आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना- महँगाई

आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना- महँगाई 

दुकानों पर क्यों पसरा सन्नाटा है ।
घर में खत्म हुआ दाल व आटा है ।
महँगाई का मारा बेचारा गरीब,
आज फिर से अपना पेट काटा है ।

बच्चों के मासूम मूक सवालों में।
भटका मन मंदिर व शिवालों में ।
अधिक श्रम और आय है कम ,
कब तक जीवन जी जंजालों में।

आर्थिक विषमता बनी अभिशाप ।
मन भूला पुण्य व पाप का अंतर ।
अतृप्त अभावग्रस्त बना है जीवन ,
मिटाए नहीं मिटे मन का संताप ।

दुख व तकलीफ हद से बढ़ जाते ।
दुनिया वाले अजनबी से पेश आते ।
सुख के सब साथी होते जग वाले ,
बिगड़े वक्त में सब मुखौटे हट जाते।

महँगाई कालाबाजारी से आती है ।
गरीबी अमीरी की दीवार उठाती है।
बंद दरवाजों के अंदर जब तब ,
इंसानियत भी तार-तार हो जाती है ।।
 
-सीमा वर्णिका 
कानपुर, उत्तर प्रदेश

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