शव है और शव ही शिव है यानी हमारी. जीवन यात्रा ही संपूर्ण शिवमय है। जरूरत है शिव को जानने, समझने, महसूस करने की।
जय शिवशंकर, जय भोलेनाथ।


- सुधीर श्रीवास्तव
  गोण्डा, उ.प्र.
    

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