लघु कथा- पत्थर में भगवान : सरिता सिंह

लघु कथा- पत्थर में भगवान : सरिता सिंह

       पत्थर में भगवान
सुरेश भीलवाड़ा में पत्थर घिसने का काम करता था।
संगमरमर के पत्थरों से सुंदर डिजाइन बनाकर बड़ी बिल्डिंग में लगाने का ठेका बड़ी कंपनियां लेती। सुरेश सिर्फ उनको घिसता और बदले में उसको मजदूरी मिलती। एक रात उसकी पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई, अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसकी किडनी खराब हो गई थी। अस्पताल वालों ने दो लाख रुपये का खर्च बताया। सुरेश के पास इतने पैसे नहीं थे पर पत्नी का जीवन बचाना उसके लिए सबसे जरूरी था, सुरेश ठेकेदार के पास गया और कहने लगा मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। ठेकेदार ने कहा मेरे पास सिर्फ तुम्हारे जमा मिलाकर कुल बीस हजार बनते हैं, चाहे तो ले लो, सुरेश बहुत रोया गिड़गिड़ाया, साहब!  मुझे  ₹दो लाख उधार दे दो, मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी मैं खून-पसीना एक करके यह पैसे लौटा दूंगा, मालिक जानता था कि वह पत्थर तराशने वाला है, ₹ सुरेश को एक साल के लिए बंधुवा बना कर एक लाख दे दिए, रुपये  अस्पताल में जमा करवा कर सुरेश घर गया, उसने पुराने पत्थरों को लाकर घर पर एक सुंदर सा मंदिर बनाया था। बाजार में उसे बेचने गया, घंटो बीत गए पर कोई भी खरीददार नहीं मिला। राम मंदिर को लेकर वापस लौट रहा था तभी, अग्रवाल साहब की कार उधर से गुजर रही थी, कुछ देखकर अग्रवाल साहब रुक गए। सुरेश को पास बुलाकर पूछा यह मंदिर कहां से ला रहे हो? इसे किसने बनाया है, इसे मैंने ही बनाया है, अग्रवाल साहब उस मंदिर को देखते ही रह गए, ज्यादातर मंदिर किसी एक रंग के संगमरमर का ही बनता है पर सुरेश ने छोटे-छोटे संगमरमर को काट के रंग बिरंगे संगमरमर का जो मंदिर बनाया था वह अग्रवाल जी को किसी एंटीक की तरह दुर्लभ लगा। उन्होंने कहा तुम इसके मुंह बोले दाम ले सकते हो, बताओ मंदिर कितने में बेचोगे, मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती है उसके ऑपरेशन के लिए एक लाख रुपया कम पड़ रहा है, अग्रवाल साहब ने उसे ₹एक लाख दे दिये और मंदिर को गाड़ी में लेकर चले गए, सुरेश की पत्नी का इलाज हो गया और वह ठीक हो गई।
अगले दिन पत्नी ने पूजा करने की सोची तो उसे मंदिर दिखाई ना दिया पता चला कि सुरेश ने मंदिर बेच दिया है उसे बहुत दुख हुआ। उसने सुरेश से कहा तुमने मेरे ईश्वर को बेच दिया, पत्थर में भगवान थे क्या? मैं दूसरा मंदिर बना दूंगा तुम्हारी जान बचाने के लिए मुझे जो दिखा मैंने किया। 
सुरेश ने हूबहू वैसे कई मंदिर बनाए   और बाजार में बेचने का काम शुरू कर दिया। हर कोई मंदिर का दो से पांच हजार तक का ही दाम लगाता।
पर आपकी कोई भी ऐसा खरीददार नहीं मिला जिसने इतनी बड़ी रकम दी हो।
सुरेश को समझ में नहीं आ रहा था की क्या सचमुच उस पत्थर में भगवान थे।

-सरिता सिंह
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

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