मीरा भारती जी द्वारा लिखा संस्मरण-एक जन्म-दिवस, नन्हा जीवन

मीरा भारती जी द्वारा लिखा संस्मरण-
एक जन्म-दिवस, नन्हा जीवन

महानगरी की सोसायटी में, खिड़की से बाहर अट्टालिकाओं के बीच से आती प्राची की रवि- किरणों को अपनी मधुर, मुस्कान से स्वर्गोपम बनाते, जन्म- दिवस मनाते बाल- गोपालों को आभास नहीं होता कि वे कल की सोसायटी के होंगे- ज्योति- स्तम्भ...८ वर्षीया 'चयनिका' की १२/१५ सखियां आमंत्रित हैं, उत्सव की प्रफुल्लित चहल-पहल के बीच नन्हीं जन्म- दिवस- परी अपनी एक संगिनी पिंकू से है रुष्ठ.. उसके ' दादा' के मित्र भी आमंत्रित अतिथि हैं.. अलिखित प्रलेख नियमानुसार, नन्हे अतिथि 2 बजे से 11बजे तक स्वेच्छा-पूर्वक आते, अपने प्रिय 'स्नैक्स'का आनंद लेते, सभी कमरे उनके रंगारंग कार्यक्रम से गुलजार रहते, निद्रा- स्वप्न- परी की मनुहार पर ही अपने नीडों में जाते. 'पिंकू' द्वारा डोरबेल बजाने के पूर्व ही दादी ने चयनिका को समझाया,खेल में खटपट होती, पर संधि करके प्यार की टाफियों के साथ खुशियां भी मनाई जाती हैं.. द्वार पर बाल- परिहास के बीच 'पिंक' करती प्रवेश, नन्ही अतिथि का हरा मास्क गुलाबी चिबुक पर झूलता, संभ्रांत नन्हीं आतिथेय ने किया, दोनों हाथ जोड़कर मुस्कान-नमस्कार, 'सेनेटाइज़र' से दो जोड़ी नन्ही हथेलियों ने किया स्नान.. झिलमिल सितारों- से पैकेट रिटर्न- गिफ्ट स्वीकृत होते... ८वें जन्मदिवस समारोह की झलकियां शुरू होतीं, तकरार से सहज प्रेम की प्रेरणा ले, बच्चे नवीन जीवन शैली में सुसंस्कृत होते...जा रहे स्वर्णिम नवयुग की ओर.... दर्शन... शिक्षण का...

-मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्र

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