प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों का योगदान।

प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों का योगदान।

रॉबर्ट्सगंज- सोनभद्र :

आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के 75 हफ्ते पूर्व शुरू आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष के अंतर्गत सोनभद्र जनपद एवं इससे जुड़े पड़ोसी राज्य के इतिहास के पन्ने  परत दर परत खुलते जा रहे हैं।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
   1857 भारतीय इतिहास का प्रथम युद्ध इतिहासकारों द्वारा माना जाता है। इसके अंतर्गत अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए वर्तमान जनपद सोनभद्र के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ बिहार झारखंड के आदिवासी राजा एवं जन नायक संगठित हो गए थे और अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए कमर कस लिया था।
 सर्वप्रथम काशी नरेश महाराजा चेत सिंह की ओर से विजयगढ़ दुर्ग में आदिवासी सैनिकों ने अंग्रेजों से युद्ध किया था, इसी वर्ष जनपद के अगोरी गांव में कुछ अंग्रेज सैनिक विद्रोहियों को पकड़ने अगोरी गांव थे, जहां पर आदिवासियों ने लाठी-डंडे, तीर- कमान के बल पर उन्हें खदेड़ दिया था।
 आरा से युद्ध हारने के बाद वीर कुंवर सिंह अपने सहयोगियों, साथियों एवं आदिवासी सैनिकों के साथ सोनभद्र जनपद आए और अंग्रेजी संपत्ति को लूटते हुए बेलन नदी को पार कर प्रयागराज निकल गए।
18 57 के स्वतंत्रता आंदोलन में सोनभद्र जनपद के जूरा महतो  और बुद्धू भगत ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिया था।
  इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी द्वारा रचित पुस्तक आदिवासी केअनुसार-"उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर अवस्थित सोनभद्र जनपद के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के वर्तमान जबलपुर (गढ़ मंडला) के आदिवासी जननायक राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह सहित अन्य स्वतंत्र संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों के जुल्म के शिकार हुए।
जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेन्ट का कमांडर ले॰ज॰ क्लार्क छोटे- छोटे राजाओ, सेनानियों पर अत्याचार किया करता था।
  राजा शंकर शाह ने अपने एक भ्रष्टाचारी कर्मचारी गिरधारी लाल को निकाल दिया था, वह अंग्रेजों से मिल गया था सारी जानकारी वह ले०ज० जनरल को देता रहता था।
राजा शंकर शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का ऐलान किया। ले०ज० ने अपने गुप्तचरों का जाल बिछा दिया और राजा शंकर शाह के गतिविधियों पर नजर रखने लगा।
 अंग्रेजों के तथाकथित गुप्तचर  साधु वेश में शंकर शाह की तैयारी की खबर लेने गढ़पुरबा महल में पहुंचे।
राजा शंकर शाह धर्मप्रेमी थे, इसलिए उन्होंने साधु वेश में आए गुप्तचरों का स्वागत-सत्कार करते हुए युद्ध की सारी योजनाओं को बता दिया और युद्ध में सहयोग करने का आह्वान किया।
जिसके परिणाम स्वरूप राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर शाह को अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह भड़काने के जुर्म में 14 सितंबर 1857 को गिरफ्तार कर लिया गया और पिता पुत्र को वन विभाग के डाक बंगले में रखा गया,इन पर काफी अत्याचार किया गया। दूसरी ओर राजा के महल की तलाशी ली गई, जहां पर बरामद दस्तावेज से विप्लव की तैयारियों की अंग्रेजों को जानकारी मिली अंग्रेजों ने राजा के 13 अन्य विश्वास लोगों को गिरफ्तार कर लिया और इन पर मुकदमा चलाया ।
12  पन्ने के उर्दू भाषा में आए फैसले में सभी गिरफ्तार लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह भड़काने के जुर्म में 18 सितंबर को फांसी की सजा का दिन मुकर्रर किया गया।
18 सितंबर 1857 सुबह राजा शंकर शाह उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह सहित 13 अन्य विद्रोहियों को माल गोदाम (वर्तमान डीएफओ कार्यालय) स्थित मैदान में जिंदा तोप के मुंह पर बांधवा दिया गया। 
   मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एक एक छन्द सुनाया। पहला छन्द राजा शंकर शाह ने सुनाया और दूसरा उनके पुत्र रघुनाथ शाह ने सुनाया-

मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।

मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,

खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका ।।

दूसरा छन्द पुत्र ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।

कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन

डार मुण्डमाल गरे खड्ग कर धर ले...।

-छंद पूरे होते ही जनता में राजा एवं राजकुमार की जय के नारे गूंज उठे। इससे क्लार्क डर गया, उसने तोप में आग लगवा दी, भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआं भर गया और महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह वीरगति को प्राप्त हो गए। शहीदों के खून से रक्त रंजित हो गई सोनभद्र जनपद के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के जबलपुर की बलिदानों की धरती।
   राजा शंकर शाह की पत्नी फुलकुवर नहीं रोते- बिलखते हुए पति और पुत्र से क्षत-विक्षत शव के टुकड़ों को एकत्रित कर दाह संस्कार कराया।
  कालांतर में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में मोर्चा लिया और गिरफ्तारी की स्थिति में उन्होंने खुद अपने सीने में कटार भोक लिया अंग्रेजों के हाथ उनका शव न लगे इसलिए रानी के आदेशानुसार पूर्व उनके अंगरक्षक ने शव  को जला दिया था।
ऐसा था हमारे गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह का बलिदानी परिवार।"
  आज जनपद सोनभद्र मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड आज की भौगोलिक , राजनीतिक सीमाओं से घिरा हुआ है। ,1857 में जब देश में प्रथम युद्ध भारतीयों द्वारा अंग्रेजों से लड़ा जा रहा था उस समय यह भाग विस्तृत क्षेत्रफल था और इस राज्य में रहने वाली आदिवासियों ने संगठित होकर अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा लिया था। इसके 90 वर्षों बाद 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनभद्र के परिषदीय विद्यालयों में राज्य परियोजना कार्यालय लखनऊ की टीम ने की गुणवत्ता को जांच

विशिष्ट स्टेडियम तियरा के प्रांगण में विकसित भारत संकल्प यात्रा सकुशल संपन्न

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बने विश्व के कीर्तिमान